मुझे रिपोर्टिंग करते हुए 25 साल हो चले है. एक युवा रिपोर्टर के रूप में मेरा पहला बड़ा असाइनमेंट कंधार हाइजैक था. तब मैं 'The Pioneer'अखबार के लिए काम करती थी. मुझे 1999 में कोर्ट की रिपोर्टिंग दी गई थी. IC 814-कंधार हाइजैक से जुड़े सभी कानूनी मामले मैंने तब कवर किए थे. उसके साथ-साथ 7 RCR (अब लोक कल्याण मार्ग) के बाहर सड़कों हो रहे प्रदर्शनों को भी मैंने कवर किया. आप कह सकते है कि IC 814 के कानूनी से लेकर मानवीय पहलू मैंने कवर किए.
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मुझे तीन खूंखार आतंकवादियों मौलाना मसूद अज़हर, मुश्ताक ज़रगर और अहमद उमर सईद शेख की रिहाई का रिंग साइड व्यू भी मिला. उस पर भी मैंने रिपोर्टिंग की.
मैं उन सभी अधिकारियों और नौकरशाहों से संपर्क करने में कामयाब रही, जो सीधे-सीधे इस कहानी से जुड़े थे. या फिर पर्दे के पीछे रह कर उस कार्रवाई से जुड़े थे, जिसके तहत तीन आतंकियों को रिहा करना पड़ा. सबसे बात करने के बाद कहानी का K- कनेक्शन बिल्कुल साफ दिखाई दिया. यानी आतंकियों की रिहाई के लिए हाइजैकर्स की पसंद और इसका कश्मीर से रिश्ता.
दिलचस्प बात यह है कि वाजपेयी सरकार द्वारा रिहा किए गए तीन आतंकियों में दो मौलाना मसूद अज़हर और मुश्ताक अहमद ज़रगर जम्मू के बाहरी इलाके में स्थित कोट भलवाल जेल में बंद थे. जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारी वो किस्सा दिलचस्पी से बताते है कि कैसे मसूद अज़हर और सज्जाद अफगानी को अनंतनाग जिले के खानबल शहर से गिरफ्तार किया गया था, जब वे एक ऑटो में सवार थे.
(मसूद अजहर)
मसूद अज़हर को सबसे पहले अचबल कैंप ले जाया गया. पूछताछ में अज़हर ने खुलासा किया कि वह फर्जी पुर्तगाली पासपोर्ट पर भारत आया था. जब वो दिल्ली पहुंचा, तो पहले सहारनपुर गया और देवबंद का दौरा किया.
9 फरवरी 1992 को वो अपने एक साथी के साथ प्लेन से श्रीनगर पहुंचा. उसकी यात्रा का मकसद हरकत उल मुजाहिदीन और हरकत उल जेहाद इस्लामी के युवाओं को हरकत उल अंसार के तहत लाना था, ताकि वो एक संगठन के रूप में काम कर सके. लेकिन शायद किस्मत उसके साथ नहीं थी. दो दिन बाद उसे और सज्जाद खान उर्फ सज्जाद अफगानी को गिरफ्तार कर लिया गया.
दिलचस्प बात यह है कि मसूद अज़हर से नियमित रूप से मिलने जाने वाले एक जांच अधिकारी ने मुझे बताया कि मसूद अज़हर अक्सर कहा करता था, "आप मुझे ज्यादा दिन अंदर नहीं रख पाओगे, क्योंकि मैं पाकिस्तान और ISI के लिए बहुत जरूरी हूं."
एक अन्य अधिकारी ने बताया था, ''1999 में एक जेल में हुई झड़प में एक अफगानी की मौत हो गई थी. लेकिन अज़हर एक बैरक में कंबल के नीचे छिपकर बच निकलने में कामयाब रहा था."
(सज्जाद अफगानी)
अधिकारी के मुताबिक, हाइजैक के बाद शुरू में हाइजैकर्स ने अलग-अलग जेलों में बंद 3 दर्जन से ज्यादा आतंकियों की रिहाई की मांग की. हाइजैकर्स ने कोट भलवाल जेल में मारे गए अफगानी की लाश भी मांगी थी. लेकिन उसकी लाश दफन की जा चुकी थी."
दरअसल, तालिबान ने भारत को सौंपी गई आतंकियों की रिहाई की लिस्ट को नीचे लाने में भारतीय वार्ताकारों की मदद की. आखिरकार जिन 3 नामों को रिहा करने पर सहमति बनी, वो सबसे खूंखार थे. 1990 के दशक के आखिर में काउंटर टेरर डेस्क संभालने वाले एक सीनियर अधिकारी बताते हैं, "अहमद उमर सईद और मसूद अज़हर का पाकिस्तान कनेक्शन था, लेकिन तीसरा आतंकी कश्मीरी था. पुलिस फाइलों में उसे मुश्ताक अहमद ज़रगर उर्फ लैटराम के नाम से जाना जाता था."
डाउनटाउन में नौहट्टा की उपज लैटराम एक ऐसा नाम था, जिससे 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में हर कोई डरता था. पुलिस अधिकारी याद करते हैं कि वह शहर के इलाके में बिजली के खंभों के आसपास पुलिसकर्मियों को बांध देता था और उन्हें गोली मार देता था. जरगर ने 1989 में अल उमर मुजाहिदीन नाम से आतंकी संगठन बनाया था.
तब वो दिन थे, जब घाटी में सड़क पर सबसे खराब हिंसा देखी जा रही थी. पथराव और हिंसा में 129 नागरिक मारे जा चुके थे. उस समय के दौरान सरकार ने फिर से हीलिंग हैंड बढ़ाया. सरकार ने सुधार और पुनर्वास नीति फिर से शुरू की थी. मैं ज़रगर के भाई और मां से कैमरे पर बात करने में कामयाब रही. हालांकि, भाई नीति को लेकर थोड़ा परेशान था, लेकिन उसकी मां चाहती थी कि उसका बेटा हथियार छोड़ दे और वापस आ जाये.
मुझे याद है कि अपना इंटरव्यू खत्म करने के बाद मैं होटल जा रही था, तभी मेरा फोन बजा. फोन रिसीव करते ही दूसरी तरफ लैटराम था. वह जानना चाहता था कि मैं उसके परिवार से मिलने क्यों गई थी?
(लैटराम)
उन्होंने आगे बताया कि 2000 साल में फरवरी के पहले सप्ताह में कराची के बनवारी टाउन में जामिया अलूम इस्लामिया मस्जिद में अज़हर फिर से सामने आया. बाद में उसने उसी संस्थान के कुलपति के रूप में भी काम किया. कुछ अधिकारियों को याद है कि अज़हर लश्कर-ए-मोहम्मदी को एक नया आतंकी संगठन बनाना चाहता था, जिसकी छत्रछाया में जम्मू-कश्मीर में सक्रिय सभी आतंकी संगठन काम करेंगे. लेकिन योजना सफल नहीं हुई. उसने जैश-ए-मोहम्मद नाम से आतंकी संगठन बनाया.
जैश-ए-मोहम्मद लॉन्च होने के तुरंत बाद आतंकी संगठन ने कश्मीर घाटी में जमीनी कार्यकर्ताओं और गुर्गों को जोड़ना शुरू किया. उस समय जम्मू-कश्मीर पुलिस की फाइलों के अनुसार घाटी में सक्रिय लगभग 150 आतंकवादियों ने अपना ठिकाना बदल लिया और जैश में शामिल हो गए. इस तरह आतंकी संगठन को कश्मीर में अपना आधार मिल गया.
इसके बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा से लेकर संसद हमले और बादामी बाग घाटी तक कई बड़े हमले हुए. क्षेत्र में तैनात अधिकारियों का कहना है कि कश्मीर में 'कंधार' की छाया अभी भी ज़िंदा है.