सफेद बाघ रामा.
जयपुर:
उदयपुर के जूलॉजिकल पार्क में आजकल एक नया सेलेब्रिटी चर्चा में है. यह है सफेद बाघ 'रामा', जिसे एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत चेन्नई से राजस्थान लाया गया है. इस बाघ की खासियत यह है कि यह सिर्फ तमिल समझता है. अब उसमें हिन्दी और राजस्थानी की भी समझ विकसित करने की कोशिश की जा रही है.
सफेद बाघ रामा को चेन्नई के वंडालूर ज़ू से राजस्थान के उदयपुर शहर के सज्जनगढ़ जूलॉजिकल पार्क लाया गया है. इस सफेद बाघ के बदले में तमिलनाडू को भेड़ियों का जोड़ा दिया गया है. रामा को जब उदयपुर लाया गया तो पता चला कि यह न तो हिंदी समझता है न ही राजस्थानी. समस्या यह थी कि यह तमिल में आदेश मिलने पर ही उनका पालन करता था.
उदयपुर में पांच साल के रामा की देखभाल की जिम्मेदारी संभाल रहे राम सिंह के लिए 'तमिल भाषी' बाघ को संभालना चुनौतीपूर्ण था. रामा पैदा भले ही दिल्ली में हुआ, और अब उदयपुर में है, लेकिन उसकी परवरिश तो चेन्नई में ही हुई है, और इसलिए स्वाभाविक रूप से उसकी भाषा तमिल है. आखिरकार चेन्नई से चेलैया को बुलाया गया, जिन्होंने रामा की परवरिश की है. चेलैया ने उदयपुर पहुंचने के बाद रामा को तमिल में जो भी कहा, उसने उसका पालन किया. लेकिन चेलैया यहां हमेशा तो रह नहीं सकते. इस समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने रामा के नए केयर टेकर राम सिंह को कुछ तमिल सिखाई. 21 दिन में रामा नए माहौल में ढल गया है. अब वह राम सिंह की उत्तर भारतीय तमिल कुछ समझने लगा है.
राम सिंह का कहना है कि "इसको हिन्दी भाषा नहीं आती. इसको तमिल भाषा में समझाना पड़ता था. जैसे 'सपदहिया' मतलब खाना खाना, 'पो' मतलब बाहर जाना, 'व' मतलब अंदर आना... अब यह फ्रेंडली हो गया है. कुछ हिन्दी भी समझने लगा है जैसे रमा.. रमा.. बोलेंगे तो आ जाता है."
लगता है रामा ने जल्द ही वह बाधा दूर कर लेगा जो उत्तर और दक्षिण के कई लोग दूर करने को तैयार नहीं हैं. उसे हिन्दी और तमिल दोनों समझ आने लगेंगी. लगता है चेन्नई से उदयपुर ट्रांसफर रामा को काफी शोहरत देगा. उसे देखने के लिए काफी भीड़ जुट रही है. रामा के अलावा फिलहाल राजस्थान के पास सिर्फ एक और सफेद बाघ है जो कि जयपुर में है.
सफेद बाघ रामा को चेन्नई के वंडालूर ज़ू से राजस्थान के उदयपुर शहर के सज्जनगढ़ जूलॉजिकल पार्क लाया गया है. इस सफेद बाघ के बदले में तमिलनाडू को भेड़ियों का जोड़ा दिया गया है. रामा को जब उदयपुर लाया गया तो पता चला कि यह न तो हिंदी समझता है न ही राजस्थानी. समस्या यह थी कि यह तमिल में आदेश मिलने पर ही उनका पालन करता था.
उदयपुर में पांच साल के रामा की देखभाल की जिम्मेदारी संभाल रहे राम सिंह के लिए 'तमिल भाषी' बाघ को संभालना चुनौतीपूर्ण था. रामा पैदा भले ही दिल्ली में हुआ, और अब उदयपुर में है, लेकिन उसकी परवरिश तो चेन्नई में ही हुई है, और इसलिए स्वाभाविक रूप से उसकी भाषा तमिल है. आखिरकार चेन्नई से चेलैया को बुलाया गया, जिन्होंने रामा की परवरिश की है. चेलैया ने उदयपुर पहुंचने के बाद रामा को तमिल में जो भी कहा, उसने उसका पालन किया. लेकिन चेलैया यहां हमेशा तो रह नहीं सकते. इस समस्या को सुलझाने के लिए उन्होंने रामा के नए केयर टेकर राम सिंह को कुछ तमिल सिखाई. 21 दिन में रामा नए माहौल में ढल गया है. अब वह राम सिंह की उत्तर भारतीय तमिल कुछ समझने लगा है.
राम सिंह का कहना है कि "इसको हिन्दी भाषा नहीं आती. इसको तमिल भाषा में समझाना पड़ता था. जैसे 'सपदहिया' मतलब खाना खाना, 'पो' मतलब बाहर जाना, 'व' मतलब अंदर आना... अब यह फ्रेंडली हो गया है. कुछ हिन्दी भी समझने लगा है जैसे रमा.. रमा.. बोलेंगे तो आ जाता है."
लगता है रामा ने जल्द ही वह बाधा दूर कर लेगा जो उत्तर और दक्षिण के कई लोग दूर करने को तैयार नहीं हैं. उसे हिन्दी और तमिल दोनों समझ आने लगेंगी. लगता है चेन्नई से उदयपुर ट्रांसफर रामा को काफी शोहरत देगा. उसे देखने के लिए काफी भीड़ जुट रही है. रामा के अलावा फिलहाल राजस्थान के पास सिर्फ एक और सफेद बाघ है जो कि जयपुर में है.
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