Ravish Kumar Blog On Morning
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प्रातःकालीन डायरी : कहीं होता हूं, जागता कहीं और हूं...
- Monday August 24, 2020
- रवीश कुमार
एकदम से सुबह की रौशनी बिखर जाने से ठीक पहले का सफ़ेद अंधेरा. जाती हुई रात अपने आख़िरी वक्त में सफ़ेद लगती है. रात गहराने से पहले भौंक कर सोने वाले कुत्ते भी सुबह होने से पहले भौंकने लगते हैं, कौआ पहले बोलता है या गौरैया पहले बोलती है. ची ची ची ची। ची च। ची ची ची ची. पेड़ पर कुछ कोलाहल तो है. हवा ठंडी है. ऐसे वक्त की खुली दुकानों की अपनी ख़ुश्बू होती है. भीतर बल्ब जल रहा है. बाहर सड़क पर थोड़ी सफ़ाई हो चुकी है. दुकान की बेंच बाहर रखी जा रही है. भजन बज रहा है.
- ndtv.in
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प्रातःकालीन डायरी : कहीं होता हूं, जागता कहीं और हूं...
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एकदम से सुबह की रौशनी बिखर जाने से ठीक पहले का सफ़ेद अंधेरा. जाती हुई रात अपने आख़िरी वक्त में सफ़ेद लगती है. रात गहराने से पहले भौंक कर सोने वाले कुत्ते भी सुबह होने से पहले भौंकने लगते हैं, कौआ पहले बोलता है या गौरैया पहले बोलती है. ची ची ची ची। ची च। ची ची ची ची. पेड़ पर कुछ कोलाहल तो है. हवा ठंडी है. ऐसे वक्त की खुली दुकानों की अपनी ख़ुश्बू होती है. भीतर बल्ब जल रहा है. बाहर सड़क पर थोड़ी सफ़ाई हो चुकी है. दुकान की बेंच बाहर रखी जा रही है. भजन बज रहा है.
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