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This Article is From Jan 11, 2018

Swami Vivekananda:संस्कृति वस्त्रों में नहीं चरित्र में है, पढ़ें उनसे जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें

स्वामी विवेकानंद की आज 155वीं जयंती है. उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था. भारत में उनका जन्‍मदिन 'युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है. संन्यास लेने से पहले उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था.

Swami Vivekananda:संस्कृति वस्त्रों में नहीं चरित्र में है, पढ़ें उनसे जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें
स्वामी विवेकानंद की आज 155वीं जयंती है. उनका जन्म 2 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था.
नई दिल्ली: स्वामी विवेकानंद की आज 155वीं जयंती है. उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था. भारत में उनका जन्‍मदिन 'युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है. संन्यास लेने से पहले उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था. रामकृष्ण परमहंस से संपर्क में आने के बाद नरेंद्रनाथ ने करीब 25 साल की उम्र में संन्यास ले लिया.  स्वामी रामकृष्ण परमहंस के देहांत के बाद स्वामी विवेकानंद ने पूरे देश में रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी. स्‍वामी विवेकानंद से जुड़ी कई कहानियां और किस्‍से हैं जो जीवन और उद्देश्य बदलने के लिए प्रेरणा बन सकती हैं.

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मां से बड़ा धैर्यवान कोई नहीं
स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया, मां की महिमा संसार में किस कारण से गाई जाती है? स्वामी जी मुस्कराए, उस व्यक्ति से बोले, पांच सेर वजन का एक पत्थर ले आओ. जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी जी ने उससे कहा, अब इस पत्थर को किसी कपड़े में लपेटकर अपने पेट पर बांध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा. स्वामी जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बांध लिया और चला गया. पत्थर बंधे हुए दिनभर वो अपना कम करता रहा, किन्तु हर छण उसे परेशानी और थकान महसूस हुई.

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शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना फिरना उसके लिए असह्य हो उठा. थका मांदा वह स्वामी जी के पास पंहुचा और बोला मैं इस पत्थर को अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूंगा. एक प्रश्न का उत्तर पाने क लिए मै इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया. मां अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ माह तक ढ़ोती है और ग्रहस्थी का सारा काम करती है. संसार में मां के सिवा कोई इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है. इसलिए मां से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं.

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जानें सच्चे पुरुषार्थ को
एक विदेशी महिला स्वामीजी से बोली, मै आपसे शादी करना चाहती हूं. स्वामीजी बोले, मैं संन्यासी हूं. महिला ने कहा, मैं आपके जैसा गौरवशाली पुत्र चाहती हूं, ये तभी संभव है जब आप मुझसे विवाह करेंगे. स्वामीजी बोले, आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं. महिला स्वामीजी के चरणों में गिर गई और बोली, आप साक्षात ईश्वर हैं. सच्चे पुरुष वो ही हैं जो नारी के प्रति मातृत्व की भावना रखे.
 
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गंगा नदी नहीं हमारी मां है
एक बार अमेरिका में कुछ पत्रकारों ने स्वामीजी से भारत की नदियों के बारे में प्रश्न पूछा, आपके देश में किस नदी का जल सबसे अच्छा है? स्वामीजी बोले- यमुना. पत्रकार ने कहा आपके देशवासी तो बोलते हैं कि गंगा का जल सबसे अच्छा है. स्वामी जी का उत्तर था, कौन कहता है गंगा नदी हैं, वो तो हमारी मां हैं. यह सुनकर सभी लोग स्तब्ध रह गए.

मदद करना सीखो
एक अंग्रेज मित्र कु. मूलर के साथ स्वामीजी मैदान में टहल रहे थे. तभी वहां एक पागल सांड उनकी ओर बढ़ने लगा. मूलर भगते-भगते गिर गया. दोस्त के बचाने के लिए स्वामी विवेकानंद सांड के सामने आ गए. उसके बाद सांड पीछे हटा और निकल गया. जिसके बाद मूलर ने उनसे पूछा कि वे ऐसी खतरनाक स्थिति से सामना करने का साहस कैसे जुटा सके? स्वामीजी ने पत्थर के दो टुकड़े उठाकर उन्हें आपस में टकराते हुए कहा, खतरे और मृत्यु के समक्ष मैं स्वयं को चकमक पत्थर के समान सबल महसूस करता हूं, क्योंकि मैंने ईश्वर के चरण स्पर्श किये हैं.
 
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संस्कृति वस्त्रों में नहीं चरित्र में
एक बार स्वामी जी विदेश गए. उनका भगवा वस्त्र और पगड़ी देख लोगों ने पूछा, आपका बाकी सामान कहां हैं? स्वामी जी बोले, बस यहीं है. इस पर लोगों ने व्यंग किया. फिर स्वामी जी बोले, हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से अलग है. आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं और हमारा चरित्र करता है.

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