दुनिया में ऐसा बहुत कुछ है, जिसके बारे में शायद वैज्ञानिक भी पूरी तरह से नहीं जानते, इसीलिए नई-नई खोजें होती रहती हैं. समुद्र की 13 हजार फीट गहराई में कुछ ऐसा मिला है, जिसे देखकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं. इसकी कल्पना शायद की ही नहीं गई होगी कि जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती, उस अंधेरी तलहटी में ऑक्सीजन भी पैदा हो सकती है. समुद्र की गहराई में वैज्ञानिकों को डार्क ऑक्सीजन (Dark Oxygen In Ocean) मिली है. इसके बाद कई तरह के सवाल उठने लगे हैं. गहरे समंदर में एक अलग तरह की ऑक्सीजन बनना अपने आप में बड़ा सवाल है.
समुद्र की तलहटी में क्या मिला?
अलजजीरा में छपी खबर के मुताबिक, प्रशांत महासागर के क्लेरियन-क्लिपरटन जोन (CCZ) के समुद्र तल पर समुद्र की सतह से 4,000 मीटर नीचे यानी कि करीब 13,000 फीट नीचे खनिज भंडार से उत्सर्जित ऑक्सीजन मौजूद है. इसकी गहराई माउंट एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी की लंबाई से करीब आधी है. ये जानकारी अर्थ साइंस रिसर्च के लिए डेडिकेटेड जर्नल, नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक हालिया स्टडी से सामेन आई है. समुद्र की गहराई में धातु के छोटे-छोटे नॉड्यूल्स पाए गए हैं. ये छोटी गेदों जैसे दिख रहे हैं. ये समुद्र की सतह पर फैली हुई हैं. ये गेदें अपनी खुद की ऑक्सीजन बनाती हैं, जो कि हैरानी भरा है. वैज्ञानिक इसको डार्क ऑक्सीजन कह रहे हैं. अंधेर में ऑक्सीजन पैदा होने की वजह से इसे डार्क ऑक्सीजन कहा जाता है, क्यों कि सूरज की किरणें और रोशनी यहां तक पहुंचती ही नहीं है.
स्कॉटिश एसोसिएशन फॉर मरीन साइंस (SAMA) के प्रोफेसर और संस्थान के समुद्री तल पारिस्थितिकी और जैव-भू-रसायन रिसर्च ग्रुप के टीम चीफ एंड्रयू स्वीटमैन की स्टडी इस बात का सबूत है किप्रकाश संश्लेषण से पैदा होने वाली ऑक्सीजन के अलावा प्लेनेट पर एक और ऑक्सीजन स्रोत भी है.
अब तक वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि प्लेनेट पर ऑक्सीजन का एकमात्र स्रोत पौधों और शैवाल जैसे प्रकाश संश्लेषक जीव हैं, जो मनुष्यों और अन्य जानवरों को सांस लेने के लिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं. इसके बाद समुद्र की गहराई में पाई गई. अब सवाल ये है कि डार्क ऑक्सीजन का क्या महत्व है.
क्या है डार्क ऑक्सीजन?
प्रशांत महासागर में 4.5 मिलियन किलोमीटर यानी कि 1.7 मिलियन वर्ग मील तक क्लेरियन-क्लिपरटन ज़ोन (CCZ) फैला हुआ है. यहां पर कोयले की तरह खनिज चट्टानें हैं, जिन्हें पॉलीमेटेलिक नोड्यूल कहा जाता है. इनमें आमतौर पर मैंगनीज और लोहा होता है. वैज्ञानिकों ने यह पाया कि ये गेंदें बिना सूरज की रोशनी के ही ऑक्सीजन का उत्पादन करती हैं. समुद्र की गहराई में ऑक्सीजन पैदा करने वाले मिनिरल्स वैज्ञानिकों के इस दृष्टिकोण को बदल सकते हैं कि पृथ्वी ग्रह पर जीवन कैसे शुरू हुआ.
डार्क ऑक्सीजन का पता कैसा चला?
डार्क ऑक्सीजन के स्रोत की खोज के 10 साल से ज्यादा समय के बाद यह खोज की गई है. साल 2013 की रिसर्च मिशन का मकसद यह समझना था कि क्लेरियन-क्लिपरटन ज़ोन पर जीवों द्वारा कितनी ऑक्सीजन का उपभोग किया गया था. समुद्र की सतह कर नीचे गिरने वाले लैंडर्स, यांत्रिक प्लेटफ़ॉर्म को 4,000 मीटर (13,000 फीट) नीचे भेजा गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि पानी में ऑक्सीजन का स्तर गहराई के साथ कैसे कम हुआ. हालांकि, रिसर्चर्स ने पाया कि समुद्र तल पर ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा है. यह देखकर वैज्ञानिक एंड्र्यू स्वीटमैन और उनकी टीम हैरान रह गई.
दरअसल अब तक वैज्ञानिकों का मानना था कि गहरे समुद्र में मौजूद ऑक्सीजन समुद्र के ऊपरी हिस्से और जमीन से आती है, पौधों, प्लवक और शैवाल प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया का उपयोग करके इसे पैदा करते हैं. आमतौर पर जैसे-जैसे पानी की गहराई में जाया जाता है, ऑक्सीजन का स्तर कम होता जाता है. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. यहां पर ऑक्सीजन का लेवल बढ़ा हुआ पाया गया. वैज्ञानिक स्वीटमैन को पहले तो लगा कि उनके उपकरण के सैंसर्स खराब हो गए हैं लेकिन दोबारा जांच की गई.
डार्क ऑक्सीजन की खोज का महत्व?
विज्ञान हमेशा सत्यापन के सिद्धांतों पर काम करता है, इसलिए इन निष्कर्षों को अन्य इंडिपेडेंट एक्सपेरिमेंट्स द्वारा पुष्टि करने की जरूरत होगी. लेकिन वैज्ञानिक स्वीटमैन और उनकी टीम की रिसर्च से पता चलता है कि कुछ मिनिरल्स सूरज की रोशनी के बिना भी ऑक्सीजन पैदा कर कर सकते हैं. SAMS के डायरेक्टर निक ओवेन्स ने कहा, तथ्य यह है कि हमें प्रकाश संश्लेषण के अलावा प्लानिट पर ऑक्सीजन का एक और स्रोत मिला है, जिसके परिणाम और प्रभाव बहुत गहरे हैं. रिसर्चर्स के मुताबिक यह खोज उस वातावरण की सुरक्षा करने की जरूरत पर भी जोर देती है, जो खुद ऑक्सीजन पैदा करते हैं.
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