दिल्ली में किसानों की रैली में आए ओडिशा के किसानों ने एनडीटीवी को बताई अपनी समस्याएं
नई दिल्ली:
29-30 नवंबर को हज़ारों की संख्या में जब किसान दिल्ली की सड़कों पर अपने हक़ के लिए प्रदर्शन कर रहे थे तब इनके रंग में दिल्ली भी रंगी नजर आई. किसी के हाथ लाल झंडा था तो किसी के हाथ में हरा, कोई धान लेकर पहुंचा हुआ था तो कोई आलू फिर कोई गुड़. दिल्ली के जंतरमंतर पर कई दिनों तक लगातार प्रदर्शन करने वाले तमिलनाडु के किसान भी अपने अलग रंग में रंगे हुए थे. लोकतंत्र में यही खूबसूरत पल था जब अलग अलग राज्यों के किसान अलग अलग अंदाज़ में प्रदर्शन कर रहे थे. ऐसा लग रहा था कि जैसे एक जगह देश की सब संस्कृति इकट्ठा हो गई हो.अनेकता में एकता का पल था. यहां न धर्म का मामला था न अहंकार का,यहां न तो कोई बड़ा था न छोटा,सब किसान थे. बूढ़े से युवा तक इस प्रदर्शन में शामिल हुए थे. कोई हाथ में कंबल लेकर निकाला हुआ था तो कोई हुक्का. इस प्रदर्शन में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं भी शामिल हुईं थीं. लोकतंत्र के लिए भी यह बहुत बड़ी बात थी कि महिलाएं अपने हक़ के लिए घर-संसार छोड़कर सड़क पर थी. वो भी खूबसूरत पल था जब किसानों को मदद करने के लिए युवा सड़क पर उतरे थे कोई बिस्कुट बांट रहा था तो कोई केक. आंध्रप्रदेश का एक युवा अपने आंध्र के किसानों के लिए मां के हाथ से बनाया हुआ उपमा और चटनी भी लेकर आया था.
हर पल भाषा भी बदल रहे थे. अलग अलग राज्य के किसान अपना भाषा बोल रहे थे. कोई मैथिली बोल रहा था तो कोई भोजपुरी कोई ओड़िया तो कोई हरियाणवी तो कोई पंजाबी. दक्षिण भारतीय किसान भी अपनी भाषा के साथ डटे थे. ऐसे भी किसानों को समझने के लिए भाषा की जरूरत नहीं. उसके भावना और भावुकता को समझने की जरूरत है. सब की भाषा अलग थी लेकिन मांगे एक. फ़सलों का उचित दाम, फसल बीमा के तहत मुआवजा और कर्ज माफ़ी. ओडिशा के किसान करीब दो हजार किलोमीटर यात्रा करने के बाद दिल्ली पहुंचे थे. बरगढ़, बलंगीरी, झारसुगुड़ा, संबलपुर जैसे शहर के किसान इस प्रदर्शन में शामिल हुए थे. ओडिशा के कई किसानों से बात हुई. एक किसान ने बताया कि बेटी की शादी करने के लिए पैसा नहीं है. लोग शादी के लिए ज़मीन बेचते हैं या फिर ज़मीन जमींदार के पास छोड़ आते हैं. जमींदार लोन देता है फिर उस ज़मीन में कई साल तक खेती करता है ,पैसा कमाता है और किसान जब लोन का पूरा पैसा दे देता है फिर उसे ज़मीन वापस मिलती है.
किसान ने बताया कि कई बार ऐसा भी होता है जब कर्ज न चुका पाने के चलते जमींदार ज़मीन अपने नाम कर लेता है. किसान ने बताया कि उसके गांव में 90 प्रतिशत किसान बेटी की शादी के लिए ज़मीन बेच रहे हैं. किसानों को धान का सही दाम भी नहीं मिल रहा हैं. प्रति क्विंटल धान के लिए सिर्फ 1000 से 1100 रूपया मिलते हैं. बरगड़ से आये एक किसान ने बताया की पिछले तीन सालों से वहां सूखा पड़ रहा है बरगढ़ ज़िला में पिछले दो साल में 800 किसान आत्महत्या कर चुके है. एक किसान ने बताया की उसके पास पांच एकड़ ज़मीन है, सभी फसलें नष्ट हो गईं, लेकिन फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा नहीं मिला. किसान ने फसल बीमा के लिए प्रीमियम भी भरा है. सूखा पड़ने के बाद किसानों को फसल बीमा के तहत मुआवजा मिल जाना चाहिए था. सरकार के नियम के हिसाब से किसानों के फसल नष्ट होने के दो महीने के अंदर मुआवजा मिलना चाहिए लेकिन कई किसानों को मुआवजा नहीं मिला तो क्यों नहीं. जिनको मिला वह भी पांच से सात महीने के बाद।
ओडिशा की एक महिला ने बताया कि उसके घर मे सब खेती पर निर्भर हैं लेकिन सूखा पड़ने के वजह से खेती हो नहीं पा रही है और सभी लोग खाली बैठे हैं. ओडिशा की एक और महिला किसान ने बताया कि उसकी धान की खेती को कीड़ा नष्ट कर दिए हैं लेकिन फसल बीमा के तहत पैसा नहीं मिल रहा है. ओडिशा के पुरी ज़िले से आए कुछ किसानों ने भी अपनी समस्या बताई. एक किसान ने कहा कि उन लोगों को बहुत कमज़ोर बीज मिलता है और इस बीज से निकलने वाली फसल बहुत जल्दी नष्ट हो जाती है लेकिन इसके लिए मुआवजा नहीं मिलता है. किसान ने कहा चार साल से इन लोगों की खेती प्राकृतिक आपदा की वजह से नष्ट हो जाती है. लेकिन सरकार के तरफ से इन्हे मुआवजा नहीं मिला है. पुरी जिले की एक महिला ने कहा कि उसने कर्ज लेकर खेती की थी, प्राकृतिक आपदा के वजह से धान की खेती नष्ट हो गई लेकिन कर्ज माफ़ी का लाभ आज तक नहीं मिल सका है.
फोटो परिचयः दिल्ली में किसानों की रैली के दौरान एनडीटीवी को अपना दुखड़ा सुनाते ओडिशा के किसान.
हर पल भाषा भी बदल रहे थे. अलग अलग राज्य के किसान अपना भाषा बोल रहे थे. कोई मैथिली बोल रहा था तो कोई भोजपुरी कोई ओड़िया तो कोई हरियाणवी तो कोई पंजाबी. दक्षिण भारतीय किसान भी अपनी भाषा के साथ डटे थे. ऐसे भी किसानों को समझने के लिए भाषा की जरूरत नहीं. उसके भावना और भावुकता को समझने की जरूरत है. सब की भाषा अलग थी लेकिन मांगे एक. फ़सलों का उचित दाम, फसल बीमा के तहत मुआवजा और कर्ज माफ़ी. ओडिशा के किसान करीब दो हजार किलोमीटर यात्रा करने के बाद दिल्ली पहुंचे थे. बरगढ़, बलंगीरी, झारसुगुड़ा, संबलपुर जैसे शहर के किसान इस प्रदर्शन में शामिल हुए थे. ओडिशा के कई किसानों से बात हुई. एक किसान ने बताया कि बेटी की शादी करने के लिए पैसा नहीं है. लोग शादी के लिए ज़मीन बेचते हैं या फिर ज़मीन जमींदार के पास छोड़ आते हैं. जमींदार लोन देता है फिर उस ज़मीन में कई साल तक खेती करता है ,पैसा कमाता है और किसान जब लोन का पूरा पैसा दे देता है फिर उसे ज़मीन वापस मिलती है.
दिल्ली में किसानों की रैली के दौरान एकत्र हुए किसान.
किसान ने बताया कि कई बार ऐसा भी होता है जब कर्ज न चुका पाने के चलते जमींदार ज़मीन अपने नाम कर लेता है. किसान ने बताया कि उसके गांव में 90 प्रतिशत किसान बेटी की शादी के लिए ज़मीन बेच रहे हैं. किसानों को धान का सही दाम भी नहीं मिल रहा हैं. प्रति क्विंटल धान के लिए सिर्फ 1000 से 1100 रूपया मिलते हैं. बरगड़ से आये एक किसान ने बताया की पिछले तीन सालों से वहां सूखा पड़ रहा है बरगढ़ ज़िला में पिछले दो साल में 800 किसान आत्महत्या कर चुके है. एक किसान ने बताया की उसके पास पांच एकड़ ज़मीन है, सभी फसलें नष्ट हो गईं, लेकिन फसल बीमा योजना के तहत मुआवजा नहीं मिला. किसान ने फसल बीमा के लिए प्रीमियम भी भरा है. सूखा पड़ने के बाद किसानों को फसल बीमा के तहत मुआवजा मिल जाना चाहिए था. सरकार के नियम के हिसाब से किसानों के फसल नष्ट होने के दो महीने के अंदर मुआवजा मिलना चाहिए लेकिन कई किसानों को मुआवजा नहीं मिला तो क्यों नहीं. जिनको मिला वह भी पांच से सात महीने के बाद।
ओडिशा की एक महिला ने बताया कि उसके घर मे सब खेती पर निर्भर हैं लेकिन सूखा पड़ने के वजह से खेती हो नहीं पा रही है और सभी लोग खाली बैठे हैं. ओडिशा की एक और महिला किसान ने बताया कि उसकी धान की खेती को कीड़ा नष्ट कर दिए हैं लेकिन फसल बीमा के तहत पैसा नहीं मिल रहा है. ओडिशा के पुरी ज़िले से आए कुछ किसानों ने भी अपनी समस्या बताई. एक किसान ने कहा कि उन लोगों को बहुत कमज़ोर बीज मिलता है और इस बीज से निकलने वाली फसल बहुत जल्दी नष्ट हो जाती है लेकिन इसके लिए मुआवजा नहीं मिलता है. किसान ने कहा चार साल से इन लोगों की खेती प्राकृतिक आपदा की वजह से नष्ट हो जाती है. लेकिन सरकार के तरफ से इन्हे मुआवजा नहीं मिला है. पुरी जिले की एक महिला ने कहा कि उसने कर्ज लेकर खेती की थी, प्राकृतिक आपदा के वजह से धान की खेती नष्ट हो गई लेकिन कर्ज माफ़ी का लाभ आज तक नहीं मिल सका है.
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