कांग्रेस ने यह तय किया है कि दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगें। कहा गया कि जिस तरह से कांग्रेस ने अजय माकन को विधानसभा चुनाव में उतारा है उससे लवली को लगा कि उनसे किनारा किया जा रहा है।
बात भी सही है प्रदेश अध्यक्ष कोई और हो और सीएम का उम्मीदवार कोई और, यह बात कई प्रदेश अध्यक्ष को हजम नहीं होती। मगर अब कांग्रेस में ऐसा ही होगा।
राहुल गांधी ने धीरे-धीरे उन सभी चीजों को लागू करना शुरू कर दिया है। राहुल ने जयपुर के चिंतन शिविर में यह कहा था कि प्रदेश अध्यक्ष विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे बल्कि चुनाव लड़वाएंगे।
राहुल गांधी के इस आइडिया के पहले शिकार बने हैं अरविंदर सिंह लवली। ये कांग्रेस का आधिकारिक स्पष्टीकरण है। मगर यह भी सही है कि अजय माकन को ठीक चुनाव से पहले पार्टी का चेहरा बनाया गया है, उससे ये साफ है कि अब दिल्ली की राजनीति में शीला दीक्षित के लिए कोई जगह नहीं है और अब अजय माकन को दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय के बजाय दिल्ली की सड़कों की खाक छाननी पड़ेगी।
वैसे दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष और सीएम के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है। एक समय अपने तीसरे कार्यकाल में शीला दीक्षित और प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल के बीच बातचीत तक नहीं होती थी। यही हाल उस वक्त भी था जब राम बाबू शर्मा प्रदेश अध्यक्ष थे।
हाल के कई चुनावों में आपसी गुटबाजी की वजह से कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ है। हरियाणा में तो हुड्डा से नाराज लोगों की लंबी लिस्ट थी।
कई नेता इसी वजह से चुनाव के दौरान घर बैठ गए तो कुछ बीजेपी में चले गए। दिल्ली में लवली का कद उस दिन से बढ़ना शुरू हुआ था जब विधानसभा में उन्होंने आम आदमी पार्टी को सर्मथन दिए जाने पर जोरदार भाषण दिया था।
लेकिन, अब राहुल गांधी के इस फैसले का फायदा होता है या नुकसान इसके लिए इंतजार करना होगा क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस के आठ विधायकों में चार मुस्लिम और एक सिख है। यदि कांग्रेस अपनी संख्या आठ से बढ़ा लेती है तो राहुल गांधी के इस फैसले को सराहा जाएगा वरना फिर से एक और आलोचना।
वैसे अजय माकन का एक कद है, खेलमंत्री और बाद में बिल्डरों के खिलाफ बिल लाकर माकन अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुके हैं।
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