नमस्कार मैं रवीश कुमार, बारात और चुनाव में असंतुष्ट न हों तो मज़ा नहीं आता है। बारात में फूफा जी जीजा जी नाराज़ हो जाते हैं तो चुनाव में वर्ना जी शर्मा जी उपाध्याय जी। मगर दोनों में फर्क है। बारात में नाराज़ होने वाले लोकतंत्र का कुछ भी भला नहीं करते हैं, उल्टा उनको मनाने के चक्कर में नाश्ता छूट जाता है। प्लेट में बचे दालमोट से ही काम चलाना पड़ता है। लेकिन ये जो टिकट न मिलने पर नाराज़गी का प्रदर्शन करते हैं, उनके लोकतंत्र में योगदान को लेकर मैं कंफ्यूज़ हूं।
जैसे ये बीजेपी नेता अभय वर्मा जी के समर्थक हैं जिन्हें दिल्ली के लक्ष्मीनगर से टिकट न मिलने पर प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर इनका सवाल पार्टी में लोकतंत्र से जुड़ा है तो इन्होंने हफ्ताभर पहले पार्टी में आईं किरण बेदी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने पर धरना क्यों नहीं दिया। जैसे ही प्रभात झा के खिलाफ अभय वर्मा के समर्थकों ने नारे लगाए, प्रभात जी ने दस चेकेंड में चुप होने का फरमान जारी कर दिया। सबने दस सेकेंड की लाज रख ली। राजनाथ सिंह से लेकर सतीश उपाध्याय तक सबने कहा है कि पार्टी में असंतोष नहीं है। तभी मुख्यमंत्री पद की वर्तमान उम्मीदवार के प्रचार में निकले मुख्यमंत्री पद के पूर्व उम्मीदवार डॉक्टर हर्षवर्धन खुश नज़र आ रहे थे।
ऐसे पांव पोछा जाता है किसी मूर्ति को माला पहनाने से पहले। किरण बेदी ने लाला लाजपत राय की मूर्ति का घर के बुजुर्ग की तरह सम्मान किया। लेकिन माल्यार्पण के बाद बीजेपी का पटका पहना देने पर सोशल मीडिया में विवाद हो गया। केजरीवाल ने भी ट्वीट किया कि किरण जी से अनुरोध हैं कि लाला लाजपत राय जी को छोड़ दें। किरण बेदी ने अपने पर्चा भरने के बाद कहा, मैंने पर्चा दिया है, कोई गलती नहीं पाई गई है, हम फर्स्ट क्लास फर्स्ट से पास हो गए हैं। पर्चा भरने में भी डिविज़न मिलता है यह सुनकर अच्छा लगा।
आम आदमी पार्टी ने किरण बेदी की नामांकन जुलूस की भव्यता पर सवाल किये हैं, लेकिन मैं महत्व नहीं देता क्योंकि नामांकन में कितने लोग गए यह हार जीत का प्रतीक नहीं है। बल्कि दो चार ही जाएं वही अच्छा रहता है। लेकिन क्या करें हर चुनाव में बड़े नेता नामांकन को किसी राजसूय यज्ञ की तरह बनाने में लग जाते हैं। किरण बेदी और उनके पति की चल अचल संपत्ति 11 करोड़ 60 लाख के आस पास है। दिल्ली के उदय पार्क और द्वारका में फ्लैट है। यूपी के गौतमबुद्ध नगर में है। पुणे और गुड़गांव में खेती की ज़मीन है। किरण और केजरीवाल दोनों के पास यूपी में मकान है। कभी नारायण दत्त तिवारी को यूपी और उत्तराखंड का मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल हुए था, अब यूपी इस बात पर गौरव करेगा कि उसके राज्य में दो-दो मुख्यमंत्रियों के मकान हैं।
अजय माकन की संपत्ति छह महीने में 6 करोड़ बढ़ गई है। माकन मंगलवार से ही बहस के लिए तैयार हैं। बहस तो हुई नहीं लेकिन बीजेपी सांसद मनोज तिवारी ने अलग से केजरीवाल को चुनौती दे दी। यानी बहस के लिए बीजेपी में भी कुछ लोग उतावले हैं, बस किरण बेदी को लेकर जोश शांत हो जाता है। केजरीवाल दूसरे दिन भी बहस की मांग को लेकर ट्वीट करते रहे इसी बीच खबर आई कि अरविंद केजरीवाल की संपत्ति लोकसभा के मुकाबले दो लाख रुपये कम हो गई है। शायद इसीलिए वे फ्री वाईफाई पर ज़ोर दे रहे हैं।
यह सब हुआ और हर चुनाव में होता है। किरण बेदी ने आर एस एस को राष्ट्रवादी संगठन बताया है। यह भी एक लैंडमार्क है भारतीय राजनीति का। बीजेपी से अलग होने पर आर एस एस देश के लिए खतरनाक और शामिल होने पर राष्ट्रवाद। आर एस एस को भी ऐसे सर्टिफिकेट से सतर्क रहने की ज़रूरत है।
प्रधानमंत्री मोदी को भी सतर्क रहना चाहिए उनकी किसी कथित तारीफ के कारण कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी का पत्रकारों ने खूब पीछा किया। मगर खंडन भी नहीं हो सका और कंफर्म भी नहीं। मैं प्रधानमंत्री और जनार्दन द्विवेदी दोनों की तारीफ करता हूं। लेकिन क्या आपने इन कालोनियों की तारीफ सुनी हैं जिनके नाम हैं
प्रेम नगर -2, जे ब्लॉक, किरारी
सुलेमान नगर, नांगलोई, नूरनगर एक्सटेंशन, जामिया नगर, संगम विहार, ए-ब्लॉक, नई दिल्ली-62
प्रेम नगर-2, एलएमपीक्यू, ब्लॉक, किरारी, सुलेमान नगर, नांगलोई, नई दिल्ली, शास्त्री पार्क एक्सटेंशन, (बुलंद मस्जिद), दिल्ली-53, जैतपुर एक्सटेंशन, के-ब्लॉक, बदरपुर, नई दिल्ली, वेस्ट ब्लॉक, फ्रैंड्स एनक्लेव, मुंडका, दिल्ली-41
इन्हें अनियमित कालोनी कहते हैं। 1911 से भारत की नियमित राजधानी दिल्ली की अनियमित कालोनियां जिनमें साठ लाख लोग रहते हैं। इनकी नागरिकता वैध है, मगर घर का पता अवैध। अक्सर चुनावों से पहले इन्हें नियमित करने का फरमान जारी होते रहता है। हम आज इसी पर बहस करना चाहते हैं कि दिल्ली में नियमित करने की जो पोलिटिक्स है उस पर हर दल के नेता क्यों सोचते हैं।
2014 के दिसबंर में मोदी सरकार ने 1939 कालोनियों को नियमित करने का फैसला किया। इसके लिए सरकार ने नियमित करने की समय सीमा बढ़ा कर जून 2014 कर दी यानी इस समय तक जो भी जहां भी कोलनी अवैध तरीके से बसी है, सबको कानूनी मान्यता मिलेगी। 2012 में यूपीए सरकार ने भी ऐसा ही फैसला किया था कि हम प्रोविजनल सर्टिफिकेट दे रहे हैं, लेकिन इन कालोनियों की हालत वही है जो पहले थी।
साठ लाख लोग किन हालात में रहते हैं अगर आप एक भी झुग्गी झोपड़ी में चले जाएं तो लौटकर ट्वीटर करना भूल जायेंगे। कुछ दिनों तक इंडिया इंडिया करना भूल जाएंगे। खैर दिसंबर में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि यूपीए ने ऐसा फैसला लिया था मगर कैबिनेट की मंज़ूरी नहीं मिली थी। इस बार मिल गई इसलिए हम नियमित करने की गाइडलाइन बनाने जा रहे हैं। यूपीए के फैसले को भी मास्टर स्ट्रोक कहा गया और एन डी ए सरकार के फैसले को भी मास्टर स्ट्रोक कहा गया। आम आदमी पार्टी ने सवाल किया कि केंद्र सरकार ने कालोनियों को नियमित करने का कट ऑफ डेट बढ़ा दिया है। जून 2014 तक कर दिया है इससे ज्यादा कुछ नहीं किया है।
तो आज दिल्ली के साठ लाख लोगों से जुड़े मुद्दे पर चर्चा होगी। तीनों पार्टी के नेताओं से विनम्र निवेदन हैं कि जो भी कहें आरोप या प्रत्यारोप या दावा सब इसी मुद्दे से संबंधित हों। ताकि गुरुवार को जब मैं सड़क पर जाऊं तो दिल्ली के उन साठ लाख लोगों में जो भी मिले यह सके कि हमारी कालोनी को लेकर नेता कम से कम ईमानदार तो हैं। कम से कम बातें तो अच्छी करते हैं। प्राइम टाइम
This Article is From Jan 21, 2015
अनियमित कॉलोनियों पर सियासत
Ravish Kumar, Rajeev Mishra
- Assembly Polls 2015,
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Updated:जनवरी 21, 2015 21:48 pm IST
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Published On जनवरी 21, 2015 21:35 pm IST
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Last Updated On जनवरी 21, 2015 21:48 pm IST
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