राष्ट्रीय राजधानी में शनिवार की शाम साहित्य की तीन उत्कृष्ट कृतियों के रचनाकारों को कुसुमांजलि साहित्य सम्मान से अलंकृत किया गया. तीनों साहित्यकार कर्नाटक एवं केरल के पूर्व राज्यपाल टी.एन. चतुर्वेदी के हाथों सम्मानित हुए. हिंदी कथा लेखिका जया जादवानी को सिंधु नदी किनारे की पांच हजार साल पुरानी सभ्यता से जुड़े उपन्यास 'मिठो पानी खारो पानी' के लिए, पंजाबी के कथाकार मनमोहन सिंह बावा को उनकी कृति 'काल कथा' और कृपाल कजाक को उनकी कृति 'अंतहीन' के लिए सम्मानित किया गया.
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कुसुमांजलि फाउंडेशन की ओर से आयोजित समारोह में टी.एन. चतुर्वेदी ने तीनों साहित्यकारों को सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र, नकद 2,50,000 रुपये और स्मृतिचिह्न प्रदान किया.
प्रणब मुखर्जी ने किया विश्वनाथ राय पर केंद्रित पुस्तक का विमोचन
सम्मानित किए जाने से पहले, इन साहित्यकारों के सम्मान में प्रशस्तिपत्र पढ़े गए. जया जादवानी के लिए प्रशस्तिपत्र का वाचन कवि लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने किया और साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्राप्त पंजाबी साहित्यकार सुरजीत पातर ने बावा और कजाक के लिए प्रशस्तिपत्र पढ़ा.
आत्म प्रशंसा चुंबकीय व्यक्तित्व की कुंजी : अनुपम शर्मा
साहित्यप्रेमी टी.एन. चतुर्वेदी का परिचय देते हुए साहित्य अकादेमी पुरस्कार के पूर्व सचिव इंद्रनाथ चौधुरी ने कहा कि बहुत कम लोग जानते हैं कि अपने जीवन का लंबा समय प्रशासक के रूप में गुजारने वाले चतुर्वेदी का किताबों से इतना प्रेम है कि उनके घर में एक समृद्ध पुस्कालय है और वह आज भी कोई अच्छी किताब देखते हैं, तो खरीद लेते हैं.
कुसुमांजलि फाउंडेशन की संस्थापक व प्रसिद्ध लेखिका कुसुम अंसल ने कहा कि पंजाबी में दो कृतियों को सम्मान इसलिए दिया गया, क्योंकि दोनों श्रेष्ठ कृतियां हैं, दोनों में कोई उन्नीस-बीस नहीं.
उन्होंने कहा, "कुसुमांजलि फाउंडेशन हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की सर्वश्रेष्ठ कृतियों को हर साल सम्मानित करता है. यह परंपरा यहां छठी बार निभाई गई है."
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में कुसुमांजलि फाउंडेशन की ओर से आयोजित समारोह में टी.एन. चतुर्वेदी ने तीनों साहित्यकारों को सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र, नकद 2,50,000 रुपये और स्मृतिचिह्न प्रदान किया.
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कुसुमांजलि फाउंडेशन की संस्थापक व प्रसिद्ध लेखिका कुसुम अंसल ने कहा कि पंजाबी में दो कृतियों को सम्मान इसलिए दिया गया, क्योंकि दोनों श्रेष्ठ कृतियां हैं, दोनों में कोई उन्नीस-बीस नहीं.
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