
नई दिल्ली:
प्रणब मुखर्जी का इस सप्ताह राष्ट्रपति पद पर एक साल का कार्यकाल पूरा हो गया। राष्ट्रपति के रूप में उनका पहला साल काफी सक्रियता के साथ बीता।
इससे पहले, एक सांसद और बाद में मंत्री के रूप में नियमों और परंपराओं का कड़ाई से पालन करने वाले प्रणब मुखर्जी को जब भी मौका मिलता था, तो वह सदन में बाधा उत्पन्न करने के लिए सांसदों को फटकार भी लगाते रहते थे और साथ ही न्यायपालिका को भी अपनी हदों में रहने की सलाह देते थे।
26/11 के मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की दया याचिकाओं का निपटारा करते समय मुखर्जी की एक सक्रिय राष्ट्रपति की छवि बनी। उनके इस कदम ने विवादों को भी जन्म दिया, लेकिन उनके सहयोगी कहते हैं कि राष्ट्रपति के पास कैबिनेट की सलाह पर काम करने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं था।
पिछले चार दशक से अधिक समय से सार्वजनिक जीवन जीने वाले प्रणब मुखर्जी के बारे में यह सर्वविदित है कि वह लोगों के साथ बहुत जल्द संवाद स्थापित कर लेते हैं और राष्ट्रपति भवन में पहले एक साल के दौरान उनके इस स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया है, जबकि राष्ट्रपति के पद को कड़ाई से प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए जाना जाता है। चाहे खुशी से नारे लगा रही भीड़ से संवाद कायम करने का मामला हो या शिक्षण संस्थानों में देश के सर्वाधिक बौद्धिक वर्ग से चर्चा हो, मुखर्जी लोगों के साथ बातचीत का आनंद उठाते हैं।
इससे पहले, एक सांसद और बाद में मंत्री के रूप में नियमों और परंपराओं का कड़ाई से पालन करने वाले प्रणब मुखर्जी को जब भी मौका मिलता था, तो वह सदन में बाधा उत्पन्न करने के लिए सांसदों को फटकार भी लगाते रहते थे और साथ ही न्यायपालिका को भी अपनी हदों में रहने की सलाह देते थे।
26/11 के मुंबई हमले के दोषी अजमल कसाब और संसद हमले के दोषी अफजल गुरु की दया याचिकाओं का निपटारा करते समय मुखर्जी की एक सक्रिय राष्ट्रपति की छवि बनी। उनके इस कदम ने विवादों को भी जन्म दिया, लेकिन उनके सहयोगी कहते हैं कि राष्ट्रपति के पास कैबिनेट की सलाह पर काम करने के सिवाय कोई और रास्ता नहीं था।
पिछले चार दशक से अधिक समय से सार्वजनिक जीवन जीने वाले प्रणब मुखर्जी के बारे में यह सर्वविदित है कि वह लोगों के साथ बहुत जल्द संवाद स्थापित कर लेते हैं और राष्ट्रपति भवन में पहले एक साल के दौरान उनके इस स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया है, जबकि राष्ट्रपति के पद को कड़ाई से प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए जाना जाता है। चाहे खुशी से नारे लगा रही भीड़ से संवाद कायम करने का मामला हो या शिक्षण संस्थानों में देश के सर्वाधिक बौद्धिक वर्ग से चर्चा हो, मुखर्जी लोगों के साथ बातचीत का आनंद उठाते हैं।
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