सिक्किम में हुई तबाही के लिए कौन जिम्मेदार? क्या चेतावनी को नजरअंदाज करना पड़ गया महंगा?

सिक्किम में मंगलवार देर रात बादल फटने की घटना में अब तक 14 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है. 26 घायल बताए जा रहे हैं, जबकि 102 लोग अब भी लापता हैं. इनमें सेना के 22 जवान भी शामिल हैं.

सिक्किम में हुई तबाही के लिए कौन जिम्मेदार? क्या चेतावनी को नजरअंदाज करना पड़ गया महंगा?

तीस्ता नदी में बाढ़ आने के बाद से 102 लोग लापता बताए जा रहे हैं.

गंगटोक:

सिक्किम में आई प्राकृतिक आपदा ने भयंकर कहर बरपाया है. क्लाइमेट चेंज की वजह से ग्लेशियर के पिघलने का खतरा बड़ा हो रहा है. इसके साथ ही आपदाओं के बढ़ने की आशंका भी. इस बीच 10 साल पहले फरवरी 2013 में  "Current Science" Journal में छपा ISRO के दो वैज्ञानिकों और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस की एक वैज्ञानिक का एक रिसर्च पेपर सामने आया है. इसमें उन्होंने आगाह किया था कि सिक्किम का साउथ ल्होनक ग्लेशियर पीछे जा रहा है. इसकी वजह से इसके फटने और आपदा की संभावना काफी ज़्यादा है. अब सवाल उठ रहा है कि क्या इस चेतावनी के बाद एजेंसियों ने जरूरी कदम उठाये थे?  

बता दें कि सिक्किम में मंगलवार देर रात बादल फटने की घटना में अब तक 14 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है. 26 घायल बताए जा रहे हैं, जबकि 102 लोग अब भी लापता हैं. इनमें सेना के 22 जवान भी शामिल हैं. 

फरवरी 2013 में ISRO के दो वैज्ञानिकों और उस वक्त इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस से जुडी वैज्ञानिक डॉ. एस एन राम्या ने "Current Science" Journal में छपी इस रिसर्च पेपर में सैटेलाइट डेटा का हवाला देते हुए आगाह किया था कि सिक्किम का ल्होनक ग्लेशियर 1962 से 2008 के बीच 1.9 किलोमीटर तक पीछे जा चुका है. इसकी वजह से झील के टूटने या फटने की आशंका 42% है. इस खतरे को देखते हुए वहां अर्ली वार्निंग सिस्टम्स लगाना बेहद ज़रूरी है.

पिछले एक दशक से अधिक समय से सिक्किम के ग्लेशियर पर रिसर्च कर रहीं वैज्ञानिक एस एन रम्या ने साउथ ल्होनक ग्लेशियर पर 2019 में दूसरा रिसर्च पेपर पब्लिश किया था. इसमें कहा गया कि साल 2000 से 2015 के बीच साउथ ल्होनक ग्लेशियर की लंबाई आधा किलोमीटर तक बढ़ गई है. इसकी गहराई औसतन 50 मीटर हो गई है.

अमृता विश्व विद्यापीठम की असिस्टेंट प्रोफेसर एसएन रम्या ने NDTV से कहा, "2013 की स्टडी में हमने प्रेडिक्ट किया था कि साउथ ल्होनक ग्लेशियर के ब्रेक होने की संभावना 42% है. सिक्किम में जो बादल फटा है, उसके बारे में हमने प्रेडिक्ट किया था कि इसकी वजह से 19 मिलियन क्यूबिक मीटर तक पानी रिलीज़ हो सकता है. हमने कहा था कि ये झील खतरे में हैं. हमने अर्ली वार्निंग सिस्टम रिकमेंड किया था. आज इस झील के टूटने से मैं दुखी हूं. बहुत लोगों की जान गई है. घर बह गए हैं.".    

ऐसे में सिक्किम में आई भयंकर त्रासदी से ये सवाल उठता है कि क्या इस खतरे की संभावना को देखते हुए राज्य प्रशासन ने ज़रूरी कदम थे? NDTV को मिली टूटे हुए डैम की ये पहली तस्वीरें बताती हैं कि ये आपदा कितनी भयावह थी. 

मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ. एम मोहापात्रा ने NDTV से कहा, "भविष्य में ग्लेशियर के टूटने या फटने को मॉनिटर और प्रेडिक्ट करना जरूरी होगा. क्लाइमेट चेंज की वजह से तापमान बढ़ता है. इसकी वजह से ग्लेशियर पिघलते हैं. उनका रिट्रीट होता रहता है. इससे निकलने वाला पानी झील में जमा होता है या फिर नए झील बनते हैं....ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट के इंपैक्ट की मॉनिटरिंग और प्रेडिक्शन कि हम कोशिश करेंगे. भविष्य में इसकी बेहतर मॉनिटरिंग करना जरूरी होगा".    

फिलहाल सिक्किम में बारिश की तीव्रता घट गई है. इसके साथ ही किसी नए आपदा का खतरा भी कम हो गया है. मौसम विभाग के मुताबिक सिक्किम में मंगलवार और बुधवार सुबह हुई औसत से कई गुना ज्यादा बारिश की वजह से सिक्किम को ये बड़ी आपदा झेलनी पड़ी. पिछले 24 घंटे में बारिश की तीव्रता घट गई है. अगले 24 घंटे सिक्किम के कुछ ही इलाकों में भारी बारिश का पूर्वानुमान है.

जिस परिस्थिति में ये हादसा हुआ उसको लेकर कई बड़े सवाल खड़े हो रहे हैं. सिक्किम में ग्लेशियर के टूटना या फटना हिमालयन क्षेत्र में आपदा के बढ़ते खतरे को लेकर एक बड़ी चेतावनी है. इसलिए सरकारी एजेंसियों को इससे निपटने के लिए बड़े स्तर पर तैयारी करनी होगी.


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