फाइल फोटो
नई दिल्ली:
शहर की एक अदालत ने आईटी एक्जीक्यूटिव जिगिशा घोष की हत्या और लूटपाट मामले में तीन लोगों को दोषी ठहराया तथा कहा कि यह 'काफी स्पष्ट' है कि उन्होंने अपराध किया। यह घटना 2009 में हुई थी।
पुलिस ने बताया कि 28 वर्षीय जिगिशा एक प्रबंधन कंसल्टंसी फर्म में ऑपरेशंस मैनेजर के रूप में काम करती थी। 18 मार्च 2009 को उसके कार्यालय की कैब ने उसे सुबह करीब चार बजे दक्षिण दिल्ली के वसंत विहार स्थित उसके घर के पास छोड़ा जिसके बाद उसका अपहरण हो गया और उसकी हत्या कर दी गई। तीन दिन बाद उसका शव हरियाणा के सूरजकुंड के पास स्थित एक जगह से मिला।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने रवि कपूर, अमित शुक्ला और बलजीत सिंह मलिक को भादंसं के तहत हत्या, अपहरण, लूटपाट, फर्जीवाड़े और साझा मंशा के अपराधों का दोषी ठहराया। कपूर को आग्नेयास्त्र के इस्तेमाल के अपराध के लिए शस्त्र कानून के तहत भी दोषी ठहराया गया।
फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘‘उन्होंने (आरोपियों) उसकी हत्या की और शव को झाड़ियों में फेंक दिया तथा पारिस्थितिजन्य साक्ष्य यह स्पष्ट करता है कि यही लोग थे जिन्होंने अपराध किया।’’
अदालत ने कहा, ‘‘साक्ष्य से यह काफी स्पष्ट है कि उन्होंने अपराध किया। अपराध की कड़ियां जुड़ती हैं (और) इसलिए निर्दोषिता की संभावना नजर नहीं आती। रिकॉर्ड में यह साबित हो गया कि घटना के दिन जिगिशा अपेक्षित समय पर घर नहीं पहुंची।’’ इसने कहा कि यह साबित हो गया कि तीनों दोषियों ने जिगिशा का अपहरण किया, उसकी सोने की चेन, दो मोबाइल फोन, दो अंगूठियां और डेबिट तथा क्रेडिट कार्ड लूटे तथा उसकी हत्या कर दी।
अदालत ने दिल्ली के गृह सचिव से यह भी कहा कि वह दोषियों की पृष्ठभूमि और जेल में उनके आचरण पर रिपोर्ट दायर करने के लिए तत्काल परिवीक्षा अधिकारियों की नियुक्ति करे।
अदालत ने अभियोजक और बचाव पक्ष के वकील की अंतिम दलीलें सुनने के बाद 5 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पूर्व में, विशेष लोक अभियोजक राजीव मोहन ने कहा था कि आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए उनके खिलाफ विस्तृत सबूत हैं।
आरोपियों अमित शुक्ला और बलजीत सिंह मलिक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अमित कुमार ने कहा था कि अभियोजन अपने मामले को यथोचित संदेह से परे साबित करने में सफल नहीं रहा है और इसका कोई साक्ष्य नहीं है जो आरोपी लोगों को हत्या के अपराध से जोड़ सके। तीनों दोषी फिलहाल जेल में हैं।
पुलिस ने मामले में जून 2009 में आरोपपत्र दायर किया था और मुकदमा प्रथम अभियोजन गवाह के रूप में जिगिशा के पिता की गवाही के साथ 15 अप्रैल 2010 को शुरू हुआ। अदालत ने आरोपियों के खिलाफ हत्या, अपहरण, लूटपाट, फर्जीवाड़े और आग्नेयास्त्र के इस्तेमाल के आरोप में भादंसं तथा शस्त्र कानून के तहत आरोप तय किए थे।
जिगिशा की हत्या के लिए कथित तौर पर इस्तेमाल किए गए हथियार की बरामदगी से सौम्या विश्वनाथन की हत्या का मामला भी सुलझ गया था जो एक समाचार चैनल में पत्रकार थी।
सौम्या की 30 सितंबर 2008 को उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह तड़के अपनी कार में घर लौट रही थी। पुलिस ने दावा किया था कि जिगिशा और सौम्या दोनों की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी। पुलिस ने कहा था कि आरोपियों ने जिगिशा के एटीएम कार्ड को सरोजिनी नगर मार्केट से महंगे चश्मे, कलाई घड़ियां और जूते खरीदने के लिए इस्तेमाल किया था।
पुलिस ने बताया कि 28 वर्षीय जिगिशा एक प्रबंधन कंसल्टंसी फर्म में ऑपरेशंस मैनेजर के रूप में काम करती थी। 18 मार्च 2009 को उसके कार्यालय की कैब ने उसे सुबह करीब चार बजे दक्षिण दिल्ली के वसंत विहार स्थित उसके घर के पास छोड़ा जिसके बाद उसका अपहरण हो गया और उसकी हत्या कर दी गई। तीन दिन बाद उसका शव हरियाणा के सूरजकुंड के पास स्थित एक जगह से मिला।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप यादव ने रवि कपूर, अमित शुक्ला और बलजीत सिंह मलिक को भादंसं के तहत हत्या, अपहरण, लूटपाट, फर्जीवाड़े और साझा मंशा के अपराधों का दोषी ठहराया। कपूर को आग्नेयास्त्र के इस्तेमाल के अपराध के लिए शस्त्र कानून के तहत भी दोषी ठहराया गया।
फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने कहा, ‘‘उन्होंने (आरोपियों) उसकी हत्या की और शव को झाड़ियों में फेंक दिया तथा पारिस्थितिजन्य साक्ष्य यह स्पष्ट करता है कि यही लोग थे जिन्होंने अपराध किया।’’
अदालत ने कहा, ‘‘साक्ष्य से यह काफी स्पष्ट है कि उन्होंने अपराध किया। अपराध की कड़ियां जुड़ती हैं (और) इसलिए निर्दोषिता की संभावना नजर नहीं आती। रिकॉर्ड में यह साबित हो गया कि घटना के दिन जिगिशा अपेक्षित समय पर घर नहीं पहुंची।’’ इसने कहा कि यह साबित हो गया कि तीनों दोषियों ने जिगिशा का अपहरण किया, उसकी सोने की चेन, दो मोबाइल फोन, दो अंगूठियां और डेबिट तथा क्रेडिट कार्ड लूटे तथा उसकी हत्या कर दी।
अदालत ने दिल्ली के गृह सचिव से यह भी कहा कि वह दोषियों की पृष्ठभूमि और जेल में उनके आचरण पर रिपोर्ट दायर करने के लिए तत्काल परिवीक्षा अधिकारियों की नियुक्ति करे।
अदालत ने अभियोजक और बचाव पक्ष के वकील की अंतिम दलीलें सुनने के बाद 5 जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पूर्व में, विशेष लोक अभियोजक राजीव मोहन ने कहा था कि आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए उनके खिलाफ विस्तृत सबूत हैं।
आरोपियों अमित शुक्ला और बलजीत सिंह मलिक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अमित कुमार ने कहा था कि अभियोजन अपने मामले को यथोचित संदेह से परे साबित करने में सफल नहीं रहा है और इसका कोई साक्ष्य नहीं है जो आरोपी लोगों को हत्या के अपराध से जोड़ सके। तीनों दोषी फिलहाल जेल में हैं।
पुलिस ने मामले में जून 2009 में आरोपपत्र दायर किया था और मुकदमा प्रथम अभियोजन गवाह के रूप में जिगिशा के पिता की गवाही के साथ 15 अप्रैल 2010 को शुरू हुआ। अदालत ने आरोपियों के खिलाफ हत्या, अपहरण, लूटपाट, फर्जीवाड़े और आग्नेयास्त्र के इस्तेमाल के आरोप में भादंसं तथा शस्त्र कानून के तहत आरोप तय किए थे।
जिगिशा की हत्या के लिए कथित तौर पर इस्तेमाल किए गए हथियार की बरामदगी से सौम्या विश्वनाथन की हत्या का मामला भी सुलझ गया था जो एक समाचार चैनल में पत्रकार थी।
सौम्या की 30 सितंबर 2008 को उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह तड़के अपनी कार में घर लौट रही थी। पुलिस ने दावा किया था कि जिगिशा और सौम्या दोनों की हत्या लूटपाट के लिए की गई थी। पुलिस ने कहा था कि आरोपियों ने जिगिशा के एटीएम कार्ड को सरोजिनी नगर मार्केट से महंगे चश्मे, कलाई घड़ियां और जूते खरीदने के लिए इस्तेमाल किया था।
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