विज्ञापन
Story ProgressBack
This Article is From Aug 04, 2011

लोकपाल बिल पेश, विपक्ष ने जताई आपत्ति

New Delhi: सरकार ने गुरुवार को बहुचर्चित लोकपाल विधेयक को लोकसभा में पेश किया। इस विधेयक में प्रधानमंत्री को प्रस्तावित भ्रष्टाचार निरोधी निकाय के दायरे से बाहर रखा गया है। इस पर मुख्य विपक्ष दल भाजपा ने आपत्ति जताई। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री वी. नारायणसामी द्वारा विधेयक को लोकसभा में पेश करने से पहले अध्यक्ष मीरा कुमार ने विपक्ष की नेता सुषमा को अपनी बात रखने का मौका दिया। सुषमा ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने के प्रावधान पर आपत्ति जतायी और कहा कि जब आपराधिक कानून और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत प्रधानमंत्री को अभियोजन से छूट नहीं मिली है तो उन्हें लोकपाल के दायरे से बाहर क्यों रखा गया है। संविधान के तहत सभी को समानता का अधिकार है। विधेयक में प्रावधान है कि प्रधानमंत्री पदमुक्त होने तक लोकपाल के दायरे में नहीं आएंगे। विधेयक में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत संसद के भीतर सांसदों का आचरण और उच्च न्यायपालिका लोकपाल के दायरे में आए, जिसका अन्ना हजारे पक्ष ने सुझाव दिया था। लोकसभा में विपक्ष की नेता ने कहा, ऐसा पहली बार हुआ है जब लोकपाल के दायरे में सभी केंद्रीय मंत्रियों को तो रखा गया है, लेकिन प्रधानमंत्री को छोड़ दिया गया है। मुझे समझ नहीं आता कि ऐसा क्यों किया गया। सुषमा ने कहा, राजग की सरकार ने जो विधेयक तैयार किया था, उसमें प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में रखने का प्रावधान था। यह विधेयक स्थायी समिति को भेजा गया। तब मौजूदा सदन के नेता (प्रणब मुखर्जी) उस स्थायी समिति के अध्यक्ष थे और उन्होंने भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने का प्रावधान स्वीकार किया था। सुषमा ने कहा कि जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद कह चुके हैं कि वह लोकपाल के दायरे में आना चाहते हैं तो फिर कैबिनेट ने उनके विचारों को क्यों नहीं माना। उन्होंने सरकार से विधेयक में संशोधन करने को कहा। सुषमा ने कहा, हम विधेयक को इस रूप में पुन:स्थापित करने की अनुमति नहीं दे सकते। सदन के नेता प्रणव मुखर्जी ने कहा, यह सही है कि मैं तत्कालीन लोकसभा में स्थायी समिति का प्रमुख था और मैंने 16 फरवरी 2002 को स्थायी समिति की रिपोर्ट सदन में पेश कर दी थी। इसके बाद दो वर्ष तक राजग की सरकार रही। आखिर क्या कारण रहे कि उसने दो वर्ष तक यह विधेयक नहीं लाया। देश में मजबूत और प्रभावी लोकपाल की संस्था की जरूरत लंबे समय से महसूस की जाती रही है। प्रशासनिक सुधार समिति ने करीब चार दशक पहले लोकपाल की स्थापना करने की सिफारिश की थी। इस सिफारिश के मद्देनजर यह विधेयक पहले आठ बार यानी वर्ष 1968, 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998 और 2001 में संसद में पेश हो चुका है। मौजूदा विधेयक में कहा गया है कि लोकपाल में एक अध्यक्ष और आठ अन्य सदस्य होंगे। इनमें से आधे न्यायपालिका से होंगे। लोकपाल के पास अपनी अभियोजन और जांच इकाई होगी। विधेयक में कहा गया है कि लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री पदमुक्त होने के बाद आएंगे। साथ ही केंद्रीय मंत्री, संसद सदस्य, समूह ए या उसके समकक्ष के किसी अधिकारी, संसद द्वारा पारित कानून के तहत किसी निकाय, बोर्ड, निगम, प्राधिकरण, कंपनी, सोसाइटी, न्यास और स्वशासी निकाय के अध्यक्ष या सदस्य, समूह ए के समकक्ष अधिकारी तथा केंद्र सरकार के आंशिक या पूर्ण वित्तीय नियंत्रण वाले या जनता से दान प्राप्त करने वाले निकाय लोकपाल के दायरे में रहेंगे। लोकपाल को भविष्य में अभियोजन चल सकने की संभावना वाले मामलों में आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 197 और भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 की धारा 19 के तहत मंजूरी प्राप्त करने की जरूरत नहीं होगी। लोकपाल को तलाशी और जब्ती की शक्ति और दीवानी अदालत के समान शक्तियां प्राप्त होंगी। लोकपाल या उसके द्वारा अधिकृत किया गया कोई भी जांच अधिकारी ऐसी संपत्ति को कुर्क कर सकेगा जो प्रथम दृष्टया भ्रष्ट साधनों से अर्जित की गई हो।  लोकपाल के समक्ष शिकायतें दाखिल करने के लिए कथित अपराध होने की तारीख से सात वर्ष तक की समय सीमा होगी। लोकपाल को पुलिस अफसरों को जांच के संबंध प्राप्त अधिकारों के समान शक्तियां प्राप्त होंगे। लोकपाल को चलाने के लिए धनराशि की व्यवस्था भारत की संचित निधि के जरिए की जाएगी। यह प्रस्तावित भ्रष्टाचार निरोधी निकाय जांच करने में केंद्र और राज्य सरकार की मदद भी ले सकेगा। लोकपाल भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नौकरशाहों के तबादले या निलंबन की भी सिफारिश कर सकेगा। विधेयक में यह भी प्रावधान है कि लोकपाल भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम 1988 के तहत दर्ज होने वाले मामलों की सुनवाई के लिये पर्याप्त संख्या में विशेष न्यायालयों का गठन करने की सिफारिश कर सकेगा। विधेयक में यह प्रावधान है कि अगर कोई सरकारी कर्मी अपनी संपत्ति की घोषणा नहीं कर पाता है या भ्रामक सूचना देता है तो यह मान लिया जाएगा कि उसने भ्रष्ट तरीकों से संपत्ति जुटाई है। विधेयक कहता है कि गलत शिकायतों पर शिकायतकर्ता के खिलाफ अभियोजन चलाया जा सकेगा और ऐसे मामलों में सजा का प्रावधान कम से कम दो वर्ष और अधिकतम पांच वर्ष होगा। ऐसे मामलों में दंड भी कम से कम 25,000 से अधिकतम दो लाख रुपये तक लगाने का प्रावधान किया गया है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
सलमान खान फायरिंग मामला : लॉरेंस बिश्नोई के भाई के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी
लोकपाल बिल पेश, विपक्ष ने जताई आपत्ति
रक्षा मंत्रालय के लिए बजट में 6,21,940 करोड़ रुपये का प्रावधान, राजनाथ सिंह ने जताया आभार
Next Article
रक्षा मंत्रालय के लिए बजट में 6,21,940 करोड़ रुपये का प्रावधान, राजनाथ सिंह ने जताया आभार
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;