अभिषेक शर्मा की कलम से : एस्कॉर्ट सर्विस और छापेमार पुलिस की हकीकत

अभिषेक शर्मा की कलम से : एस्कॉर्ट सर्विस और छापेमार पुलिस की हकीकत

मुंबई के होटल पर पुलिस रेड की सीसीटीवी तस्वीर

मुंबई:

पिछले दिनों मुंबई में सनसनी सी मच गई। उत्तर प्रदेश के अमरोहा से सांसद के बेटे ने सीधे पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया से एक एस्कॉर्ट सर्विस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। कहा कि एक लड़की और उसके ड्रायवर ने उन्हें और उनके एनआरई दोस्त को लूट लिया। घटना रात की बताई गई।

पुलिस कमिश्नर को सीधे सांसद के बेटे ने संदेश भेजा था तो कार्रवाई तो होनी ही थी। एस्कॉर्ट सर्विस यानी ऐसी रहस्मयी सेवा जो ना तो कानूनी है और ना गैरकानूनी धंधे की कैटेगरी में आती है। इस सेवा को देने वालों का दावा है कि महिलाएं एस्कॉर्ट करने के लिए बुलाई जा सकती है। मुंबई में ये सेवा धड़ल्ले से चलती है। विज्ञापन खूब आते हैं। पुलिस की नज़र में भी रहते ही होंगे।

पांच सितारा होटल में ठहरे सांसद साहब के बेटे को इस सर्विस की जरूरत मुंबई के पब और बार में जाने के लिए महसूस हुई। पुलिस ने इस शिकायत के बाद आनन-फानन में दो एजेंट गिरफ्तार कर लिए, लेकिन मामला हाई प्रोफाइल था, इसलिए सब अफसर चुप हैं।

इस घटना का ब्योरा और परिस्थितियां बताना इसलिए जरूरी हो गया था, क्योंकि हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक जनहित याचिका की सुनवाई की। सुनवाई मढ़ आईलैंड पर हुई पुलिस की रेड से जुड़ी हुई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि पुलिस ने होटल में जाकर प्रेमी जोड़ों को जबरदस्ती बाहर निकाला। होटल के पास तमाम पहचान और सबूत होने के बावजूद प्रेमी जोड़ों पर अश्लीलता फैलाने जैसे आरोप जड़ दिए।

ये मसला सोशल नेटवर्क पर खूब जोरशोर से उठा। उसके बाद जनहित याचिका हाईकोर्ट पहुंची, जिस पर गृहमंत्री और पुलिस कमिश्नर को नोटिस जारी किए गए हैं। मुंबई की छापेमार पुलिस अब कह रही है कि जिन लोगों को पुलिस ने उस दिन पकड़ा था उन सबके ग़लत पते थे, इसलिए पुलिस के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं करवा रहा। अब जो इस पुलिस के चंगुल से बमुश्किल छूटा हो, वह फिर से उसी माथापच्ची की कैसे साहस जुटाए। वैसे पुलिस भी शायद अंदरखाने यही चाहती थी। ना शिकायतकर्ता होंगे, ना कोई पुलिस वाला कटघरे में खड़ा होगा।

मुंबई की छापेमार पुलिस के चरित्र को इन दोनों अलग अलग घटनाओं से समझा जा सकता है। एक घटना में उसे मालूम है कि एस्कॉर्ट सर्विस क्या होती है, कैसे काम करती है, विज्ञापन हर दिन छपते हैं... यहां तक कि उसे ग्राहक भी मालूम हैं। ग्राहक किन बड़ी होटलों में ठहरते हैं, ये सब ब्योरे पुलिस के पास होते हैं। लेकिन वह एक्शन लेने का जोखिम नहीं उठा सकती। कोई ग्राहक अपने साथ हुई धोखाधड़ी की शिकायत करता है, तो तुरंत कार्रवाई करती है।

दूसरी घटना में, मढ़ के जिन होटलों में वह रेड करने पहुंची थी, उसे वहां भी मालूम था कि बजट होटलों में ठहरने वाले कौन लोग हैं। जिस शहर में पूरा परिवार सवा दो सौ स्क्वेयर फीट में बमुश्किल सोता हो उसे छुट्टी के दिन उन बजट होटल की जरूरत होती है, ये मुंबई की हकीकत है और पुलिस इसको अरसे से जानती है।

'हफ्ता संस्कृति' में होटल के मालिक भी पुलिस से सच नहीं छुपाते, हर दिन राउंड पर आने वाले बीट मार्शल को पता होता है कि कौन प्रेमी जोड़ा है और कौन नहीं... या कौन सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।

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ये दो घटनाएं ये बताने के लिए काफी हैं कि पुलिस जानती सब है, बस कार्रवाई वहीं करती हुई दिखना चाहती है जहां प्रेमी कमज़ोर तबके का हो, जहां उसे किसी बड़े आदमी से पंगा लेने का खतरा ना हो।