नई दिल्ली:
मथुरा की मांट सीट पर इस बार कांटे की टक्कर है. मथुरा की मांट सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला है. अगर 2014 के चुनावी नतीजों को आधार मानें तो बीजेपी उम्मीदवार की सपा-कांग्रेस से जीत का फासला सिर्फ 4.4% का बनता है और मतदाताओं के मूड में हल्के से बदलाव से बाजी पलट सकती है.
मांट निवासी अर्जुन चौधरी कहते हैं, "2014 के मुकाबले 2017 में जातीय समीकरण बदले हैं. इस बार मांट विधान सभा क्षेत्र में 3 पार्टी उम्मीदवारों के बीच में जाट वोट बंट रहा है''. उनके दोस्त लक्ष्मी नारायण तिवारी कहते हैं, "इस बार मांट में नोटबंदी एक चुनावी मुद्दा है. किसान इस इलाके में नोटबंदी के दौरान परेशान हुए."
इस चुनाव क्षेत्र में जाट वोटर्स एक लाख से ज्यादा हैं और इस बार कांग्रेस-सपा गठबंधन और राष्ट्रीय लोकदल ने जाट उम्मीदवारों को यहां चुनाव मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने इस बार एसके शर्मा और बसपा ने मांट के 7 बार के विधायक श्याम सुंदर शर्मा को उम्मीदवार बनाया है. ये दोनों ब्राह्मण समुदाय से हैं. जाटों के बाद इस विधानसभा में सबसे ज्यादा वोटर ब्राह्मण समुदाय से हैं.
लोकसभा चुनावों में यहां से हेमा मालिनी सांसद बनीं, लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि मांट इलाके में विकास की जरुरतों को नज़रअंदाज किया जाता रहा है और 2014 के बाद भी कुछ नहीं बदला. इस बात को लेकर लोगों में नाराज़गी है कि सरकारों ने मथुरा ज़िले के सिर्फ चुने हुए इलाकों के विकास पर ही ध्यान दिया, जबकि मांट की ज़रुरतों को पिछले कुछ साल में नजरअंदाज़ किया जाता रहा है.
मांट निवासी भगवा स्वरूप कहते हैं, "मांट क्षेत्र की किसी को फिक्र नहीं है. यहां का कभी विकास नहीं हो पाया." जबकि कौशल किशोर शर्मा कहते हैं, "हमने हेमा मालिनी को यहां से जिताया, लेकिन फिर भी यहां कुछ नहीं बदला है". ऐसे में सिर्फ सवा दो फीसदी वोटर का मिजाज बदलना ही नतीजे उलट-पलट कर सकता है.
मांट निवासी अर्जुन चौधरी कहते हैं, "2014 के मुकाबले 2017 में जातीय समीकरण बदले हैं. इस बार मांट विधान सभा क्षेत्र में 3 पार्टी उम्मीदवारों के बीच में जाट वोट बंट रहा है''. उनके दोस्त लक्ष्मी नारायण तिवारी कहते हैं, "इस बार मांट में नोटबंदी एक चुनावी मुद्दा है. किसान इस इलाके में नोटबंदी के दौरान परेशान हुए."
इस चुनाव क्षेत्र में जाट वोटर्स एक लाख से ज्यादा हैं और इस बार कांग्रेस-सपा गठबंधन और राष्ट्रीय लोकदल ने जाट उम्मीदवारों को यहां चुनाव मैदान में उतारा है, जबकि बीजेपी ने इस बार एसके शर्मा और बसपा ने मांट के 7 बार के विधायक श्याम सुंदर शर्मा को उम्मीदवार बनाया है. ये दोनों ब्राह्मण समुदाय से हैं. जाटों के बाद इस विधानसभा में सबसे ज्यादा वोटर ब्राह्मण समुदाय से हैं.
लोकसभा चुनावों में यहां से हेमा मालिनी सांसद बनीं, लेकिन स्थानीय लोग कहते हैं कि मांट इलाके में विकास की जरुरतों को नज़रअंदाज किया जाता रहा है और 2014 के बाद भी कुछ नहीं बदला. इस बात को लेकर लोगों में नाराज़गी है कि सरकारों ने मथुरा ज़िले के सिर्फ चुने हुए इलाकों के विकास पर ही ध्यान दिया, जबकि मांट की ज़रुरतों को पिछले कुछ साल में नजरअंदाज़ किया जाता रहा है.
मांट निवासी भगवा स्वरूप कहते हैं, "मांट क्षेत्र की किसी को फिक्र नहीं है. यहां का कभी विकास नहीं हो पाया." जबकि कौशल किशोर शर्मा कहते हैं, "हमने हेमा मालिनी को यहां से जिताया, लेकिन फिर भी यहां कुछ नहीं बदला है". ऐसे में सिर्फ सवा दो फीसदी वोटर का मिजाज बदलना ही नतीजे उलट-पलट कर सकता है.
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