Analysis : राजस्‍थान में BJP की 'क्‍लीन स्‍वीप हैट्रिक' पर ये सीटें लगा सकती हैं ग्रहण, देखें- 5 चुनावों का डेटा

राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार अविनाश कल्ला ने कहा कि 25-0 की उम्‍मीद की जा रही थी, लेकिन ग्राउंड पर कुछ सीटें फंसी हुई है. 6 से 7 सीटों पर मुकाबला कड़ा है.

नई दिल्‍ली :

राजस्थान (Rajasthan) में विधानसभा चुनाव के दौरान हर 5 साल पर सरकार बदलने का रिवाज़ रहा है और 2023 में भी यही हुआ. हालांकि पिछले दो लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) में इस रण के सबसे बड़े महारथी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) साबित हो रहे हैं. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी (BJP) ने सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्‍या बीजेपी इस बार क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगा पाएगी?

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी के मुताबिक, "इस बार भाजपा की 25-0 की हैट्रिक मुश्किल लग रही है. उसके पक्ष में यह है कि 25 फीसदी वोट शेयर की लीड है, जिसे पाटना आसन नहीं है. भाजपा के पास पीएम मोदी के रूप में मजबूत चेहरा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी भी इस चुनाव को कुछ क्षेत्रों और सीटों पर स्‍थानीय बनाने में कामयाब रही है, जिसकी वजह से वहां मामला कांटे का हो गया है." 

वहीं राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार अविनाश कल्ला ने कहा कि 25-0 की उम्‍मीद की जा रही थी, लेकिन ग्राउंड पर कुछ सीटें फंसी हुई है. 6 से 7 सीटों पर मुकाबला कड़ा है. बीजेपी दो या तीन सीटें हार जाए तो कोई आश्‍चर्य नहीं होगा. इस बार 25-0 मुश्किल लग रहा है. 

राजस्‍थान में बीते 5 लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो यहां पर 2014 और 2019 में भाजपा ने सभी 25 सीटें जीती हैं. वहीं कांग्रेस को पिछले दो चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली है. 

पिछले दो चुनावों में बीजेपी के पास थी सभी 25 सीटें               
                    
              1999    2004    2009    2014    2019
                    
BJP+      16        21        4           25        25 (1 सीट RLP)
                
CONG     9        4        20           0           0

अमिताभ तिवारी ने कहा कि राजस्‍थान में 31 फीसदी आबादी एससी-एसटी है. सामान्‍य सीटों पर यह आंकड़ा किंग मेकर हो जाता है. उन्‍होंने कहा कि जाट और राजपूत समाज के वर्चस्‍व की लड़ाई हमें हर चुनाव में देखने को मिली है. इस बार हनुमान बेनीवाल की पार्टी एनडीए ब्‍लॉक को छोड़कर इंडिया ब्‍लॉक में आ गई है और कांग्रेस को उम्‍मीद है कि जाट वोट उन्‍हें पड़ सकता है, वहीं किसान आंदोलन के कारण किसानों में भी असंतोष है. साथ ही कांग्रेस को उम्‍मीद है कि सचिन पायलट अपने दम पर गुर्जर वोटों को भी कांग्रेस की ओर झुका सकते हैं. 

2019 में किस जाति का वोट किसको        
                                BJP (%)    CONG (%)
ब्राह्मण                        82               15
राजपूत                       57               40
अन्य अगड़ी जातियां      58               19
जाट                           85               13
अन्य OBC                  72               23
आदिवासी                   39               54
अनुसूचित जाति           55                38
मुस्लिम                      19                79

स्रोत: CSDS लोकनीति        

भाजपा से नाराज है ये समाज  

वहीं कल्‍ला का कहना है कि जाटों में नाराजगी है और अब राजपूतों में भी  नाराजगी नजर आ रही है. शेखावाटी बेल्‍ट जिसमें चूरू, सीकर और झुंझूनूं की सीटें आती हैं, यहां की तीन में से कम से कम दो सीटें कांग्रेस के पक्ष में जा सकती हैं. वहीं गुर्जर भी राजस्थान में महत्‍वपूर्ण है. विधानसभा में कुछ गुर्जर वोट भाजपा को मिला था, लेकिन राज्‍य सरकार में उन्‍हें उचित प्रतिनिधित्‍व नहीं मिला. इससे उनमें भी नाराजगी है.

उन्‍होंने कहा कि जाट, गुर्जर और राजपूत समाज में कुछ जगहों पर नाराजगी है. राजपूतों की नाराजगी गुजरात में दिए एक बयान को लेकर है. वहीं चूरू की सीट भी बंट गई है और यहां पर मामला जाट बनाम राजपूत का हो गया है. हालांकि दोनों ही पार्टियों से वहां जाट उम्‍मीदवार ही मैदान में है. शेखावाटी की तीनों सीटों पर जाट वोट काफी प्रभाव डालेगा. 

बढ़ता महिला मतदान BJP के लिए वरदान  

         
                पुरुष            महिला     
2009        51.5%        44.8%     
2014        64.4%        61.1%     
2019        66.2%        66.5%

अमिताभ तिवारी ने कहा कि राजस्‍थान को पुरुष प्रधान माना जाता है, लेकिन जैसे-जैसे जागरूकता का स्‍तर और साक्षरता दर बढ़ी है, हमने देखा है कि लोग जाति से ऊपर उठकर अपने निर्णय ले रहे हैं. उन्‍होंने कहा कि केंद्र सरकार की योजनाओं की वजह से पार्टी की ओर महिलाओं का रुझान है, जिसके कारण हमें पिछले चुनावों में भाजपा के पक्ष में बंपर रिजल्‍ट देखने को मिला है. वहीं कल्‍ला ने कहा कि कई ऐसी सीट थी, जहां पर महिलाओं के वोटों ने परिवर्तन सुनिश्चित किया. 

राजस्‍थान में पिछले कुछ चुनावों से महिला और युवा नया वोट बैंक बनते जा रहे हैं. पिछली बार कुछ ऐसे मुद्दे थे कि जिसे लेकर उन्‍होंने बेहद सोच समझकर वोट डाला था. 

जब मोदी की आंधी में उड़ी कांग्रेस                    
                    
               1999    2004    2009    2014    2019
                    
BJP+      47%    49%    37%       55%     61%
                    
CONG    45%    41%    47%       30%    34%

2019 में राजस्‍थान में भाजपा ने 24 सीटें जीती थीं (एक उसकी तत्‍कालीन आरएलपी ने जीती थी) और उसकी जीत का औसत अंतर 26 फीसदी रहा था. यह बड़ा अंतर था, जिसे पाटना बहुत मुश्किल होगा. इसके अलावा बीजेपी का पड़े वोट प्रतिशत में से अगर 10 फीसदी वोट भी कांग्रेस की ओर ट्रांसफर हो जाएं तो भी कांग्रेस के खाते में 4 सीटें ही जुड़ पाएंगी. 

वहीं देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर 37 फीसदी वोट पड़े थे, लेकिन राजस्‍थान में यह आंकड़ा 49 फीसदी है. 

मोदी फैक्‍टर : राजस्‍थान में देश से अलग पैटर्न

अमिताभ तिवारी ने कहा कि 10 फीसदी वोट ट्रांसफर होना बहुत मुश्किल है. चुनावों में अमूमन 10 फीसदी वोट ट्रांसफर चुनावों में देखने को नहीं मिलता है. उन्‍होंने कहा कि भाजपा की जीत को जो सबसे बड़ा कारण अभी तक रहा है वो मोदी फैक्‍टर है. पूरे देश में तीन में से एक वोटर भाजपा को पीएम मोदी के नाम पर वोट करता है, वहीं राजस्‍थान में यह आंकड़ा हर दो में से एक वोटर है. 

कल्‍ला ने कहा कि भाजपा के लिए एक ही फैक्‍टर है और वो है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनका प्रचार. आप राजस्‍थान में कहीं भी जाइए आपको कहीं भी उम्‍मीदवारों के पोस्‍टर नहीं मिलेंगे, आपको सिर्फ प्रधानमंत्री के पोस्‍टर मिलेंगे.

अपने ही खिलाफ प्रचार कर रही है कांग्रेस 

नागौर की सीट पर भी पेंच फंसा हुआ है. सीट जीतने के लिए बीजेपी जमकर कोशिश कर रही है. आरएलपी के हनुमान बेनीवाल उन्‍हें टक्‍कर दे रहे हैं.

वहीं बांसवाड़ा में कांग्रेस ने भारत आदिवासी पार्टी के साथ अपने गठबंधन को सही ढंग से मैनेज नहीं कर सकी है. कांग्रेस उम्‍मीदवार ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया और नामांकन वापसी के दिन गायब हो गए. कांग्रेस उम्‍मीदवार का आरोप है कि मेरे साथ विश्‍वासघात किया गया है. अब आलम ये है कि कांग्रेस अपने ही खिलाफ प्रचार कर रही है और कह रही है कि भारत आदिवासी पार्टी को वोट दें. वहां आदिवासी वोट बैंक अहम है और पार्टी गठबंधन को सही ढंग से मैनेज नहीं करने का खामियाजा भुगत सकती है. 

कल्‍ला का मानना है कि बांसवाड़ा में स्‍थानीय मुद्दे पर चुनाव हो रहा है और यह सीट फंसी हुई है. यहां पर भाजपा के पास भी अपना कोई कैंडिडेट नहीं था. इसलिए उन्‍होंने कांग्रेस से कैंडिडेट इंपोर्ट किया और कांग्रेस गठबंधन को मैनेज नहीं कर पाई. 

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