MP News: लाल बत्ती पर लगी रोक के बाद अब मध्यप्रदेश में वीआईपी ले रहे हूटर का सहारा

आपात सेवा में लगी एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और कुछ खास परिस्थितियों में पुलिस वालों को ही हूटर के इस्तेमाल की इजाज़त है

MP News: लाल बत्ती पर लगी रोक के बाद अब मध्यप्रदेश में वीआईपी ले रहे हूटर का सहारा

प्रतीकात्मक फोटो.

भोपाल:

मध्यप्रदेश में वर्ष 2017 में ना चाहते हुए भी नेताओं-अधिकारियों को लाल बत्ती का मोह छोड़ना पड़ा था, लेकिन धीरे-धीरे बत्ती की जगह हूटर ने ले ली है. माननीय हूटर की मदद से सड़क पर अपनी आमद दर्ज कराते दिख जाते हैं. सड़कों पर हूटर बजाकर वीआईपी अपने आने का अहसास करा रहे हैं. कानूनन इसकी इजाज़त नहीं है. हूटर लगाने की अनुमति चुनिंदा वाहनों को मिलती है, जिसमें आपात सेवा में लगी एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और कुछ खास परिस्थितियों में पुलिस वालों को हूटर के इस्तेमाल की इजाज़त है. लेकिन मध्यप्रदेश में धड़ल्ले से इसका इस्तेमाल हो रहा है. खुद कानून बनाने वाले मंत्री, विधायक कानून कैसे तोड़ रहे हैं.

माननीय अब इस 'नई लाल बत्ती' से अपनी आमद की दस्तक देते हैं. विधानसभा में कानून बनते हैं, लेकिन यहीं कानून बनाने वाले कानून को ताक पर रखकर क्या तर्क देते हैं - पीडब्लूडी मंत्री गोपाल भार्गव कहते हैं, 'लाल बत्ती नहीं है, ये बात जरूर है कि भीड़ ज्यादा होती है लोग हटते नहीं हैं, मवेशी हैं, इस कारण से आवश्यकता पड़ती होगी, अपनी स्वेच्छा है से है ये भी.' वहीं बीजेपी विधायक बहादुर सिंह चौहान, 'हूटर से क्या है, वीआईपी कल्चर में नहीं आता. वीआईपी को निकलने में मिसयूज नहीं हो रहा है, अगर ऐसा है तो उतारकर चल देंगे.' एक और बीजेपी विधायक राकेश पाल सिंह कहते हैं, 'मेरे इसमें हूटर नहीं है, कनेक्शन नहीं है. चुनाव के वक्त लगा था, बच्चों ने निकाला नहीं.'

लेकिन ये मत सोचिएगा कि हूटर की हनक सिर्फ सत्ता पक्ष को चाहिए, मामला सर्वदलीय है.

कांग्रेस विधायक शिवदयाल बागरी कहते हैं, 'नहीं ऐसा नहीं है, लोग लगाए हैं तो लगाए हैं. बाकी शासन के कानून की अवेहलना नहीं होनी चाहिए. एक अन्य कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद कहते हैं, 'इसमें दिक्कत आती है. हम लोग जब फंस जाते हैं, बाढ़ आ गई, जाम में फंस गए और कोई दूसरा मकसद नहीं है.'

पूर्व मंत्री व कांग्रेस विधायक लखन घनघौरिया ने कहा, 'हूटर और लाल बत्ती में अंतर है. जब आचार संहिता है तो इजाजत नहीं है, ये हो सकता है. अभी इस पर उतना फोकस सरकार का था नहीं, ज्यादातर विधायक इसका इस्तेमाल करते हैं, सरकार स्पष्ट कर देगी तो बंद हो जाएगा.'

कानून इसकी इजाजत नहीं देता. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में फैसला दिया था, एक मई 2017 से सरकार ने लाल बत्ती पर अंधेरा कर दिया तो नेताजी ने नया जुगाड़ ढूंढ लिया. हालांकि कानून साफ है, सेंट्रल मोटर व्हीक्ल एक्ट की धारा 119 में खेती में लगे ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, एंबुलेंस, दमकल की गाड़ियों को ही हूटर की इजाजत है. बेजा इस्तेमाल पर जुर्माने का भी प्रावधान है.

लेकिन जुर्माना वसूल भी कौन करे जब खुद ट्रांसपोर्ट मंत्री हमारे सवालों से भाग खड़े हुए. परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत कहते हैं, 'आप ट्रांसपोर्ट मंत्री हैं, सब लगाकर घूम रहे हैं, ये नया वीआईपी कल्चर तो नहीं है.'

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प्रधानमंत्री ने वीआईपी कल्चर खत्म कर ईपीआई (एवरी पर्सन इज इंपोर्टेंट- यानी- हर आदमी ख़ास है) की नई संस्कृति लाने की बात कही थी. आप कितने खास हुए पता नहीं, लेकिन वीआईपी थे और बने हुए हैं. सड़कों पर भी हूटर बजाकर मुनादी करते.