काठमांडू:
नेपाल में दूसरी बार माओवादियों की सरकार बनने जा रही है। तीन वर्ष में चौथे प्रधानमंत्री के लिए रविवार को हुए मतदान में माओवादी उम्मीदवार बाबूराम भट्टराई चुनाव जीत गए हैं। माओवादियों के उपप्रमुख बाबूराम भट्टराई (57) नेपाल के 35वें प्रधानमंत्री होंगे। वह पश्चिमी नेपाल के गोरखा जिले के एक निम्न मध्यमवर्गीय किसान परिवार से हैं। भट्टराई नेपाल की बोर्ड परीक्षा के टॉपर हैं और उन्होंने नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल की है। माओवादी पार्टी के 10 वर्ष के हिंसक संघर्ष के दौरान भट्टराई को लालध्वज के नाम से भी जाना जाता था। भट्टराई का प्रधानमंत्री बनना पहले ही लगभग तय हो गया था, क्योंकि अंतिम समय में उनकी पार्टी पांच क्षेत्रीय पार्टियों के एक गठबंधन का समर्थन हासिल करने में सफल हो गई थी। इन पांचों पार्टियों ने रविवार के मतदान में प्रमुख भूमिका निभाई है। तराई की पांच पार्टियों वाले मधेसी मोर्चा के पास 71 सांसद हैं। इसके अलावा एक छोटी वामपंथी पार्टी, जन मोर्चा ने भी भट्टराई का साथ दिया। इस पार्टी के पास पांच सांसद हैं। यहां तक कि चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से पहले भी भट्टराई अपने प्रतिद्वंद्वी, नेपाली कांग्रेस के रामचंद्र पौडल पर भारी थे, क्योंकि माओवादियों की पार्टी 601 सदस्यीय संसद में 237 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। जबकि नेपाली कांग्रेस के 114 सदस्य हैं। कुछ सांसदों के निधन और कुछ की संसदीय सदस्यता समाप्त किए जाने के कारण इस समय संसद में कुल 594 सांसद रह गए हैं, और चुनाव जीतने के लिए 298 मतों की जरूरत थी। जबकि भट्टराई को 340 सांसदों के मत प्राप्त हुए। मतदान के दौरान कुल 575 सांसद मौजूद थे। पौडल पूर्व उपप्रधानमंत्री हैं और इसके पहले हुए 17 चक्र के मतदान में भी नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार थे। शनिवार की रात वह कम्युनिस्टों का समर्थन हासिल करने में सफल हो गए। लेकिन 108 कम्युनिस्ट सांसदों के समर्थन के बावजूद पौडल की जीत कठिन थी। और रविवार को उन्हें 235 सांसदों के मत ही प्राप्त हुए। पिछली बार हुए 17 दौर के मतदान के विपरीत रविवार का मतदान चुनावी नियम में हुए एक परिवर्तन के कारण भी निर्णायक साबित हुआ है। इस परिवर्तन के कारण सांसद न तो मतदान में तटस्थ रह सकते थे और न तो ऐसा ही कर सकते थे कि वे मतदान में हिस्सा न लेते। नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग करने वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल ने मतदान का बहिष्कार किया। उसने नई संसद के चुनाव के लिए फिर से चुनाव की मांग की। कम्युनिस्ट विचारधारा वाली नेपाल वर्कर्स एवं पीजेंट पार्टी ने भी यही मांग की।
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