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This Article is From Dec 08, 2015

'पैसा दें विकसित देश, क्योंकि गर्म देशों के लिए जीने-मरने का सवाल'

'पैसा दें विकसित देश, क्योंकि गर्म देशों के लिए जीने-मरने का सवाल'
पेरिस: हर साल जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में सामाजिक संगठनों का प्रदर्शन एक अलग ही रंग भर देता था, लेकिन इस साल पेरिस में हो रहे सम्मेलन में सुरक्षा कारणों से सामाजिक कार्यकर्ताओं के किसी भी बड़े प्रदर्शन पर रोक लगाई गई है, हालांकि कभी-कभी महासम्मेलन के प्रांगण में छोटे-छोटे समूह नारेबाज़ी करते हुए दिख रहे हैं...

जैसे-जैसे समिट समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, यही सवाल गहराता जा रहा है कि क्या अमीर देश विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए पैसा देंगे... समिट की भाषा में इसे क्लाइमेट फाइनेंस कहा जाता है... गरीब और विकासशील देशों को क्लाइमेट फाइनेंस मूल रूप से भविष्य में आने वाले खतरों - जैसे प्राकृतिक आपदाओं - से बचने के लिए चाहिए... मिसाल के तौर पर किसी आपदा से बचने के लिए वॉर्निंग सिस्टम लगाना या फिर किसी मुसीबत के वक्त लोगों को किसी जगह से बाहर निकालने का मैकेनिज़्म... ऐसी कोशिशों को क्लाइमेट फाइनेंस की भाषा में अडॉप्टेशन कहा जाता है...

महासम्मेलन के प्रांगण में प्रदर्शन कर रहे संगठन मूल रूप से अमीर देशों से यही मांग कर रहे हैं कि वे अडॉप्टेशन के लिए पैसा दें... अफ्रीकी देशों से आए समूहों ने कहा कि गर्म देश जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी मार झेल रहे हैं और धरती का तापमान 1.5 डिग्री से अधिक नहीं बढ़ना चाहिए... उद्योगों और वाहनो से लगातार हो रहे कार्बन एमिशन (कार्बन उत्सर्जन) से धरती का तापमान पहले ही 0.8 डिग्री बढ़ चुका है... इसकी वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है... कई प्राकृतिक आपदाएं - जैसे, बाढ़ और सूखा - पड़ रहे हैं और बेमौसम बरसात हो रही है...

अफ्रीकी प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अमीर देश सिर्फ कार्बन एमिशन कम करने के तरीकों (मिटीगेशन) की ही बात कर रहे हैं, लेकिन अडॉप्टेशन के लिए पैसा नहीं दे रहे हैं... इससे कभी भी जलवायु परिवर्तन के मामले में इंसाफ नहीं हो पाएगा...

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