
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) आज अपना स्थापना दिवस मना रही है.पूर्व केंद्रीय मंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार ने 10 जून 1999 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की स्थापना की थी. आज एनसीपी दो धड़ो में बंट चुकी है. एनसीपी (एसपी) का नेतृत्व शरद पवार कर रहे हैं तो एनसीपी का नेतृत्व उनके भतीजे अजित पवार के पास है. पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव के बाद से दोनों धड़ों के एककीकरण की चर्चा तेज हो गई है.एनसीपी के दोनों ही धड़ों के कई नेता पार्टी के एकीकरण की जरूरत पर जोर देते रहे हैं. एनडीटीवी ने महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक रविकिरण देशमुख से एनसीपी के एकीकरण को लेकर उनकी राय जाननी चाही.यहां हम आपको एनसीपी के एकीकरण होने और न होने के तीन कारणों के बारें में बता रहे हैं.
एनसीपी के दोनों धड़े के एक होने के तीन कारण क्या हो सकते हैं
पहला कारण
जब से एनसीपी बनी है. और उससे पहले भी, शरद पवार सत्ता से कभी ज्यादा दूर नहीं रहे. उनकी पार्टी और उनका गुट मुख्य तौर पर कोऑपरेटिव मूवमेंट से जुड़ा है. इसमें शुगर फैक्ट्रियां, कोऑपरेटिव बैंक और किसानों का बड़ा नेटवर्क शामिल है. इस नेटवर्क में पैसे की बड़ी भूमिका होती है. महाराष्ट्र में राजनीति करने वाले कई बड़े नेता शरद पवार के साथ जुड़े हैं. ये सभी लोग सत्ता से दूर नहीं रह सकते. शरद पवार हमेशा मानते रहे हैं कि अगर राजनीति करनी है, तो इन लोगों को साथ लेकर चलना ही होगा. यही एक प्रमुख कारण है कि वे सत्ता के करीब रहना पसंद करते हैं.
दूसरा कारण
राजनीति में भविष्य की योजना बनानी होती है. आज शरद पवार के पास केवल आठ सांसद हैं, कुछ विधायक भी हैं. अगर अगला चुनाव लड़ना है, तो यह आसान नहीं होगा. चुनाव लड़ने के लिए संसाधनों की ज़रूरत होती है, और वो सत्ता के माध्यम से ही संभव है. ऐसे में यह भी एक कारण हो सकता है कि शरद पवार फिर से सत्ता के करीब जाने की सोचें.
तीसरा कारण
शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राजनीति में और अधिक मजबूत करना चाहते हैं. सुप्रिया उनकी उत्तराधिकारी मानी जाती हैं. अगर उन्हें मजबूत करना है, तो सिर्फ विपक्ष में रहकर वह संभव नहीं हो पाएगा. इसलिए यह भी एक कारण हो सकता है कि वे अजीत पवार के साथ फिर से हाथ मिलाने पर विचार करें.
एनसीपी के दोनों धड़ों के एक न होने के तीन कारण क्या हो सकते हैं
पहला कारण
शरद पवार की राजनीति हमेशा मध्यम मार्ग वाली रही है. वे जातिवादी राजनीति से दूर रहते हैं और किसी एक विचारधारा या पक्ष से पूरी तरह नहीं जुड़ते. उनके बारे में कई बार यह कहा गया कि वे बीजेपी के साथ जा सकते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया. वे अपनी राजनीतिक पहचान को खत्म नहीं होने देना चाहते. इसीलिए सीधे तौर पर बीजेपी या किसी एक पक्ष के साथ जाने से बचते हैं.
दूसरा कारण
अगर एनसीपी का मर्जर होता है, तो उन्हें अजीत पवार की बात माननी पड़ेगी. पार्टी की कमान अगर अजीत पवार को देनी होती, तो वो पहले ही दी जा सकती थी, लेकिन नहीं दी गई. उस समय कई और नाम सामने आए. अब तो उनकी बेटी सुप्रिया सुले पार्टी अध्यक्ष हैं. शरद पवार का राजनीतिक दौर अब ढलान पर है, उनकी उम्र भी हो चुकी है, इसलिए वे मर्जर नहीं करना चाहेंगे.
तीसरा कारण
महाराष्ट्र में शरद पवार की एक मजबूत छवि है. उन्हें लगता है कि बीजेपी अभी भी राज्य को पूरी तरह से नहीं समझ पाई है. आज की तारीख में बीजेपी के लिए अकेले चुनाव लड़ना और जीतना मुश्किल है. शरद पवार मानते हैं कि जनता अभी भी बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहती, इसलिए वे अजीत पवार के माध्यम से बीजेपी से पूरी तरह हाथ नहीं मिलाना चाहेंगे.
ये भी पढ़ें: बिहार में चुनाव से पहले NDA में सीट बंटवारे का होम वर्क पूरा, जानें कैसे मिलेगा टिकट
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं