
- भोपाल में खुला कचरा कैफे, जहां रद्दी के बदले नाश्ता मिलता है.
- कैफे में एक किलो पेपर का मूल्य ₹15 और किताबों का ₹14 है.
- ग्राहकों को कचरे के बदले 'कचरा करेंसी' मिलती है, 1 KC = 1 रुपया.
- स्व-सहायता समूह की महिलाएं कैफे का संचालन और कचरे से कमाई कर रही हैं.
भोपाल में खुला है अनोखा 'कचरा कैफे'. यहां पैसे नहीं, रद्दी दीजिए और नाश्ता लीजिए. वेस्ट का सबसे टेस्टी इस्तेमाल अब सिर्फ़ राजधानी में नहीं, जल्द जबलपुर और स्वाद की नगरी इंदौर में भी दिखेगा ये मॉडल. भोपाल में शुरू हुआ है देश का ये पहला ऐसा कैफे है, जहां आपका बजट नहीं, बल्कि कबाड़ बोलेगा. इसका नाम है- कचरा कैफे!
कचरे का रेट लिस्ट
- पेपर: ₹15/किलो
- बुक्स: ₹14/किलो
- कार्टन:₹15/किलो
- ई-वेस्ट:₹50/किलो
- एल्यूमिनियम: ₹120/किलो
तो अगली बार जब घर में रद्दी इकट्ठा हो जाए, तो ‘रद्दीवाले भैया' को ना कहिए और चलिए बोट क्लब, 10 नंबर मार्केट या बिट्टन मार्केट. यहां आपका कचरा तौला जाएगा, और उसी हिसाब से आपको मिलेगा KC यानी "कचरा करेंसी".
1 KC = 1 रुपया।
इस करेंसी से आप खा सकते हैं जो दिल चाहे...
कैफे संचालक स्पर्श बलूचा बताते हैं, मुझे ये आइडिया बहुत अच्छा लगा, क्यूंकि यहां आप घर के कचरे के बदले अच्छा-अच्छा खाना खा सकते हैं. यहां समाधान केंद्र पर कचरा देने के बाद तुलाई होगी और कमाए हुए पॉइंट्स को आप कहीं भी रिडीम कर सकते हैं.

अब मिलिए ग्राहक श्रीकांत तिवारी से. दिन में मजदूरी, और फुर्सत में कबाड़ इकट्ठा करना. अब ये शौक नहीं, उनका स्वाद बन गया है. वो अपने बच्चों को अब "कचरे की कमाई" से पास्ता खिला रहे हैं. श्रीकांत तिवारी बताते हैं, मैं यहां गत्ता लेकर आया था, जो मैंने यहां मैडम को दिया, उसके बदले उन्होंने मुझे पॉइंट्स दिए. अब मैं वो शाम को खर्चा करूंगा. अपने बच्चों को खिलाऊंगा-पिलाऊंगा. जो कचरा वेस्ट में फेंकते थे, अब उसके बदले खाना खा सकेंगे.

इस पूरे ऑपरेशन की रीढ़ हैं स्व-सहायता समूह की महिलाएं. वे न सिर्फ़ कैफे चला रही हैं, बल्कि कचरे से कमाई और कमाई से सम्मान भी इकट्ठा कर रही हैं. कचरा ला रहे ज़रूरतमंदों को नाश्ता भी मिल रहा है, और जीने का स्वाद भी. कैफे ओनर पर्व सबलोक कहते हैं, बेसिकली यह दो कांसेप्ट है, कचरा और कैफे. कैफे आम है, लेकिन कचरा अगर आप लाते हैं तो उससे एडिशनल बेनिफिट है. कचरे के बदले आपको पॉइंट्स मिलेंगे kc में. 1 KC = 1 RS . आप उस केसी से नाश्ता कर सकते हैं. जो हमें कचरा मिलता है, उसे रिटेलर्स को बेचते हैं, जो उसका निष्पादन करते हैं अलग-अलग जगह, जिन्होंने कैफे खोले हैं, वो हमारी टीम है. स्वसहायता समूह की ही लेडीज हैं. कैफ़े चलाने वाले पेट भर रहे हैं और हम उनसे कचरा ले रहे हैं.
इस कैफे में सिर्फ फास्ट फूड नहीं
आटा, चावल, नमक, पापड़, तेल, टेराकोटा सामान, कपड़े और सजावटी चीज़ें भी उपलब्ध हैं, जिसे स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने बनाया है. मतलब अब कचरे से रसोई भी चल सकती है.
नगर निगम का कहना है कि इस स्वच्छ-स्वाद-संविधान से लोग अब कचरा फैलाएंगे नहीं, संभालकर लाएंगे. क्योंकि अब कचरे से नाश्ता भी है, और समाज सेवा भी. निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने कहा कि भोपाल में तीन अलग-अलग स्थानों पर कचरा कैफे विकसित किये गए हैं. इसका उद्देश्य है कि लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता आए और बदले में आपको नाश्ता कर अन्य चीज़ें मिले. निश्चित रूप से इस नए कॉन्सेप्ट से हम लोगों को प्रेरित करने का काम कर रहे हैं. जो लोग पैसा देकर नहीं खा सकते हैं, उनके लिए भी यह प्रयास अच्छा है कि कम से कम वे कचरा इकट्ठा कर के तो खा ही सकते हैं. तो कचरे को इधर उधर न फेकते हुए कैफे पर देकर बदले में नाश्ता करिये. नगर निगम क्वालिटी की मॉनिटरिंग कर रहा है तो ऐसे में जो भी ग्रुप्स जुड़े हुए हैं, उन्हें स्वच्छ भोजन की शर्त पर ही रखा गया है.
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