लद्दाख:
उत्तर में कराकोरम दर्रे से शुरू होकर 826 किमी लंबी भारत और चीन के बीच स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के सीमावर्ती इलाके में भारतीय सेना अपनी मोर्चाबंदी मजबूत करने में जुटी है। जवानों की संख्या में यहां तेजी से इजाफा किया जा रहा है। मोर्चाबंदी के तहत पहले से ही बॉर्डर के निकट सैनिकों की संख्या बढ़ाई जा रही है। अगले कुछ महीनों में इसमें बढ़ोतरी होने की संभावना है। इस संकरे इलाके पर भारत और चीन दोनों ही दावा करते रहे हैं और यहां मौजूद बंकरों और गन पोजीशन से इनकी स्थिति को समझा जा सकता है। इनमें से अधिकांश हालिया दौर के हैं।
एनडीटीवी को हाल में एलएसी के इन रिमोट और दुर्गम क्षेत्रों में जाने का अवसर मिला। दक्षिण-पूर्व लद्दाख के सीमावर्ती इलाके की सुरक्षा में तैनात 19 कुमाऊं के कर्नल रितेश सिंह ने NDTV से कहा, ''मेरी पोस्ट 15 हजार फीट से शुरू होती है और हम 20 हजार फीट तक गश्त (पट्रोल) करते हैं।'' हमारी इस बातचीत के दौरान ही एक युवा कैप्टन के नेतृत्व में एक लंबी रेंज के लिए गश्ती दल पोस्ट से निकला। इस तरह भारत जहां पूरे जोर-शोर से अपने इलाके की रक्षा में जुटा है, सो ऐसे में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से आमने-सामने की स्थिति में भी इजाफा हुआ है।
सैनिकों के अलावा बॉर्डर के निकट टैंकों और इंफैंट्री की भी तैनाती हो रही है। नए बंदोबस्त किए जा रहे हैं। सुरक्षा कारणों से NDTV उनकी वास्तविक स्थिति और संख्या को यहां नहीं बता रहा है। लेकिन 1962 में तैनात सेना की तुलना में यहां सैन्य क्षमता में कई गुना इजाफा किया गया है। हाल में किए गए युद्ध से संबंधित आकलन इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि चीन ने इस तरह तैयारियां कर रखी हैं कि वह संघर्ष की स्थिति में 60 से 80 हजार सैनिकों के यहां तेजी से मूवमेंट की स्थिति में है।
1962 में भारत-चीन युद्ध के चार दशक बाद तक भारत ने जानबूझकर सीमा के निकट बुनियादी ढांचे का विकास नहीं किया और बॉर्डर की सुरक्षा आईटीबीपी और लद्दाख स्काउट्स के सहयोग से कुछ बटालियनों द्वारा की जाती थी। 2005 में इस स्थिति में तब बदलाव आया जब तत्कालीन विदेश सचिव श्याम सरन ने भारत-चीन बॉर्डर पर तेजी से बुनियादी विकास और क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया।
2012 में भारत ने पूर्वी लद्दाख में चीन की तरफ अधिकाधिक सैन्य बलों को तैनात करना शुरू किया। सैन्य क्षमता में वृद्धि और बुनियादी ढांचे के विकास का काम अब पूरी ताकत से किया जा रहा है। सैन्य क्षमता बढ़ाने के साथ ही कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं जोकि भारत की मजबूत मोर्चेबंदी को दिखाते हैं।
मसलन, पहले इंफैंट्री बटालियनें सियाचिन ग्लेशियर पर जाने से पहले छह महीने तक पूर्वी लद्दाख की निर्जन चोटियों की रक्षा करते थे। उनको 'लिंक बटालियनें' कहा जाता था। अब उनको कम से कम दो साल के लिए यहां तैनात किया जा रहा है। इस संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया, ''लंबी अवधि हमको क्षेत्र और यहां की विशेषताओं को समझने में बेहतर ढंग से मदद करता है। इसलिए अब हमारी आक्रामक और सुरक्षात्मक योजनाएं प्रभावी हैं।''
इन बदलावों के बारे में बताते हुए लेह स्थित 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एसके पटयाल ने कहा, ''हमको अपने अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर की सुरक्षा करनी है। इस मामले में चाहें बुनियादी ढांचा या क्षमता बढ़ाने की बात हो, वह काम हम सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर रहे हैं।"
एनडीटीवी को हाल में एलएसी के इन रिमोट और दुर्गम क्षेत्रों में जाने का अवसर मिला। दक्षिण-पूर्व लद्दाख के सीमावर्ती इलाके की सुरक्षा में तैनात 19 कुमाऊं के कर्नल रितेश सिंह ने NDTV से कहा, ''मेरी पोस्ट 15 हजार फीट से शुरू होती है और हम 20 हजार फीट तक गश्त (पट्रोल) करते हैं।'' हमारी इस बातचीत के दौरान ही एक युवा कैप्टन के नेतृत्व में एक लंबी रेंज के लिए गश्ती दल पोस्ट से निकला। इस तरह भारत जहां पूरे जोर-शोर से अपने इलाके की रक्षा में जुटा है, सो ऐसे में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से आमने-सामने की स्थिति में भी इजाफा हुआ है।
सैनिकों के अलावा बॉर्डर के निकट टैंकों और इंफैंट्री की भी तैनाती हो रही है। नए बंदोबस्त किए जा रहे हैं। सुरक्षा कारणों से NDTV उनकी वास्तविक स्थिति और संख्या को यहां नहीं बता रहा है। लेकिन 1962 में तैनात सेना की तुलना में यहां सैन्य क्षमता में कई गुना इजाफा किया गया है। हाल में किए गए युद्ध से संबंधित आकलन इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि चीन ने इस तरह तैयारियां कर रखी हैं कि वह संघर्ष की स्थिति में 60 से 80 हजार सैनिकों के यहां तेजी से मूवमेंट की स्थिति में है।
1962 में भारत-चीन युद्ध के चार दशक बाद तक भारत ने जानबूझकर सीमा के निकट बुनियादी ढांचे का विकास नहीं किया और बॉर्डर की सुरक्षा आईटीबीपी और लद्दाख स्काउट्स के सहयोग से कुछ बटालियनों द्वारा की जाती थी। 2005 में इस स्थिति में तब बदलाव आया जब तत्कालीन विदेश सचिव श्याम सरन ने भारत-चीन बॉर्डर पर तेजी से बुनियादी विकास और क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया।
2012 में भारत ने पूर्वी लद्दाख में चीन की तरफ अधिकाधिक सैन्य बलों को तैनात करना शुरू किया। सैन्य क्षमता में वृद्धि और बुनियादी ढांचे के विकास का काम अब पूरी ताकत से किया जा रहा है। सैन्य क्षमता बढ़ाने के साथ ही कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं जोकि भारत की मजबूत मोर्चेबंदी को दिखाते हैं।
मसलन, पहले इंफैंट्री बटालियनें सियाचिन ग्लेशियर पर जाने से पहले छह महीने तक पूर्वी लद्दाख की निर्जन चोटियों की रक्षा करते थे। उनको 'लिंक बटालियनें' कहा जाता था। अब उनको कम से कम दो साल के लिए यहां तैनात किया जा रहा है। इस संबंध में एक वरिष्ठ अधिकारी ने NDTV को बताया, ''लंबी अवधि हमको क्षेत्र और यहां की विशेषताओं को समझने में बेहतर ढंग से मदद करता है। इसलिए अब हमारी आक्रामक और सुरक्षात्मक योजनाएं प्रभावी हैं।''
इन बदलावों के बारे में बताते हुए लेह स्थित 14 कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एसके पटयाल ने कहा, ''हमको अपने अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर की सुरक्षा करनी है। इस मामले में चाहें बुनियादी ढांचा या क्षमता बढ़ाने की बात हो, वह काम हम सर्वश्रेष्ठ तरीके से कर रहे हैं।"
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