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पिछली सरकारों में जनजातियों को नक्सलियों का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था: केंद्रीय मंत्री जुएल ओरम

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओरामक ने NDTV से Exclusive बातचीत में कहा पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी गति से काम चल रहा है. हमारे पास धन की कोई कमी नहीं है सब ही चीज़े मौजूद है.

पिछली सरकारों में जनजातियों को नक्सलियों का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था: केंद्रीय मंत्री जुएल ओरम
हर चुनाव से पहले मतदाता सूची संशोधित की जाती है: केंद्रीय मंत्री जुएल ओरम
  • जुएल ओराम ने कहा कि एक समय था जब जनजातियों को नक्सलियों का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
  • उन्होंने लेकिन अब स्थिति बदल गई है. सरकार बहुत सख्त तरीके से इसकी निगरानी कर रही है.
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनजातीय क्षेत्र में शिक्षा और अवसंरचना में व्यापक सुधार हुआ है,.
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नई दिल्ली:

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और ओडिशा के वरिष्ठ भाजपा नेता जुएल ओराम ने NDTV से Exclusive बातचीत की. इस दौरान बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण के मुद्दे पर उन्होंने कहा, मेरे जानकारी के हिसाब से मैं जिस दिन से राजनीती में आया हूं. हर चुनाव से पहले मतदाता सूची संशोधित की जाती है. प्रत्येक चुनाव से पहले मतदाता सूची में संशोधन किया जाता है. भाजपा नेता जुएल ओराम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर बहुत सारे मंत्रालय काफी कुछ कर रहे है. धन की कोई कमी नहीं है. इसलिए काफी बदलाव आया है. सभी क्षेत्रों में परिवर्तन देखा गया है, चाहे वह अर्थव्यवस्था में हो या अन्यत्र. यदि हम देखें तो परिवर्तन सभी कोनों में देखा गया है और जनजातीय समुदाय का विकास हुआ है.

जुएल ओराम से पूछे गए सवाल और उनके जवाब-

सवाल:  बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण चल रहा है, इसी तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र में भी, प्रद्योत देब बर्मा जैसे कुछ मंत्री इसकी मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से स्वदेशी क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए, आप इसे कैसे देखते हैं?

जवाब: मेरे जानकारी के हिसाब से मैं जिस दिन से राजनीती में आया हूं. हर चुनाव से पहले मतदाता सूची संशोधित की जाती है. प्रत्येक चुनाव से पहले मतदाता सूची में संशोधन किया जाता है, अंतर केवल इतना है कि कभी-कभी यह स्वेच्छा से होता है या कभी-कभी यह गहनता से होता है. लेकिन संशोधन होता रहता है. मुझे नहीं लगता कि यह किसी की मांग पर हो रहा है. विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों में चुनाव आयोग कुछ कार्यकर्ताओं के साथ ब्लॉक स्तर पर संशोधन का काम जमीनी स्तर पर कर रहा है और इसमें राजनितिक दलों को भी शामिल कर रहे है. यह कोई नई बात नहीं है यह पुरानी बात है.

सवाल: अगर हम जनजातियों की बात करें तो कई जनजातियां नक्सल क्षेत्रों में रहती हैं, तो क्या हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि नक्सलियों ने उन्हें पीड़ित कार्ड के रूप में इस्तेमाल किया है?

जवाब: हाँ, निश्चित रूप से, एक समय था जब जनजातियों को नक्सलियों का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था. लेकिन अब स्थिति बदल गई है और सरकार बहुत सख्त तरीके से इसकी निगरानी कर रही है, खासकर वह क्षेत्र अविकसित था इसलिए पुलिस वह तक नहीं पहुंच पाती थी, नक्सलियों का प्रभाव था. आज संचार बढ़ा है, इसीलिए नक्सलियों का प्रभाव खत्म हो गया है.

आपको पता होगा की केंद्र राज्य बल के साथ समन्वय स्थापित करने का प्रयास कर रहा है. पहले क्या होता था की एक राज्य में कुछ बर्बाद कर देते थे और दूसरे राज्य में चले जाते थे फिर तीसरे राज्य में बर्बाद कर के और कहि चले जाते थे. राज्यों के बीच भी कोई समन्वय नहीं था. अब राज्यों के बीच बहुत समन्वय है. इसके लिए एक विशेष समूह बनाया गया है. सड़क संचार में सुधार किया गया है. कई पुल बनाए गए हैं. प्रभावित जिलों पर ध्यान देने के लिए भारत सरकार द्वारा सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप कई सुधार हुए हैं.

सवाल: आप ओडिशा से आते हैं, बालासोर की घटना जिसमे एक लड़की की मौत हो गई और सरकार पर सवाल उठ रहे है. भाजपा ने कानून व्यवस्था पर सवाल उठती है यह बीजेपी शाषित राज्य है इस समय.. 

जवाब: हमने बीजू जनता दल का शासन भी देखा है और कांग्रेस का भी. हम भी दुखी है, उसके लिए... लेकिन इतना अच्छे कार्रवाई बाकि किसी सरकार में नहीं दिखाई. हमारी सरकार इस मामले को पूरी संवेदनशीलता के साथ संभाल रही है. इसमें जो भी दोषी पाए जायेंगे उन्हें दण्डित किया जायेगा. पहले कोई अधिकारी, प्रोफेसर अगर शामिल होते थे तो उन्हें निलंबित कर देना ही काफी हो जाता था, हमने तो उससे गिरफ्तार कर के जेल में भेजा है. सरकार काम कर रही है. लेकिन घटना का दुःख है. हमारी सरकार पूरी संवेदनशीलता के साथ काम कर रही है.

सवाल: कांग्रेस आप पर असंवेदनशीलता होने का और कई आरोप लगाती रहती है 

जवाब: उनका तो काम ही है आरोप लगाना उन्हें अपने सत्तारूढ़ राज्यों पर भी नजर रखनी चाहिए. कर्नाटक में क्या हो रहा है और कैसे चल रहा है? उसके बाद हमसे बात करे.

सवाल: आप ओडिशा से आते हैं, आप तब भी जीतते थे जब बीजेपी कभी ओडिशा में सरकार नहीं बना पाई. लेकिन उस समय के चुनाव में और आज के चुनाव में और साथ ही साथ क्योंकि आप अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी कैबिनेट मंत्री थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के भी अंतर क्या है?

जवाब: अटल जी का समय बीजेपी के विकास का समय था. उस समय हमारी उपस्थिति अखिल भारतीय स्तर पर नहीं थी, आज हम अखिल भारतीय स्तर पर मौजूद हैं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी गति से काम चल रहा है. उस समय संसाधनों की भी कठिनाई थी. आज ऐसा नहीं है, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह सब चीज़ खास कर के यात्रा अवसंरचना, हमारे पास धन की कोई कमी नहीं है सब ही चीज़े मौजूद है.

सवाल: आपकी कोई ऐसी बातचीत जो आपको हमेशा याद रहेगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ?

जवाब: हां , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी पहली बार सरकार में आए तब मैं उनसे मुलाकात करने गया था. उन्होंने मुझसे पूछा आप अगर जनजाति के लिए एक काम मांगेंगे तो क्या मांगेंगे. तो मैंने बोला की शिक्षा तो तुरंत Eklavya Model Schools की घोषणा की गई. अभी हम 740 Eklavya Model Schools चल रहा है, जो एक गेम-चेंजर बन गया है. आदिवासी छात्र अच्छे संस्थानों में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं. चल रहा है, जो एक बड़ा बदलाव साबित हुआ है. आदिवासी छात्र अच्छे संस्थानों में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं. वे न केवल अच्छे अंक प्राप्त कर रहे हैं, बल्कि रैंकिंग में भी पिछड़ रहे हैं. चाहे एम्स हो, इसरो हो, हमारे छात्र वहां जाकर पढ़ाई कर सकते हैं. यह एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम है और मैं इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहता हूं. 

सवाल: कोई ऐसी योजना जो आपको लगती है की अगले एक वर्ष में आपके मंत्रालय द्वारा बहुत बड़ी बदलाव लाएगा. खास तौर से महिलाओ और लड़कियों के लिए 

जवाब: हमारी 3 योजनाएं अच्छी तरह चल रही हैं.

1. प्रधानमंत्री जनजातीय न्याय महाअभियान (पीएम-जनमन) - 18 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में फैले 75 पिछड़े समुदायों को प्रत्यक्ष लाभ. लगभग 28 लाख लोग लाभान्वित होंगे.

2. धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान, जिस पर हम 79 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने जा रहे हैं. इसके लिए 17 मंत्रालयों का विलय किया जाएगा और 25 हस्तक्षेप किए जाएंगे. यह योजना पूरी स्थिति के लिए भी महत्वपूर्ण है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस योजना का शुभारंभ बिरसा मुंडा की जयंती पर किया गया था.

सवाल: पहले आदिवासियों को सामान ही नहीं था?

जवाब: नहीं कहा था, मंत्रालय ही नहीं था. आज जनजातियों से 3 कैबिनेट मंत्री हैं. शुरुआत में हमें वेटेज नहीं मिल रहा था. इसकी शुरुआत में हमें महत्व नहीं मिल रहा था. इसकी शुरुआत अटल जी की सरकार से हुई है और विशेष रूप से एनडीए सरकार लगातार जनजातियों, एसटी, एससी को विकास के पथ पर आगे बढ़ा रही है और इसके लिए पर्याप्त राजनीतिक समर्थन भी दे रही है. 

सवाल: विपक्ष आपको सूट-बूट वाली सरकार कहता है.

जवाब: कहने में क्या जाता है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर क्या है उनको पता होना चाहिए. सबसे ज़्यादा आदिवासी सांसद बीजेपी के पास है. सबसे ज़्यादा आदिवासी विधायक बीजेपी के पास है, बोलने में क्या है बोलने में तो बोल देते है लेकिन हकीकत क्या है आकड़े क्या बता रहे है उसको भी देख लिया जाये. 

सवाल: विपक्ष को लगता है महंगाई बढ़ रही है. भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, बीजेपी की सरकार काम नहीं कर रही है. इसलिए बार बार संसद रोक देते है.

जवाब: कहा भ्रष्टाचार है? बिलकुल नहीं, राजनीती से प्रेरित हो कर यह लोग रहा है ऐसा कुछ नहीं है पहले तो हर दिन कुछ न कुछ, कोयला घोटाला क्या क्या घोटाला नहीं सुनने में आया अब आज कल तो एक भी नहीं है. खली बोल देने से थोड़ी होगा, परिमाण दीजिये. विपक्ष हमारी सफलता को पचा नहीं पा रहा है. इसीलिए वे इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं. 

सवाल: वे ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठा रहे हैं, वे कह रहे हैं मोदी सरकार ने जो आकड़े दिखाए वो सही नहीं है 

जवाब: यह तो सवाल उठाते ही है अब यह लोग अपनी सेना पर भी विश्वास नहीं कर के पाकिस्तान के लहजे में बात करना यह कितने दुर्भाग्य की बात है. विपक्ष, जो अपने देश की सेना पर विश्वास नहीं करते है, उनसे खतरनाक चीज़ कौन हो सकते है? 

सवाल: जिस तरह से काम हो रहा है पढाई लिखे हो, भाषाओं पर विवाद हो रहा है. क्योंकि आदिवासियों की अलग-अलग भाषाएं हैं. कई जगह लिपि है क्या आपको लगता है इस तरह के मुद्दों से ज़मीनी स्तर पर असर पड़ता है?

जवाब: यह कुछ भी नहीं है, वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है, दरअसल कुछ लोग जानबूझकर इसे राजनीतिक मुद्दा बना रहे हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. सभी जनजातियों की अपनी बोली होती है. यह ठीक है कि कुछ के पास लिपि है, कुछ के पास अभी नहीं है. जिन जनजातियों का शिक्षा अनुपात दूसरों से ज़्यादा है, उनके लिए लिपि तैयार है, राष्ट्रीय जनजाति अनुसंधान संस्थान इसी पर काम कर रहा है और सांस्कृतिक संरक्षण, भाषा आदि पर किताबें प्रकाशित कर रहा है। सरकार ने आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों पर काफ़ी अभियान चलाए हैं.

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