अजमेर:
जेल में 14 माह से ज्यादा वक्त बिताने के बाद 80 वर्षीय बीमार पाकिस्तानी वैज्ञानिक मोहम्मद खलील चिश्ती को बुधवार को अजमेर जेल से जमानत पर रिहा कर दिया गया। वह दो दशक पुराने हत्या के मामले में जेल में बंद थे। चिश्ती ने कहा कि वह जल्द ही अपने देश लौटना चाहते हैं।
उच्चतम न्यायालय की ओर से सोमवार को जमानत मिलने के बाद चिश्ती ने कहा, ‘‘मैं जेल से बाहर आकर खुश हूं। मैं अल्लाह में विश्वास करता हूं और उनको धन्यवाद देता हूं। मुझे पाकिस्तान में अपने परिवार के सदस्यों से यथाशीघ्र मिलने की तमन्ना है।’’ अजमेर केंद्रीय कारागार से बाहर आने पर उनके भाई जमील चिश्ती और रिश्तेदार अयाद अनवारुल हक सहित अन्य लोगों ने उनका शानदार स्वागत किया।
अंग्रेजी में बात करते हुए चिश्ती ने कहा, ‘‘मैं राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को भी धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मेरे लिए प्रयास किया और अजमेर का दौरा किया।’’ पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के भारत दौरे के समय दोनों देशों के अधिकारियों के बीच चर्चा के एक दिन बाद चिश्ती को मानवीय आधार पर जमानत दे दी गई। भारत और पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ता चिश्ती की रिहाई की मांग करते रहे हैं।
फास्ट ट्रैक अदालत में एक लाख रुपये का निजी मुचलका भरने और 50 हजार रुपये की दो जमानत राशि भरने के बाद उनके भाई जेल गए जहां औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। सफेद पठानी सूट और टोपी पहने एवं हाथ में ‘बीड़ी’ लिए हुए चिश्ती ने कहा कि वह घर जाने को बेताब हैं।
भारतीय सजायाफ्ता सरबजीत सिंह के मामले के बारे में पूछने पर चिश्ती ने कहा कि वह उनके बारे में नहीं जानते लेकिन कहा, ‘‘हर व्यक्ति को न्याय मिलना चाहिए।’’ सरबजीत सिंह को पाकिस्तान में फांसी की सजा मिली हुई है और वह 22 वषरें से जेल में बंद हैं। जमानत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने चिश्ती को निर्देश दिया था कि अदालत की अनुमति के बगैर वह देश से बाहर नहीं जाएं। बीमार चिश्ती अस्पताल की जेल में बंद थे।
पेशे से माइक्रोबायोलाजिस्ट चिश्ती 1992 में अपनी बीमार मां को देखने अजमेर आए थे जहां एक विवाद में फंस गए और विवाद के दौरान उनके एक पड़ोसी की गोली मारकर हत्या कर दी गई जबकि उनका भतीजा घायल हो गया। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की देखभाल करने वाले अजमेर के एक संपन्न घराने में जन्मे चिश्ती 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान में पढ़ रहे थे और वहीं रह गए।
उनकी रिहाई पर जमील चिश्ती ने कहा, ‘‘यह ख्वाजा गरीबनवाज का आशीर्वाद है।’’ न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और जे. चेलमेश्वर की खंडपीठ ने उनकी उम्र और 1992 से उनके भारत में होने का ख्याल करते हुए चिश्ती को जमानत दे दी। पिछले वर्ष जनवरी में आजीवन कारावास की सजा मिलने के बाद वह जेल में बंद थे। उनकी रिहाई पर भाजपा ने उम्मीद जताई कि पाकिस्तान भी सरबजीत सिंह को रिहा कर देगा। भाजपा नेता अरूण जेटली ने कहा कि निश्चित रूप से हम भारतीयों की आकांक्षाओं के साथ हैं कि पाकिस्तान भी ऐसा ही कदम उठाएगा।
उच्चतम न्यायालय की ओर से सोमवार को जमानत मिलने के बाद चिश्ती ने कहा, ‘‘मैं जेल से बाहर आकर खुश हूं। मैं अल्लाह में विश्वास करता हूं और उनको धन्यवाद देता हूं। मुझे पाकिस्तान में अपने परिवार के सदस्यों से यथाशीघ्र मिलने की तमन्ना है।’’ अजमेर केंद्रीय कारागार से बाहर आने पर उनके भाई जमील चिश्ती और रिश्तेदार अयाद अनवारुल हक सहित अन्य लोगों ने उनका शानदार स्वागत किया।
अंग्रेजी में बात करते हुए चिश्ती ने कहा, ‘‘मैं राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को भी धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मेरे लिए प्रयास किया और अजमेर का दौरा किया।’’ पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के भारत दौरे के समय दोनों देशों के अधिकारियों के बीच चर्चा के एक दिन बाद चिश्ती को मानवीय आधार पर जमानत दे दी गई। भारत और पाकिस्तान के सामाजिक कार्यकर्ता चिश्ती की रिहाई की मांग करते रहे हैं।
फास्ट ट्रैक अदालत में एक लाख रुपये का निजी मुचलका भरने और 50 हजार रुपये की दो जमानत राशि भरने के बाद उनके भाई जेल गए जहां औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। सफेद पठानी सूट और टोपी पहने एवं हाथ में ‘बीड़ी’ लिए हुए चिश्ती ने कहा कि वह घर जाने को बेताब हैं।
भारतीय सजायाफ्ता सरबजीत सिंह के मामले के बारे में पूछने पर चिश्ती ने कहा कि वह उनके बारे में नहीं जानते लेकिन कहा, ‘‘हर व्यक्ति को न्याय मिलना चाहिए।’’ सरबजीत सिंह को पाकिस्तान में फांसी की सजा मिली हुई है और वह 22 वषरें से जेल में बंद हैं। जमानत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने चिश्ती को निर्देश दिया था कि अदालत की अनुमति के बगैर वह देश से बाहर नहीं जाएं। बीमार चिश्ती अस्पताल की जेल में बंद थे।
पेशे से माइक्रोबायोलाजिस्ट चिश्ती 1992 में अपनी बीमार मां को देखने अजमेर आए थे जहां एक विवाद में फंस गए और विवाद के दौरान उनके एक पड़ोसी की गोली मारकर हत्या कर दी गई जबकि उनका भतीजा घायल हो गया। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की देखभाल करने वाले अजमेर के एक संपन्न घराने में जन्मे चिश्ती 1947 में विभाजन के दौरान पाकिस्तान में पढ़ रहे थे और वहीं रह गए।
उनकी रिहाई पर जमील चिश्ती ने कहा, ‘‘यह ख्वाजा गरीबनवाज का आशीर्वाद है।’’ न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और जे. चेलमेश्वर की खंडपीठ ने उनकी उम्र और 1992 से उनके भारत में होने का ख्याल करते हुए चिश्ती को जमानत दे दी। पिछले वर्ष जनवरी में आजीवन कारावास की सजा मिलने के बाद वह जेल में बंद थे। उनकी रिहाई पर भाजपा ने उम्मीद जताई कि पाकिस्तान भी सरबजीत सिंह को रिहा कर देगा। भाजपा नेता अरूण जेटली ने कहा कि निश्चित रूप से हम भारतीयों की आकांक्षाओं के साथ हैं कि पाकिस्तान भी ऐसा ही कदम उठाएगा।
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