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This Article is From Dec 03, 2018

शिवराज सिंह चौहान की 'ताजपोशी' में कहीं बड़ा रोड़ा न बन जाए यह बात...

शिवराज के लिए ताजपोशी की राह इस बार 'कांटों' से भरी है. इस 'लड़ाई' में मालवा-निमाड़ क्षेत्र निर्णायक भूमिका निभा सकता है. पिछले चुनाव में इसी क्षेत्र ने बीजेपी के सत्‍तासीन होने का मार्ग प्रशस्‍त किया था और अब यही खेल बिगाड़ सकता है.

शिवराज सिंह चौहान की 'ताजपोशी' में कहीं बड़ा रोड़ा न बन जाए यह बात...
मध्‍यप्रदेश में बीजेपी यदि जीती तो शिवराज सिंह चौथी बार राज्‍य के मुख्‍यमंत्री का पद संभालेंगे (फाइल फोटो)
मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनाव (Assembly Polls 2018) में क्‍या शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) अपनी सल्‍तनत बचा पाने में सफल रहेंगे..? यह सवाल इन दिनों सबसे ज्‍यादा गूंज रहा है. 28 नवंबर को वोटिंग के बाद बीजेपी और कांग्रेस, दोनों के दिग्‍गज नेताओं की निगाह 11 दिसंबर को आने वाले परिणामों पर टिकी है. बीजेपी के लिए इस बार चुनाव बेहद कठिन रहे हैं. 15 साल की एंटी इनकमबेंसी के अलावा उनका मुकाबला एकजुट कांग्रेस से है. ऐसे में वोटरों का जनादेश किस पार्टी के पक्ष में होगा, हर कोई अटकलें लगाने में व्‍यस्‍त है. दोनों पाटियों की ओर से जीत को लेकर बढ़-चढ़कर दावे किए जा रहे हैं लेकिन इसमें कहीं न कहीं शंका के भाव भी छुपे हैं. सियासत के जानकारों की मानें तो शिवराज के लिए ताजपोशी की राह इस बार 'कांटों' से भरी है. इस 'लड़ाई' में मालवा-निमाड़ क्षेत्र (Maiwa-Nimar Region) निर्णायक भूमिका (कांग्रेस के लिहाज से) निभा सकता है. पिछले चुनाव में इसी क्षेत्र ने बीजेपी के सत्तासीन होने का मार्ग प्रशस्‍त किया था और अब यही 'भगवा पार्टी' का खेल बिगाड़ सकता है.

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मध्‍यप्रदेश के चुनावों में इस बार के रिकॉर्ड मतदान (करीब 75 फीसदी) ने भी पार्टियों को हैरानी में डाला है. सामान्‍य तौर पर अधिक वोटिंग को सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ एकजुट रुझान का प्रतीक माना जाता है. इंदौर से सांसद और लोकसभा स्‍पीकर सुमित्रा महाजन भी दबी जुबान से इस बारे में आशंका जाहिर कर चुकी हैं. बहरहाल, बीजेपी की बात करें तो वह वोटिंग प्रतिशत में इजाफे को भी अपने पक्ष में मान रही है. सियासत के लिहाज से मध्‍यप्रदेश को पांच क्षेत्रों-बुंदेलखंड, चंबल-ग्‍वालियर, महाकौशल, मालवा-निमाड़ और विंध्‍य में बांटा गया है, इसमें से मालवा-निमाड़ अंचल 66 विधायकों को चुनकर भेजता है. इस क्षेत्र में इस बार 74.2 फीसदी वोटिंग हुई है,  बीजेपी ने वर्ष 2013 के चुनावों में यहां 56 सीटों पर कब्‍जा किया था. इसमें मालवा की 45 और निमाड़ की 11 सीटें शामिल थीं.

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क्षेत्र की सियासत पर बारीक नजर रखने वाले पत्रकार मुनीष शर्मा के अनुसार, इस बार कांग्रेस यहां 30 या इससे ज्‍यादा सीटें जीत सकती है. वरिष्‍ठ पत्रकार और इंदौर प्रेस क्‍लब के अध्‍यक्ष अरविंद तिवारी का भी लगभग यही आकलन है. वैसे, यह अभी केवल अनुमान है लेकिन यदि वास्‍तविकता में तब्‍दील हुआ तो बीजेपी की उम्‍मीदों को करारा झटका लग सकता है. मालवा अंचल के बड़े शहर इंदौर को बीजेपी का गढ़ माना जाता रहा है लेकिन कांग्रेस इस बार यहां भी अच्‍छा प्रदर्शन करने को लेकर आश्‍वस्‍त है. पिछली बार इंदौर जिले की सात सीटों में से कांग्रेस केवल एक सीट जीत पाई थी, लेकिन बार उसकी निगाह दो से तीन सीटों पर टिकी है.

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समग्र रूप से देखें तो बीजेपी की सीटों में यदि कमी आई तो यह किसानों की इसके प्रति नाराजगी के कारण होगी. उज्‍जैन संभाग के मंदसौर जिले में किसानों पर की गई फायरिंग को अभी तक लोग भूले नहीं हैं. इस फायरिंग में छह किसानों को जान गंवानी पड़ी थी. बीजेपी नेताओं को डर सताने लगा है कि इसकी परिणति पार्टी के खिलाफ वोट के रूप में सामने न आ जाए. कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किसानों को लुभाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी. कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) हर भाषण में एक से 10 तक गिनती दोहराते हुए कहते थे कि उनकी पार्टी सत्‍ता में आई तो 10 दिन के अंदर किसानों के दो लाख रुपये तक के कर्जे माफ कर देगी. सिंचाई के लिए बिजली के बिल को भी हाफ करने का वादा किया गया है. मतलब कर्ज माफ और बिजली का खर्च हाफ. किसान भी अब सयाने हो गए हैं. कुछ किसानों ने तो इस आस में कि कांग्रेस सत्‍ता में आ सकती है, अपने कर्ज की किस्‍तें भी चुकानी बंद कर दी हैं.

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कर्ज माफी का यह वादा केवल मालवा-निमाड़ ही नहीं, पूरे सूबे में कांग्रेस के लिए 'मास्‍टर स्‍ट्रोक' साबित हो सकता है. कृषि के लिहाज से मध्‍यप्रदेश, देश का अग्रणी राज्‍य हैं और यह वादा किसानों को लुभा रहा है. मालवा-निमाड़ अंचल के अलावा ग्‍वालियर-चंबल (Chambal) क्षेत्र में भी कांग्रेस अपने प्रदर्शन को बेहतर कर सकती है. इस क्षेत्र के ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को कांग्रेस के बहुमत हासिल करने की स्थिति में मुख्‍यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा है. सिंधिया को चुनाव में बड़ी जिम्‍मेदारी देकर कांग्रेस ने अपने पत्ते पूरी सफाई से चले हैं. मालवा-निमाड़ और ग्‍वालियर-चंबल क्षेत्र में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई बीजेपी बुंदेलखंड और महाकौशल क्षेत्र से करना चाहेगी लेकिन यह सवाल बरकरार है कि क्‍या ऐसा हो पाएगा. वहां के कई विधायकों को लेकर भी लोगों में नाराजगी है. कुल मिलाकर, कांग्रेस ने इस बार बीजेपी की सत्ता की राह कठिन बना दी है. यदि मध्‍यप्रदेश में कांग्रेस सत्‍ता में वापसी करने में कामयाब रही तो 2019 के लोकसभा चुनाव और अधिक रोमांचक हो जाएंगे...

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