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This Article is From Nov 28, 2018

मध्यप्रदेश में शिवराज या महाराज?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 28, 2018 20:56 pm IST
    • Published On नवंबर 28, 2018 20:56 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 28, 2018 20:56 pm IST
मध्यप्रदेश में तय हो गया कि अगले पांच साल किसका राज रहेगा- महाराज का या फिर शिवराज का. लोगों की पसंद ईवीएम में कैद हो गई है. पूरे राज्य में लोगों में मतदान के प्रति खासा उत्साह देखने को मिला. हालांकि सुबह मतदान की रफ्तार धीमी थी लेकिन दोपहर होते होते लोगों में जोश आया. कई जगहों से ईवीएम और वीवीपैट मशीनें खराब होने की शिकायतें आईं. चुनाव आयोग के मुताबिक मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड 75% मतदान हुआ है. यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है. 2013 के विधानसभा चुनाव में 72.13 फीसदी मतदान हुआ था जबकि 2008 में 69.52 प्रतिशत, 2003 में 67.41 प्रतिशत, 1998 में 60.21 प्रतिशत, 1993 में 60.17 प्रतिशत वोट डाले गए थे. यानी करीब सात फीसदी अधिक मतदान ने बीजेपी को तीन चौथाई बहुमत दिलाया था. इसके बाद क्रमश करीब दो और तीन फीसदी की मामूली बढ़ोतरी हुई और बीजेपी भारी बहुमत से चुनाव जीत कर सरकार बचाने में कामयाबी रही.

इतने भारी मतदान के बाद विश्लेषण शुरू हो गया है कि इसका फायदा किसे मिलेगा? बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. वैसे आज सुबह ही बीजेपी ने राज्य के तमाम अखबारों में विज्ञापन देकर 90 प्रतिशत मतदान करने की अपील की थी. यह जानबूझ कर किया गया ताकि कमलनाथ के उस बयान की लोगों को याद दिलाई जा सके जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर मुस्लिम 90 फीसदी मतदान नहीं करेंगे तो कांग्रेस को नुकसान होगा. हालांकि मध्य प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं होता है फिर भी बीजेपी को लगता है कि कमलनाथ का यह बयान हिंदुओं को एकजुट कर अपने घरों से निकल कर वोट डालने के लिए काफी है. इसीलिए ये विज्ञापन छपवाए गए.

अधिक मतदान एक नमूना 2003 में देखने को मिला था जब 1998 की तुलना में सात फीसदी से भी अधिक मतदान हुआ था और दस साल की दिग्विजय सिंह सरकार को बीजेपी ने तीन-चौथाई बहुमत पाकर उखाड़ फेंका था. अधिक मतदान सत्ता विरोधी लहर की पहचान बन गया था. बाद के दो चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ा लेकिन इसका अनुपात राज्य में मतदाताओं की बढ़ती संख्या के हिसाब से ही रहा. इन दोनों ही चुनावों में भी बीजेपी ने जबर्दस्त बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की. इस बार पिछली बार की तुलना में 6 से आठ प्रतिशत तक अधिक मतदान का अंदाज़ा है. बीजेपी का दावा है कि यह सरकार विरोधी मतदान नहीं है क्योंकि 2003 में जहां दिग्विजय बेहद अलोकप्रिय थे, वहीं शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है. उधर, कांग्रेस का कहना है कि यह भारी मतदान साफ दिखाता है कि राज्य में बीजेपी विरोधी लहर चल रही है जो शिवराज सरकार को कुर्सी से उतार देगी. 

इस बार कांग्रेस बीजेपी को कड़ी टक्कर देती दिख रही है. शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में कई बातें हैं तो कुछ उनके खिलाफ भी जा रही हैं. 

जो बातें उनके पक्ष में जाती हैं...
- लोगों में बेहद लोकप्रिय
- बिजली, सड़क, पानी, सिंचाई, लोक कल्याण के मुद्दों पर बेहतरीन प्रदर्शन
- बीजेपी का संगठन, आरएसएस का साथ
- कृषि विकास दर में वृद्धि और उपज में बढ़ोतरी
- महिलाओं का साथ

लेकिन कई बातें उनके खिलाफ भी हैं, मसलन...
- लोगों में ऊब, परिवर्तन की चाह
- उपज का सही मूल्य न मिलने से किसानों में नाराजगी
- किसानों की कर्ज माफी का कांग्रेस का वादा
- बेरोजगारी से युवाओं में गुस्सा
- बढ़ता भ्रष्टाचार, ध्वस्त व्यवस्था

कांग्रेस यह चुनाव अब नहीं तो कभी नहीं के अंदाज में लड़ी है. हालांकि गुटबाजी और टिकटों के गलत बंटवारे की वजह से कांग्रेस को नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. शिवराज के मुकाबले कोई मुख्यमंत्री चेहरा न देना भी कांग्रेस की रणनीतिक भूल बताया जा रहा है. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच प्रतिस्पर्धा और दिग्विजय सिंह की मौन भूमिका भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं है. इस चुनाव में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी दोनों ही खुल कर सामने नहीं आए हैं और चुनावों में राष्ट्रीय स्तर के बजाय राज्य स्तर या स्थानीय मुद्दे ही छाए रहे हैं. आज के मतदान में लोकतंत्र के कई रंग भी देखने को मिले हैं. अपने अलग अंदाज के लिए चर्चा में रहने वाले बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय बग्घी में बैठ कर वोट डालने गए तो वहीं शिवराज सिंह चौहान ने भी अपने परिवार के साथ वोट डाला. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने अपने इलाकों में वोट डाला है. युवाओं और बुजुर्गों में समान रूप से मतदान के लिए उत्साह देखने को मिला. तो ऊंट किस करवट बैठेगा? इसका जवाब 11 दिसंबर को मिलेगा.

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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