पजियरवा गांव के निवासी सीतारामन पासवान।
नई दिल्ली:
पूर्वी चंपारण जिले के पजियरवा गांव के सीताराम पासवान बरसों से गरीबी के जाल में फंसे हैं। उनके पास जमीन है नहीं और गांव में रोजगार मिलता नहीं। नतीजा यह हुआ है कि उनकी जिंदगी बद से बदतर होती जा रही है। व्यवस्था की बदहाली ने उनके जैसे गरीब दलित परिवारों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। पासवान कहते हैं कि जब काम मांगने मुखिया के पास गए तो उसने खाली हाथ लौटा दिया। वे कहते हैं, 'मुखिया ने बोल दिया कि महात्मा गांधी नरेगा योजना अब नहीं चल रहा है। वह अब खत्म हो गया है। गांव में अब काम नहीं मिल रहा है हमें।'
जॉब कार्ड 1674 लोगों को दिए, काम कुछ नहीं मिला
एनडीटीवी को गांव में ऐसे कई लोग मिले जिन्होंने इस बात की पुष्टि की कि गांव में मनरेगा के तहत काम मिलना एक साल से ज्यादा समय से बंद हो चुका है। सरकारी आंकड़े सीताराम पासवान के दावों की तस्दीक करते हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस गांव में 1674 लोगों को मनरेगा के तहत जॉब कार्ड जारी किए गए हैं, लेकिन इस साल अक्टूबर तक किसी को एक दिन भी काम नहीं मिला।
दो साल पहले की मजदूरी नहीं मिली
जाहिर है, गांव में सैंकड़ों जरूरतमंद लोग हैं जो मनरेगा बंदा होने की वजह से काम के लिए तरस रहे हैं। कुछ की शिकायत है कि उन्होंने मनरेगा के तहत काम मिलना बंद होने से दो साल पहले जो काम किया था उसका पैसा मुखिया ने अभी तक जारी नहीं किया है। यानी जब मनरेगा चालू था उस वक्त का पेमेन्ट आज तक नहीं दिया गया है।
चुनावी मौसम में हताशा का माहौल
बेरोजगारी इस गांव के भूमिहीन लोगों को पलायन करने पर मजबूर कर रही है। गांव में लोगों को रोजगार मिलता नहीं और मजबूर होकर उन्हें पलायन करना पड़ता है। गांव के गरीब तबके के प्रत्येक परिवार के एक या दो व्यक्ति काम की तलाश में पलायन कर चुके हैं। यानी संकट का दायरा बढ़ा है। इस चुनावी मौसम में इस गांव के लोगों की हताशा बड़े सवाल खड़े करती है।
जॉब कार्ड 1674 लोगों को दिए, काम कुछ नहीं मिला
एनडीटीवी को गांव में ऐसे कई लोग मिले जिन्होंने इस बात की पुष्टि की कि गांव में मनरेगा के तहत काम मिलना एक साल से ज्यादा समय से बंद हो चुका है। सरकारी आंकड़े सीताराम पासवान के दावों की तस्दीक करते हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस गांव में 1674 लोगों को मनरेगा के तहत जॉब कार्ड जारी किए गए हैं, लेकिन इस साल अक्टूबर तक किसी को एक दिन भी काम नहीं मिला।
सीताराम पासवान और उनका परिवार।
दो साल पहले की मजदूरी नहीं मिली
जाहिर है, गांव में सैंकड़ों जरूरतमंद लोग हैं जो मनरेगा बंदा होने की वजह से काम के लिए तरस रहे हैं। कुछ की शिकायत है कि उन्होंने मनरेगा के तहत काम मिलना बंद होने से दो साल पहले जो काम किया था उसका पैसा मुखिया ने अभी तक जारी नहीं किया है। यानी जब मनरेगा चालू था उस वक्त का पेमेन्ट आज तक नहीं दिया गया है।
चुनावी मौसम में हताशा का माहौल
बेरोजगारी इस गांव के भूमिहीन लोगों को पलायन करने पर मजबूर कर रही है। गांव में लोगों को रोजगार मिलता नहीं और मजबूर होकर उन्हें पलायन करना पड़ता है। गांव के गरीब तबके के प्रत्येक परिवार के एक या दो व्यक्ति काम की तलाश में पलायन कर चुके हैं। यानी संकट का दायरा बढ़ा है। इस चुनावी मौसम में इस गांव के लोगों की हताशा बड़े सवाल खड़े करती है।
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