नई दिल्ली:
श्रीलंकाई सरकार ने यूके के चैनल-4 द्वारा लगाए गए आरोपों को 'क्रूर' करार दिया है। चैनल ने आरोप लगाया था कि श्रीलंकाई सेना ने एलटीटीई प्रमुख प्रभाकरण के 12 वर्षीय बच्चे को मई 2009 में उस समय गोली मार दी जब सेना के एक कैंप में उसे कुछ खाते हुए देखा।
चैनल का आरोप है कि उसे देखते ही सेना ने उसकी खाते हुए तस्वीर उतारी और फिर उसे गोलियों से भून डाला। चैनल का यह भी दावा है कि बच्चे को काफी करीब से गोली मारी गई और उसके बाद फिर उसकी तस्वीर उतारी गई।
पिछले वर्ष चैनल-4 ने गोलियों से भूनी गई बच्चे की तस्वीर को एक डॉक्यूमेंट्री में रिलीज किया था। यह तस्वीर 'नो वॉर जोन : द किलिंग फील्ड्स ऑफ श्रीलंका' फिल्म का हिस्सा है। इस फिल्म को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संघ के सदस्यों की अगले माह होने वाली बैठक में स्क्रीन किया जाएगा।
एनडीटीवी से बात करते हुए दिल्ली में श्रीलंकाई उच्चायोग के अधिकारी ने कहा कि श्रीलंकाई सेना ने कभी भी आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाया। उनका कहना है कि नई तस्वीरें मानवाधिकार संगठन की बैठक से ठीक पहले जारी कर श्रीलंकाई लोगों को शर्मिंदा करने का प्रयास है।
अंग्रेजी अखबार 'द हिन्दू' में चैनल-4 के निदेशक कैल्लम मैक्रे ने लिखा कि नई तस्वीर एक महत्वपूर्ण तस्वीर है, क्योंकि वह साबित करना चाहते हैं कि बालाचंद्रन (प्रभाकरण का बेटा) गोलीबारी या युद्ध में नहीं मारा गया था। उसे सोची-समझी रणनीति के तहत मारा गया था।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार इकाई ने जेनेवा में एक प्रस्ताव पारित कर श्रीलंका से यह अपील की थी कि वह अपनी सेना के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे और जिम्मेदारी तय करे, जो एलटीटीई से युद्ध समाप्त होने के बाद भी युद्ध-अपराध के दोषी हैं।
मानवाधिकार संगठन के इस प्रस्ताव का भारत ने भी समर्थन किया था। कहा जा रहा था कि यूपीए में सरकार का समर्थन कर रही डीएमके के दबाव में सरकार ने यह कदम उठाया था।
मंगलवार को भी डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने भारत सरकार से अपील की है कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन के होने वाले अधिवेशन में श्रीलंका के खिलाफ अमेरिकी प्रस्ताव का समर्थन करे। डीएमके प्रवक्ता इल्लानगोवन ने कहा कि यह तस्वीर एक अन्य सबूत है, जो यह बताती है कि श्रीलंकाई राष्ट्रपति राजपक्षे एक युद्ध-अपराधी हैं।
चैनल का आरोप है कि उसे देखते ही सेना ने उसकी खाते हुए तस्वीर उतारी और फिर उसे गोलियों से भून डाला। चैनल का यह भी दावा है कि बच्चे को काफी करीब से गोली मारी गई और उसके बाद फिर उसकी तस्वीर उतारी गई।
पिछले वर्ष चैनल-4 ने गोलियों से भूनी गई बच्चे की तस्वीर को एक डॉक्यूमेंट्री में रिलीज किया था। यह तस्वीर 'नो वॉर जोन : द किलिंग फील्ड्स ऑफ श्रीलंका' फिल्म का हिस्सा है। इस फिल्म को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संघ के सदस्यों की अगले माह होने वाली बैठक में स्क्रीन किया जाएगा।
एनडीटीवी से बात करते हुए दिल्ली में श्रीलंकाई उच्चायोग के अधिकारी ने कहा कि श्रीलंकाई सेना ने कभी भी आम नागरिकों को निशाना नहीं बनाया। उनका कहना है कि नई तस्वीरें मानवाधिकार संगठन की बैठक से ठीक पहले जारी कर श्रीलंकाई लोगों को शर्मिंदा करने का प्रयास है।
अंग्रेजी अखबार 'द हिन्दू' में चैनल-4 के निदेशक कैल्लम मैक्रे ने लिखा कि नई तस्वीर एक महत्वपूर्ण तस्वीर है, क्योंकि वह साबित करना चाहते हैं कि बालाचंद्रन (प्रभाकरण का बेटा) गोलीबारी या युद्ध में नहीं मारा गया था। उसे सोची-समझी रणनीति के तहत मारा गया था।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार इकाई ने जेनेवा में एक प्रस्ताव पारित कर श्रीलंका से यह अपील की थी कि वह अपनी सेना के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे और जिम्मेदारी तय करे, जो एलटीटीई से युद्ध समाप्त होने के बाद भी युद्ध-अपराध के दोषी हैं।
मानवाधिकार संगठन के इस प्रस्ताव का भारत ने भी समर्थन किया था। कहा जा रहा था कि यूपीए में सरकार का समर्थन कर रही डीएमके के दबाव में सरकार ने यह कदम उठाया था।
मंगलवार को भी डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने भारत सरकार से अपील की है कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन के होने वाले अधिवेशन में श्रीलंका के खिलाफ अमेरिकी प्रस्ताव का समर्थन करे। डीएमके प्रवक्ता इल्लानगोवन ने कहा कि यह तस्वीर एक अन्य सबूत है, जो यह बताती है कि श्रीलंकाई राष्ट्रपति राजपक्षे एक युद्ध-अपराधी हैं।
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