पूरे 21 साल लगे किसी भारतीय प्रधानमंत्री को दावोस में प्रतिष्ठित विश्व आर्थिक मंच यानी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम पहुंचने में. 1997 में एच डी देवेगौडा वहां गए और अब नरें मोदी. हालांकि देवेगौड़ा के बाद इंद्र कुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी और आर्थिक सुधारों के जनक माने जाने वाले अर्थशास्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे. लेकिन इनमें से किसी ने इस मंच का इस्तेमाल दुनिया भर के सामने भारत की ताकत को पेश करने और निवेश के लिए आकर्षित करने के लिए नहीं किया. भारत के वित्त मंत्रियों ने बीच-बीच में भारत की नुमाइंदगी जरूर की. लेकिन भारत के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को शायद कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई कि इस ताकतवर मंच का इस्तेमाल कर भारत की बढ़ती ताकत का एहसास कराया जाए. पीएम नरेंद्र मोदी ने इस मंच के महत्व को समझा और फोरम की बैठक उनके भाषण से ही शुरू हुई. यह दुनिया में भारत की बढ़ती ताकत पर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की स्वीकृति मानी जाएगी. पीएम नरेंद्र मोदी का तकरीबन एक घंटे का भाषण बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत के बढ़ते कद और नेतृत्व संभालने की उसकी आकांक्षाओं की झलक पूरी दुनिया को दिखा गया.
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पीएम मोदी के भाषण में बहु्ध्रुवीय (multipolar) विश्व व्यवस्था का जिक्र दुनिया में अपनी चौधराहट कायम करने में लगे अमेरिका और चीन को सीधा-सीधा संदेश था. मौसम परिवर्तन पर भारतीय दर्शन का जिस बखूबी पीएम मोदी ने जिक्र किया, उसके जरिए दुनिया को यह बताने की कोशिश की कि इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए भारत अपनी जिम्मेदारी को बखूबी जानता है और उसे निभा भी रहा है. हालांकि, उन्होंने अमेरिका का नाम नहीं लिया. लेकिन क्योटो प्रोटोकाल से जिस तरह अमेरिका ने अपने कदम पीछे खींचे उसके बाद उसे दुनिया भर में आलोचना झेलनी पड़ी है. पीएम मोदी ने आतंकवाद को दूसरी बड़ी समस्या बता कर एक बार फिर दुनिया के कुछ देशों के दोहरे मापदंडों का पर्दाफाश किया.
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उन्होंने गुड टेरेरिस्ट और बैड टेरेरिस्ट के बीच के कृत्रिम अंतर को लेकर आड़े हाथों लिया. साफ था कि उनका इशारा कहां था. उन्होंने पढ़े-लिखे युवाओं के आतंकवाद में शामिल होने को बड़ी समस्या बताया है. तीसरी समस्या कुछ देशों का आत्मकेंद्रीत होना बताया. एक बार फिर यह दुनिया के उन देशों को आइना दिखाने का प्रयास था जो वैश्वीकरण के उलट जा कर संरक्षणवाद में लगे हैं. खासतौर से अमेरिका में एच1बी वीजा और ब्रिटन के यूरोपीय संघ से निकलने के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं. यहां पर यह जिक्र भी करना जरूरी है कि पीएम मोदी ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों तथा नियमों का सही भावना में पालन करने पर जोर दिया है. इससे साऊथ चाइना सी और डोकलाम में चीन के रवैये की याद ताजा हो गई. पीएम मोदी ने कहा कि धीरे-धीरे वैश्वीकरण की चमक फीकी होती जा रही है.
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भारतीय संस्कृति और उसकी उजली विरासत का इस वैश्विक आर्थिक मंच पर जिक्र, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को भारत के गौरवशाली इतिहास की झांकी दिखाना तो था ही, भारत की बढ़ती ताकत और उसके आध्यात्मिक वर्चस्व को फिर से स्थापित करने की ललक भी दिखाई देती है. दरअसल, बीजेपी और आरएसएस का यह मानना रहा है कि भारत का कभी दुनिया में विश्व गुरु का स्थान रहा है और इसे दोबारा हासिल करना उनका लक्ष्य है. इसीलिए पीएम मोदी ने बिजनेस लीडर्स से आव्हान किया कि अगर वे वेद के साथ वैल्यूज़ (मूल्य) चाहते हैं, खेल के साथ वेलनेस (तंदुरुस्ती) चाहते हैं और समृद्धि के साथ शांति चाहते हैं तो वे भारत आएं. पीएम मोदी का यह कहना कि भारत की कोई राजनीतिक या भौगोलिक महत्वाकांक्षा नहीं है और न ही भारत किसी अन्य देश के प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल अपने लिए करना चाहता है, सीधे-सीधे चीन के इरादों को बेपर्दा करना है. इसी के साथ उन्होंने बहुसंस्कृति वाली दुनिया में बहुध्रुवीय (multipolar) विश्व व्यवस्था की वकालत भी की.
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संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं में बदली परिस्थितियों के बावजूद सुधार न होना एक ऐसा विषय है, जिसका जिक्र पीएम मोदी करते आए हैं. उन्होंने वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम में जमा हुए दुनिया भर के नेताओं को याद दिलाया है कि किस तरह से विश्व शांति स्थापित करने में भारत ने बड़ी कुर्बानी दी है. उन्होंने विश्व युद्धों में भारत के डेढ़ लाख सैनिकों के बलिदान का खासतौर से उल्लेख किया.
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भारत ने इस मंच का उपयोग अपने यहां निवेश बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार को आकर्षित करने के लिए किया है. इसके लिए एक बड़ा प्रतिनिधिमंडल भी दावोस भेजा गया है. पीएम मोदी ने उनकी सरकार द्वारा कारोबार करने में आसानी बढ़ाने का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि किस तरह से उनकी सरकार ने 1400 से भी अधिक उन पुराने कानूनों को खत्म किया है जो कारोबार की सुगमता में बाधा बनते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने लाइसेंस-परमिट राज को जड़ से खत्म करने का फैसला किया है. 70 साल में पहली बार एकीकृत कर व्यवस्था जीएसटी लागू की गई है. उन्होंने अपील पर लोगों के सब्सिडी छोड़ने और चुनाव दर चुनाव सरकार की नीतियों पर मुहर लगने की बात भी कही जो सीधे तौर पर दुनिया को संदेश था कि देश की जनता उनकी नीतियों का समर्थन कर रही है.
पीएम मोदी ने इस मंच को अपना संबोधन हिन्दी में किया. उन्होंने संस्कृत के तीन श्लोक भी अपने भाषण में शामिल किए. यह पूछा जा सकता है कि दुनिया भर के इन नेताओं को हिन्दी में संबोधन का क्या औचित्य है? लेकिन यह ध्यान रहे कि विश्व गुरु का स्थान दोबारा हासिल करने के लक्ष्य के लिए जरूरी है कि भारतीय संस्कृति की पहचान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मजबूती के साथ रखी जा. शायद इसके पीछे यही सोच रही हो.
(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From Jan 23, 2018
विश्व गुरु का खोया स्थान दोबारा पाने की भारत की ललक बताता है पीएम मोदी का भाषण
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:जनवरी 23, 2018 19:41 pm IST
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Published On जनवरी 23, 2018 18:41 pm IST
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Last Updated On जनवरी 23, 2018 19:41 pm IST
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