सुप्रीम कोर्ट ने एनटीपीसी को निर्देश दिया कि वह 26 मार्च तक दिल्ली में बिजली आपूर्ति करने वाली कंपनी बीएसईएस को बिजली आपूर्ति नहीं काटे। कोर्ट ने बीएसईएस को निर्देश दिया कि वह दो हफ्ते के भीतर एनटीपीसी को 50 करोड़ रुपये का भुगतान करे।
बीएसईएस राजधानी और बीएसईएस यमुना पावर ने एनटीपीसी के उस आदेश के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें बकाया भुगतान तय वक्त तक न करने पर बिजली न देने की चेतावनी दी गई है।
बीएसईएस ने एनटीपीसी की चेतावनी का विरोध किया और बिजली न देने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दीहै। एनटीपीसी ने सोमवार यानी 11 तारीख से बीएसईएस को बिजली न देने की घोषणा की थी, जिसके चलते दिल्ली के कई हिस्सों में बिजली संकट पैदा हो सकता था।
न्यायमूर्ति सुरिंदर सिंह निज्जर और न्यायमूर्ति एके सिकरी की पीठ ने दोनों कंपनियों - बीएसईएस राजधानी पॉवर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना पॉवर लिमिटेड को निर्देश दिया कि दो सप्ताह के भीतर बकाए के हिस्से के रूप में वे एनटीपीसी को 50 करोड़ रुपये का भुगतान करें।
अनिल अंबानी की रिलायंस इंफ्रा समूह की दोनों कंपनियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार, दिल्ली बिजली नियामक आयोग और एनटीपीसी को नोटिस भेजकर डिस्कॉम की याचिका पर दो सप्ताह के भीतर अपने मंतव्य दाखिल करने का निर्देश दिया और दोनों डिस्कॉक को भी प्रत्युत्तर देने के लिए एक सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया।
डिस्कॉम के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि दोनों कंपनियों को 15 हजार करोड़ रुपये के बकाए का अब तक भुगतान नहीं किया गया है, जैसा कि डीईआरसी ने निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि एक ओर डिस्कॉम को अपने बकाए का भुगतान नहीं मिल रहा है और दूसरी ओर एनटीपीसी अपने बकाए का भुगतान करने के लिए कह रही है।
दोनों कंपनियां दिल्ली के करीब 70 फीसदी हिस्से में बिजली आपूर्ति करती हैं। उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार ने नियामक को सुझाव दिया है कि यदि दोनों कंपनियां एनटीपीसी को भुगतान नहीं करती हैं या बिजली की कटौती करती हैं, तो उनके लाइसेंस रद्द कर दिए जाएं। कंपनियों ने कहा है कि लाइसेंस रद्द करने का कदम अवैधानिक और मनमाना होगा और नियामक को इस मामले पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना चाहिए।
(इनपुट एजेंसियों से भी)
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