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This Article is From Feb 09, 2015

जानिए, क्या था दिल्ली विधानसभा चुनाव का टर्निंग प्वाइंट

Sharad Sharma, Vivek Rastogi
  • Assembly Polls 2015,
  • Updated:
    फ़रवरी 10, 2015 08:40 am IST
    • Published On फ़रवरी 09, 2015 20:15 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 10, 2015 08:40 am IST

दिल्ली विधानसभा चुनाव उस वक्त उफान पर पहुंच गया था, जब बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता को टक्कर देने के लिए देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी रहीं किरण बेदी को बीजेपी में शामिल कर लिया।

इस कदम से आम आदमी पार्टी के नेताओं में एक तरह का डर साफ दिखने लगा, क्योंकि किरण के आने से पहले दिल्ली के सबसे बड़े वोटर ग्रुप, यानि मिडिल क्लास के, बीजेपी की तरफ जाने का डर था। ऊपर से यह ख़बर भी चलने लगी कि किरण बेदी खुद केजरीवाल के खिलाफ नई दिल्ली से चुनाव लड़ सकती हैं। सो, अब चूंकि नई दिल्ली सरकारी कर्मचारियों से, यानि मिडिल क्लास से, भरी सीट है, सो, ऐसे में खतरा यह भी था कि केजरीवाल खुद भी चुनाव न हार जाएं।

लेकिन कुछ ही दिन बाद सोमवार, 19 जनवरी की रात 11 बजे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जिस तरह किरण बेदी को दिल्ली का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार और पूर्वी दिल्ली की कृष्णा नगर सीट से उम्मीदवार बनाया, उससे बहुत खराब संदेश गया।

संदेश यह गया कि जब बीजेपी बाकी राज्यों में केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे रखकर बिना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए चुनाव लड़ रही है, और दिल्ली के लिए भी वह यही नीति अपनाने का ऐलान कर चुकी थी, तो आखिर क्यों अचानक बीजेपी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के नाम का ऐलान करना पड़ गया और वह भी इम्पोर्टेड उम्मीदवार...?

ऊपर से कृष्णा नगर जैसी सेफ सीट से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी को लड़ाने का फैसला सुनाकर बीजेपी ने संदेश दिया कि उसके पास अरविंद केजरीवाल की टक्कर का कोई नेता नहीं, शायद इसीलिए नई दिल्ली सीट से पार्टी ने नूपुर शर्मा जैसे अनजान नाम को लड़ाने का फैसला किया।

बस, यही दिल्ली चुनाव का टर्निंग प्वाइंट था, क्योंकि एक तरफ बीजेपी ने खुद अपने कमज़ोर होने का संदेश दिया, और दूसरी तरफ अगली ही सुबह अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली से नामांकन करने जाते समय इस चुनाव का सबसे बड़ा रोडशो करके अपनी ताकत का एहसास करा दिया और बस इसके बाद से आम आदमी पार्टी ने जो बढ़त बीजेपी पर बनाई, वह बीजेपी के एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने के बाद भी कायम रही।

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