प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
कैबिनेट ने किसानों को खरीफ की हर फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिलाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है. बुधवार को कैबिनेट ने धान समेत 14 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में बड़ी बढ़ोत्तरी देने का ऐलान कर दिया. हालांकि कांग्रेस ने फसलों की कुल खर्च के आकलन में ज़मीन के खर्च को शामिल ना करने के फैसले पर सवाल उठाया है.
चुनावी साल में संकट झेल रहे किसानों को राहत देने के लिए मोदी सरकार ने बुधवार को एक अहम फैसला किया.
कैबिनेट ने 14 ख़रीफ़ फसलों की लागत से 50% या उससे ज़्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी.
राजनीतिक तौर पर सबसे महत्वपूर्ण फसल धान की सामान्य क़िस्म का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1550 रुपये से बढ़ाकर 1750 रुपये कर दिया गया है जो धान की लागत से 50.09% ज़्यादा है.
धान के बाद सबसे अहम फ़सल अरहर, मूंग और उड़द दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी काफ़ी बढ़ोत्तरी की गई है. अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 से बढ़ाकर 5675 रुपये प्रति क्विंटल हुआ है, जो अरहर की लागत से 65.36% ज़्यादा है
सबसे ज़्यादा इज़ाफ़ा बाजरा में किया गया है. बाजरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1425 से बढ़ाकर 1950 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. यानी बाजरे की लागत से 96.97% ज़्यादा.
फैसले का ऐलान करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि आज़ादी के बाद इतनी ज़्यादा बढ़ोत्तरी न्यूनतम समर्थन मूल्य में नहीं की गई. उन्होंने कहा कि इससे किसानों की कमाई बढ़ेगी. यह 2022 तक किसानों की कमाई दोगुनी करने की दिशा में एक अहम कदम है.
फसल की कुल लागत के आकलन में बीज, खाद, कीटनाशक, मशीनरी और मज़दूरी आदि शामिल हैं. लेकिन ज़मीन की कीमत इसमें नहीं है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ये सवाल उठाया और कहा कि फसलों की लागत का आकलन करने का सरकार का फार्मूला गलत है.
जवाब में केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल ने एनडीटीवी से कहा कि लागत के आकलन में भूमि के खर्च को शामिल करना संभव नहीं है क्योंकि हर राज्य में ज़मीन की कीमत अलग है. उन्होंने एनडीटीवी से कहा, "पंजाब और राजस्थान में ज़मीन की कीमत एक कैसे हो सकती है? ज़मीन के खर्च का राष्ट्रीय स्तर पर एक समान आकलन संभव नहीं है.राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी फसल की पैदावार लागत में ज़मीन का खर्च शामिल करना संभव नहीं है."
ज़ाहिर है...इस बड़े फैसले के बाद अब सरकार के सामने अगली चुनौती इसका फायदा ज़मीन पर विशेषकर छोटे और मझौले किसानों तक सही तरीके से पहुंचाने की होगी.
चुनावी साल में संकट झेल रहे किसानों को राहत देने के लिए मोदी सरकार ने बुधवार को एक अहम फैसला किया.
कैबिनेट ने 14 ख़रीफ़ फसलों की लागत से 50% या उससे ज़्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी.
राजनीतिक तौर पर सबसे महत्वपूर्ण फसल धान की सामान्य क़िस्म का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1550 रुपये से बढ़ाकर 1750 रुपये कर दिया गया है जो धान की लागत से 50.09% ज़्यादा है.
धान के बाद सबसे अहम फ़सल अरहर, मूंग और उड़द दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी काफ़ी बढ़ोत्तरी की गई है. अरहर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 से बढ़ाकर 5675 रुपये प्रति क्विंटल हुआ है, जो अरहर की लागत से 65.36% ज़्यादा है
सबसे ज़्यादा इज़ाफ़ा बाजरा में किया गया है. बाजरा का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1425 से बढ़ाकर 1950 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. यानी बाजरे की लागत से 96.97% ज़्यादा.
फैसले का ऐलान करते हुए राजनाथ सिंह ने कहा कि आज़ादी के बाद इतनी ज़्यादा बढ़ोत्तरी न्यूनतम समर्थन मूल्य में नहीं की गई. उन्होंने कहा कि इससे किसानों की कमाई बढ़ेगी. यह 2022 तक किसानों की कमाई दोगुनी करने की दिशा में एक अहम कदम है.
फसल की कुल लागत के आकलन में बीज, खाद, कीटनाशक, मशीनरी और मज़दूरी आदि शामिल हैं. लेकिन ज़मीन की कीमत इसमें नहीं है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ये सवाल उठाया और कहा कि फसलों की लागत का आकलन करने का सरकार का फार्मूला गलत है.
जवाब में केंद्रीय मंत्री हरसिमरत बादल ने एनडीटीवी से कहा कि लागत के आकलन में भूमि के खर्च को शामिल करना संभव नहीं है क्योंकि हर राज्य में ज़मीन की कीमत अलग है. उन्होंने एनडीटीवी से कहा, "पंजाब और राजस्थान में ज़मीन की कीमत एक कैसे हो सकती है? ज़मीन के खर्च का राष्ट्रीय स्तर पर एक समान आकलन संभव नहीं है.राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी फसल की पैदावार लागत में ज़मीन का खर्च शामिल करना संभव नहीं है."
ज़ाहिर है...इस बड़े फैसले के बाद अब सरकार के सामने अगली चुनौती इसका फायदा ज़मीन पर विशेषकर छोटे और मझौले किसानों तक सही तरीके से पहुंचाने की होगी.