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IIT हैदराबाद की ड्राइवरलेस वाहन प्रोजेक्ट की कमान संभालने वाली महिला से मिलिए

IIT हैदराबाद की एक ऐसी महिला प्रोफेसर, जिन्होंने 100 से ज्यादा इंजीनियरों की उस टीम का नेतृत्व किया, जिन्होंने बिना ड्राइवर के चलने वाले वाहनों को डिजाइन किया और बनाया.

IIT हैदराबाद की ड्राइवरलेस वाहन प्रोजेक्ट की कमान संभालने वाली महिला से मिलिए
महिला दिवस पर एक खास महिला के बारे में जानिए.
हैदराबाद:

महिलाएं हर क्षेत्र में कमाल दिखा रही हैं. अब वह सिर्फ पैसेंजर सीटों तक ही सीमित नहीं हैं. डिजाइन और इंजीनियरिंग टीमों के नेतृत्व से लेकर, प्रमुख पदों पर और बड़ी ऑटोमोटिव कंपनियों को चलाने तक, मोटरिंग की दुनिया में उनकी भूमिका काफी हद तक बदल गई है. इस बीच हम बात कर रहे हैं एक ऐसी महिला की जिन्होंने 14 सीटर और छह सीटर ड्राइवर लेस शटल वाहन को डिजाइन करने और बनाने के लिए 100 से ज्यादा इंजीनियरों की एक टीम का नेतृत्व किया. इनका नाम है पी राजलक्ष्मी. 

पी राजलक्ष्मी IIT हैदराबाद में प्रोफेसर हैं और ऑटोनोमस  नेविगेशन में टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब की हेड भी हैं. उन्होंने बिना ड्राइवर के चलने वाली कार को डिजाइन करने और उसे बनाने में अहम योगदान दिया है. 

देसी टेक्नोलॉजी से तैयार बिना ड्राइवर वाली कारें

अगस्त 2023 में IIT हैदराबाद ने पूरी तरह से देसी टेक्नोलॉजी से तैयार बिना ड्राइवर के चलने वाली कारें लॉन्च की थीं. ये कारें तेलंगाना के संगारेड्डी जिले के कंडी गांव में संस्थान की अंदरूनी सड़कों पर छात्रों और प्रोफेसरों को लाने-ले जाने का काम करती हैं. 

प्रोफेसर राजलक्ष्मी ने एनडीटीवी को बताया, "IIT हैदराबाद ऑटोनॉमस नेविगेशन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है. ये पूरी तरह से  खुद चलने वाले (ऑटोनॉमस) वाहन हैं. इनका इस्तेमाल ज्यादातर कृषि या खनन जैसे ऑफ-रोड साधनों के लिए होता है. ये वाहन न सिर्फ छात्रों को बल्कि संस्थान परिसर में आने वाले किसी भी व्यक्ति को जाने-ले जाने का काम करते हैं." 

बिना ड्राइवर के चलने वाली इलेक्ट्रिक कारें

बता दें कि इन चार पहिया इलेक्ट्रिक कारों को IIT हैदराबाद के टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब (TiHAN) के इंजीनियरों ने बनाया है. जिसे नेशनल मिशन ऑन इंटरडिसिपिलिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम के तहत आने वाले साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के तहत मंजूरी दी गई है.

  • हर कार के भीतर एक स्क्रीन लगाई गई है, जो रास्ता दिखाने का काम करती है.
  • शटल में कई तरह के सेंसर और संबंधित टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है.
  • रास्ते में किसी भी रुकावट का संकेत सेंसर से मिलता है.
  • ये शटल हर बस स्टॉप पर 10 सेकंड के लिए रुकती है.
  • यात्रियों के लिए शटल में चढ़ने और उतरने को लेकर अनाउंसमेंट भी स्क्रीन और आवाज़ के जरिए होता है.
  • इमरजेंसी सिचुएशन के लिए इसमें एक बटन भी लगाया गया है. जिसे दबाकर शटल को रोका जा सकता है. 

टेस्टिंग व्हीकल ने 15000 किमी से ज्यादा का सफर किया पूरा

वाहन के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर कॉम्पोनेंट्स को IIT हैदराबाद ने ही बनाया है. देश की इस  अनूठी परियोजना की लागत 132 करोड़ रुपये है. बिना ड्राइवर वाली शटल दिन में छह बार सेवाएं देती है. शटल में एक बार में 14 लोग बैठ सकते हैं. जबकि दूसरी छोटी शटल में 6 लोगों के बैठने की सुविधा है. पी राजलक्ष्मी ने बताया कि टेस्टिंग व्हीकल आईआईटी परिसर के अंदर 10,000 से ज्यादा लोगों को लाने और ले जाने के दौरान 15,000 किलोमीटर से ज्यादा चल चुका है.

क्या सड़क पर उतरेंगे ड्राइवरलेस वाहन?

 इन वाहनों को सड़क पर चलाए जाने की संभावना के बारे में पूछे जाने पर राजलक्ष्मी ने कहा कि केंद्र सरकार ऑटोनॉमस  वाहन प्रौद्योगिकी पर नियमन ला रही है. इस साल लेवल 0 से लेवल 1 तक की छह सुविधाए- जिसमें ड्राइवर सहायता प्रणाली शामिल है, इसे अनिवार्य कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि अभी यह ये वाहन ऑफ-रोड सुविधाओं के लिए हैं.

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