Blogs | प्रियदर्शन |शुक्रवार जुलाई 29, 2016 10:20 AM IST दरअसल महाश्वेता अपने-आप में प्रतिरोध की आवाज़ थीं - प्रतिरोध की आस्था थीं। उनको देखकर लेखन और संघर्ष में एक भरोसा जागता था। बेशक, वे पिछले कई दिनों से बीमार थीं - अस्पताल में भर्ती थीं। लेकिन तब भी वे ऐसे समय गईं, जब इस प्रतिरोध, संघर्ष और भरोसे की ख़ासी ज़रूरत थी।