दिवाली का त्योहार नजदीक आ गया है. बाजार रंग बिरंगी लाइटों (Diwali Clay Lamp) से रोशन हैं. इस बीच कुम्हारों की मुस्कान कहीं खो सी गई है. पहले जब दिवाली आती थी तो कुम्हारों और उनके बच्चों के चेहरे खुशी से खिल उठते थे, क्यों कि दीयों की बिक्री अचानक से तेज हो जाती थी. लोग अपने घरों को रोशन करने के लिए मिट्टी के दीये जो जलाते थे. बाजारों में मिट्टी के पारंपरिक दीये खरीदने वालों की जैसे बहार सी आ जाती थी. हर कोई मां लक्ष्मी का स्वागत घी और तेल के दीपक जलाकर करता था. लेकिन अब जमाना मॉर्डन हो गया है. बाजारों में तरह-तरह की इलेक्ट्रिक और चाइनीज लाइटें सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं.
कुम्हारों की दिवाली कब आएगी?
लोगों को दीये खरीदकर उसमें घी तेल डालने से ज्यादा उन लाइट वाले चाइनीज दीयों को जलाना आसान लगता है. यही वजह है कि दिवाली आकर भी कुम्हारों के चेहरे खुशी से रोशन नहीं हो पा रहे हैं या यूं कहें कि उनकी दिवाली सहज नहीं आ आपा रही. क्यों कि मिट्टी के दीये खरीदने वालों की तादात पहले से काफी कम हो गई है. वहीं मिट्टी पर टैक्स भी चुकाना पड़ रहा है. जोधपुर के एक ऐसे ही कुम्हार का दर्द छलक उठा, सुनिए उन्होंने क्या कहा.
Jodhpur, Rajasthan: Dharmendra, a clay lamp maker, says, "This work has been going on for two or three generations. Previously, the work was running smoothly, but now there has been a significant change—a 50% difference. People are buying electric items or Chinese products, which… pic.twitter.com/78SQ5tbO5a
— IANS (@ians_india) October 22, 2024
दीये बनाने वाले कुम्हार का दर्द
मिट्टी के दीये बनाने वाले धर्मेंद्र ने अपना दर्द बायां करते हुए कहा कि वह ये काम दो या तीन पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. पहले उनका काम बहुत ही बढ़िया तरीके से चलता था. लेकिन अब एक इसमें बड़ा बदलाव आया है. दीयों की बिक्री में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है. अब लोग इलेक्ट्रिक आइटम या चाइनीज आइटम खरीदने लगे हैं, जिससे उनके मिट्टी के दीयों की बिक्री में थोड़ी गिरावट आई है.
दिवाली पर कैसे कम हो गई दीयों की बिक्री?
धर्मेंद्र का कहना है कि वह दीये बनाने के लिए जिस मिट्टी का उपयोग करते थे, उसे खास है. उस मिट्टी को रोइट नाम के गांव से मंगवाया जाता था. लेकिन अब वहां मिट्टी की आपूर्ति बंद हो गई है. साथ ही मिट्टी पर टैक्स भी लगता है. जहां से वह वह मिट्टी लाते हैं, वहां इसके लिए उनको लोगों को पैसे चुकाने पड़ते हैं.
उन्होंने सरकार से मिट्टी पर लगने वाले चार्जेस को खत्म करने की अपील की है.उनकी मांग है कि वह जहां से भी मिट्टी लेकर आते हैं, वहां उनसे पैसे न लिए जाएं.साथ ही उनको आसानी से मिट्टी लाने की परमिशन दे दी जाए.
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