
वाराणसी:
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की लड़ाई अब अपने अंतिम मोड़ तक पहुंच गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की साख कैसे बचे, इस जददोजहद में भाजपा का पूरा केंद्रीय नेतृत्व जुटा हुआ है. बावजूद इसके भाजपा प्रत्याशियों को विरोधियों के साथ ही अपनों की भी चुनौती मिल रही है, जिससे कई सीटों पर लड़ाई रोचक होती नजर आ रही है.
वाराणसी में कुल आठ विधानसभा क्षेत्र हैं. सेवापुरी, शिवपुरी, अजगरा, पिंडरा, शहर उत्तरी, शहर दक्षिणी, बनारस कैंट और रोहनियां. पिछले विधानसभा चुनाव 2012 में बनारस की तीन सीटों वाराणसी कैंट, वाराणसी उत्तरी और वाराणसी दक्षिणी सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा था.
फिलहाल बनारस में भाजपा को इन अपनी तीनों सीटें बचाने के लिए एड़ी चोटी का संघर्ष करना पड् रहा है, जबकि सेवापुरी विधानसभा में भी कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है.
वाराणसी दक्षिणी सीट : मोदी के संसदीय क्षेत्र में यदि कोई सीट सबसे अधिक चर्चा में है तो वह वाराणसी दक्षिणी सीट है. इसकी वजह यहां से भाजपा के दिग्गज व वर्तमान विधायक विधायक और लगातार सात बार चुनाव जीत चुके श्यामदेव राय चौधरी का टिकट कटना है.
इस सीट को ब्राह्मण बहुल सीट मानी जाती है. यहां से भाजपा ने वर्तमान विधायक श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को मैदान में उतारा है. इसी सीट से सपा व कांग्रेस गठबंधन की तरफ से राजेश मिश्रा को टिकट मिला है. राजेश हालांकि बनारस से कांग्रेस के टिकट पर एक बार सांसद भी चुने जा चुके हैं. बावजूद इसके उन्हें भी मतदाताओं के बीच कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है.
बसपा ने यहां से राकेश त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. वह अपने विरोधियों को कडी टक्कर दे रहे हैं. इलाके के लोग बताते हैं कि ब्राह्मण बहुल सीट पर जीत की कुंजी मुस्लिम व दलित मतदाताओं के पास है. यहां मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा की तरफ माना जा रहा है. ऐसे में राजेश मिश्रा भाजपा उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
इधर, भाजपा के नेताओं का दावा है कि कड़ी मशक्कत के बाद पार्टी के नाराज कार्यकर्ताओं को मना लिया गया है. लेकिन भाजपा सूत्रों की मानें तो कई बागी अंदरखाने ही भाजपा से भितरघात करने में जुटे हुए हैं.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, "कहीं कोई नाराजगी नहीं है. सबको मना लिया गया है. भाजपा के सभी कार्यकर्ता पार्टी को जिताने में जुटे हैं. कुछ बागी कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया है."
हालांकि श्यामदेव राय चौधरी की नाराजगी से भाजपा को किस कदर नुकसान हो रहा था, इसका अदांजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा आला कमान को एक वर्ष पहले ही बकायदा एक प्रेस नोट जारी कर यह कहना पड़ा कि पार्टी उन्हें विधान परिषद में भेजेगी.
वाराणसी उत्तरी सीट : वाराणसी उत्तरी सीट पर भी भाजपा विरोधियों और अपनों के बीच फंसी है. यहां से भाजपा ने वर्तमान विधायक रवींद्र जायसवाल को टिकट दिया है. सपा व कांग्रेस गठबंधन की तरह से अब्दुल समद अंसारी चुनाव मैदान में हैं. बसपा ने सुजीत कुमार मौर्य को इस सीट से टिकट दिया है.
शहर उत्तरी से भाजपा के बागी उम्मीदवार सुजीत सिंह टीका मैदान में भाजपा का खेल बिगाड़ने में लगे हुए हैं. पार्टी ने हालांकि उन्हें पार्टी से निकाल दिया है और वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. अब्दुल समद अंसारी के एकलौते मुस्लिम होने की वजह से मुस्लिम मतदाताओं का रुझान उनकी तरफ माना जा रहा है.
टीका ने हालांकि कहा कि भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान देने की बजाय पार्टी से निष्कासित कर दिया. अब हम निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. जनता तय करेगी कि हमारा भविष्य क्या होगा. भाजपा को इस बार जनता ही सबक सिखाएगी.
इस सीट से भाजपा के ही एक और कार्यकर्ता अशोक कुमार सिंह भी चुनाव मैदान में हैं. वह भी प्रत्याशियों के बीच कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हालांकि मतदाताओं का कितना समर्थन मिलेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.
वाराणसी में कुल आठ विधानसभा क्षेत्र हैं. सेवापुरी, शिवपुरी, अजगरा, पिंडरा, शहर उत्तरी, शहर दक्षिणी, बनारस कैंट और रोहनियां. पिछले विधानसभा चुनाव 2012 में बनारस की तीन सीटों वाराणसी कैंट, वाराणसी उत्तरी और वाराणसी दक्षिणी सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा था.
फिलहाल बनारस में भाजपा को इन अपनी तीनों सीटें बचाने के लिए एड़ी चोटी का संघर्ष करना पड् रहा है, जबकि सेवापुरी विधानसभा में भी कांटे की टक्कर दिखाई दे रही है.
वाराणसी दक्षिणी सीट : मोदी के संसदीय क्षेत्र में यदि कोई सीट सबसे अधिक चर्चा में है तो वह वाराणसी दक्षिणी सीट है. इसकी वजह यहां से भाजपा के दिग्गज व वर्तमान विधायक विधायक और लगातार सात बार चुनाव जीत चुके श्यामदेव राय चौधरी का टिकट कटना है.
इस सीट को ब्राह्मण बहुल सीट मानी जाती है. यहां से भाजपा ने वर्तमान विधायक श्यामदेव राय चौधरी का टिकट काटकर नीलकंठ तिवारी को मैदान में उतारा है. इसी सीट से सपा व कांग्रेस गठबंधन की तरफ से राजेश मिश्रा को टिकट मिला है. राजेश हालांकि बनारस से कांग्रेस के टिकट पर एक बार सांसद भी चुने जा चुके हैं. बावजूद इसके उन्हें भी मतदाताओं के बीच कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है.
बसपा ने यहां से राकेश त्रिपाठी को मैदान में उतारा है. वह अपने विरोधियों को कडी टक्कर दे रहे हैं. इलाके के लोग बताते हैं कि ब्राह्मण बहुल सीट पर जीत की कुंजी मुस्लिम व दलित मतदाताओं के पास है. यहां मुस्लिम मतदाताओं का रुझान सपा की तरफ माना जा रहा है. ऐसे में राजेश मिश्रा भाजपा उम्मीदवार को कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
इधर, भाजपा के नेताओं का दावा है कि कड़ी मशक्कत के बाद पार्टी के नाराज कार्यकर्ताओं को मना लिया गया है. लेकिन भाजपा सूत्रों की मानें तो कई बागी अंदरखाने ही भाजपा से भितरघात करने में जुटे हुए हैं.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, "कहीं कोई नाराजगी नहीं है. सबको मना लिया गया है. भाजपा के सभी कार्यकर्ता पार्टी को जिताने में जुटे हैं. कुछ बागी कार्यकर्ताओं को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया है."
हालांकि श्यामदेव राय चौधरी की नाराजगी से भाजपा को किस कदर नुकसान हो रहा था, इसका अदांजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा आला कमान को एक वर्ष पहले ही बकायदा एक प्रेस नोट जारी कर यह कहना पड़ा कि पार्टी उन्हें विधान परिषद में भेजेगी.
वाराणसी उत्तरी सीट : वाराणसी उत्तरी सीट पर भी भाजपा विरोधियों और अपनों के बीच फंसी है. यहां से भाजपा ने वर्तमान विधायक रवींद्र जायसवाल को टिकट दिया है. सपा व कांग्रेस गठबंधन की तरह से अब्दुल समद अंसारी चुनाव मैदान में हैं. बसपा ने सुजीत कुमार मौर्य को इस सीट से टिकट दिया है.
शहर उत्तरी से भाजपा के बागी उम्मीदवार सुजीत सिंह टीका मैदान में भाजपा का खेल बिगाड़ने में लगे हुए हैं. पार्टी ने हालांकि उन्हें पार्टी से निकाल दिया है और वह निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. अब्दुल समद अंसारी के एकलौते मुस्लिम होने की वजह से मुस्लिम मतदाताओं का रुझान उनकी तरफ माना जा रहा है.
टीका ने हालांकि कहा कि भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को सम्मान देने की बजाय पार्टी से निष्कासित कर दिया. अब हम निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं. जनता तय करेगी कि हमारा भविष्य क्या होगा. भाजपा को इस बार जनता ही सबक सिखाएगी.
इस सीट से भाजपा के ही एक और कार्यकर्ता अशोक कुमार सिंह भी चुनाव मैदान में हैं. वह भी प्रत्याशियों के बीच कड़ी मेहनत कर रहे हैं. हालांकि मतदाताओं का कितना समर्थन मिलेगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी.
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