
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की फाइल फोटो
लाहौर/इस्लामाबाद:
पाकिस्तान सरकार की ओर से घाटी के लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए आयोजित ‘काला दिवस’ को लोगों की ठंडी प्रतिक्रिया मिली है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मुद्दा नहीं है, और जनमत संग्रह कराने की मांग की।
शरीफ ने अपने संदेश में कहा, 'कश्मीरियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए आज हम काला दिवस मना रहे हैं और दुनिया को एक बड़ा संदेश दे रहे हैं कि अधिकारों को हासिल करने के उनके (कश्मीरियों) संघर्ष में पाकिस्तानी उनके साथ हैं।' उन्होंने कहा, 'भारत ताकत के दम पर कश्मीरियों की आवाज को नहीं दबा सकता, क्योंकि अंतत: उन्हें आजादी मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र घोषित किया हुआ है और भारत को कश्मीरियों के अधिकारों का सम्मान करते हुए जनमत संग्रह कराना चाहिए। कश्मीर मुद्दे को भारत का अंदरूनी मामला बताया जाना तर्कपूर्ण नहीं है।' शरीफ ने आरोप लगाया कि भारत कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है, जो वैश्विक समुदाय के लिए बहुत चिंता का विषय है। उन्होंने पूर्व में सभी संबंधित विभागों से अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर मुद्दा उठाने का निर्देश दिया था।
'काला दिवस' मनाने के लिए संघ और प्रांतीय सरकारों के सभी अधिकारियों ने काम पर काली पट्टी बांधी ताकि कश्मीरियों के साथ 'राजनीतिक, नैतिक और राजनयिक समर्थन' दर्शाया जा सके। कश्मीरियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए सबसे बड़े कार्यक्रम का आयोजन 2008 मुंबई हमलों के मास्टर माइंड हाफिज सइद के नेतृत्व वाले जमात-उद-दावा ने इस्लामाबाद में किया। इसमें राजनीतिक और धार्मिक नेताओं ने हिस्सा लिया। सत्तारूढ़ पीएमएल-एन ने लाहौर, कराची और इस्लामाबाद जैसे बड़े शहरों में कोई रैली नहीं की।
लाहौर में एकमात्र आयोजन अलहमारा हॉल में हुआ, जहां बहुत ही कम संख्या में लोग पहुंचे। जमात-ए-इस्लामी सबसे आगे रहा और उसने मुल्तान, बहावलपुर और फैसलाबाद में रैलियों का आयोजन किया। उसने कश्मीर के मुद्दे पर लाहौर में सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन भी किया। अन्य शहरों में भी दूसरे धार्मिक दलों के बैनर लगे भी रैलियों का आयोजन किया गया।
हालांकि सत्तारूढ़ दल प्रभावी तरीके से 'काला दिवस' नहीं मना सका, लेकिन उसने भारत के कथित अत्याचारों और कश्मीर के लोगों के संघर्ष के संबंध में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन दिया। टीवी चैनलों पर पूरे दिन विज्ञापन दिखाए गए।
वहीं हाफिज सईद के नेतृत्व वाले जमात-उद-दावा का 'कश्मीर कारवां' 24 घंटे से ज्यादा वक्त में लाहौर-इस्लामाबाद के बीच की 300 किलोमीटर लंबी दूरी तय करके यहां पहुंचा। संगठन की टीम के अनुसार, हजारों की संख्या में लोग बसों, कारों और मोटरसाइकिलों से इस्लामाबाद पहुंचे।
गौरतलह है कि 8 जुलाई को हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से हुए संघर्षों में कश्मीर में 40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
शरीफ ने अपने संदेश में कहा, 'कश्मीरियों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए आज हम काला दिवस मना रहे हैं और दुनिया को एक बड़ा संदेश दे रहे हैं कि अधिकारों को हासिल करने के उनके (कश्मीरियों) संघर्ष में पाकिस्तानी उनके साथ हैं।' उन्होंने कहा, 'भारत ताकत के दम पर कश्मीरियों की आवाज को नहीं दबा सकता, क्योंकि अंतत: उन्हें आजादी मिलेगी। संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र घोषित किया हुआ है और भारत को कश्मीरियों के अधिकारों का सम्मान करते हुए जनमत संग्रह कराना चाहिए। कश्मीर मुद्दे को भारत का अंदरूनी मामला बताया जाना तर्कपूर्ण नहीं है।' शरीफ ने आरोप लगाया कि भारत कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है, जो वैश्विक समुदाय के लिए बहुत चिंता का विषय है। उन्होंने पूर्व में सभी संबंधित विभागों से अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर मुद्दा उठाने का निर्देश दिया था।
'काला दिवस' मनाने के लिए संघ और प्रांतीय सरकारों के सभी अधिकारियों ने काम पर काली पट्टी बांधी ताकि कश्मीरियों के साथ 'राजनीतिक, नैतिक और राजनयिक समर्थन' दर्शाया जा सके। कश्मीरियों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए सबसे बड़े कार्यक्रम का आयोजन 2008 मुंबई हमलों के मास्टर माइंड हाफिज सइद के नेतृत्व वाले जमात-उद-दावा ने इस्लामाबाद में किया। इसमें राजनीतिक और धार्मिक नेताओं ने हिस्सा लिया। सत्तारूढ़ पीएमएल-एन ने लाहौर, कराची और इस्लामाबाद जैसे बड़े शहरों में कोई रैली नहीं की।
लाहौर में एकमात्र आयोजन अलहमारा हॉल में हुआ, जहां बहुत ही कम संख्या में लोग पहुंचे। जमात-ए-इस्लामी सबसे आगे रहा और उसने मुल्तान, बहावलपुर और फैसलाबाद में रैलियों का आयोजन किया। उसने कश्मीर के मुद्दे पर लाहौर में सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजन भी किया। अन्य शहरों में भी दूसरे धार्मिक दलों के बैनर लगे भी रैलियों का आयोजन किया गया।
हालांकि सत्तारूढ़ दल प्रभावी तरीके से 'काला दिवस' नहीं मना सका, लेकिन उसने भारत के कथित अत्याचारों और कश्मीर के लोगों के संघर्ष के संबंध में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापन दिया। टीवी चैनलों पर पूरे दिन विज्ञापन दिखाए गए।
वहीं हाफिज सईद के नेतृत्व वाले जमात-उद-दावा का 'कश्मीर कारवां' 24 घंटे से ज्यादा वक्त में लाहौर-इस्लामाबाद के बीच की 300 किलोमीटर लंबी दूरी तय करके यहां पहुंचा। संगठन की टीम के अनुसार, हजारों की संख्या में लोग बसों, कारों और मोटरसाइकिलों से इस्लामाबाद पहुंचे।
गौरतलह है कि 8 जुलाई को हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से हुए संघर्षों में कश्मीर में 40 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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