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This Article is From Oct 30, 2016

जम्मू के सीमांत गांवों में जिंदगी का पैमाना बन चुकी हैं 'चूकी हुईं गोलियां'

जम्मू के सीमांत गांवों में जिंदगी का पैमाना बन चुकी हैं 'चूकी हुईं गोलियां'
जम्मू: जम्मू के आरएस पुरा सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास बसे समका और गोपड़ बस्ती नाम के दो गांव दिवाली होने के बावजूद अंधेरे में डूबे हैं. पिछले चार दिनों से यहां सीमा पार से बदस्तूर गोलियां बरसाई जा रही हैं. प्रशासन ने इलाके में रेड अलर्ट घोषित कर रखा है और लोगों से गांव छोड़ने को कहा है.

हालांकि इस अपील के बावजूद कुछ लोग अब भी गांव में ही टिके हैं. ऐसे ही एक शख्स हैं 75 वर्षीय देवराज, जो अपने गांव में अभी अकेले रह रहे हैं. वह रुक-रुककर बीच-बीच में गहरी सांस लेते हुए बताते हैं कि उन्हें अपने मवेशियों की देखभाल करनी है. इसके अलावा वह कहते हैं कि 'इतनी उम्र हो चुकी है कि अब वह दूसरी जगह जाने की सोचते ही नहीं'.

वह कहते हैं, '1947 में मैं बहुत छोटा था, लेकिन 65  और 71 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध पूरी तरह याद है.' इसके साथ ही बताते हैं कि इस बीच कई बार उभरे तनाव और सीमा पार से होती रही गोलीबारी के भी वह गवाह रहे हैं.

वह 1965 और 71 की जंग का जिक्र करते हुए कहते हैं, 'तब यहां कोई सड़क नहीं हुआ करती थी. सैनिकों की मदद के लिए हम लोमड़ियों की मांद और खाइयों (ट्रेंचेज) तक हथियार ले जाते थे.' हालांकि इसके साथ ही वह कहते हैं पिछले कुछ दिनों से जिस तरह गोलीबारी हो रही है, वह उन्होंने पहले कभी नहीं देखी. वह कहते हैं, 'वह जानबूझकर आम लोगों को निशाना बना रहे हैं.'

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 29 सितंबर को आतंकियों के खिलाफ भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से पाकिस्तान द्वारा संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाओं में काफी इजाफा देखने को मिला है. ऐसे में यहां रह रहे लोगों की जिंदगी अब उन गोले और गोलियों की संख्या से तय होती है, जो 'इच्छित निशाना' चूक गए.

गोपड़ बस्ती से कुछ किलोमीटर दूर, अप्रत्याशित और रुक-रुक जारी गोलीबारी के दायरे से दूर, 30 साल की शिल्पा शर्मा अपने पुराने स्टोव को जलाने की कोशिश में जुटी हैं. तीन से लेकर 10 साल की उम्र के उसके तीन बच्चे उसके पास ही बैठे हैं और खाने का बेसर्बी से इतजार कर रहे हैं.

पाकिस्तानी गोलीबारी में उनका घर बर्बाद हो चुका है और उसके बाद पिछले कुछ दिनों से एक खुला मैदान ही उनकी शरणस्थली बना हुआ है. वह कहती हैं, 'रात में यहां काफी ठंड होती है और हमारे पास सर छुपाने को छत भी नहीं, लेकिन गोलियां इतनी दूर तो नहीं पहुंच पाती.' यहां उनका इशारा पास आ चुकी ठंड की तरफ था, जिससे जूझना उन्हें पाकिस्तानी गोलीबारी के मुकाबले आसान लगता है.

सीमा के पास रह रहे लोगों के लिए पाकिस्तान की तरफ से हो रही गोलीबारी के लिए शायद ही इससे कोई खराब समय होगा. बासमती चावल की उनकी फसल पूरी तरह तैयार है, लेकिन गोलीबारी की वजह से अभी फसल काटना उनके लिए नामुमकिन है.

खेतों में काम करने वाले ज्यादातर मजदूर बंगाल और बिहार से हैं, जो कि अब यहां से जा चुके हैं. खेतों में धान की लहलहाती फसल बरबाद होने के लिए खड़ी है. गोपड़ बस्ती के किसान पुरण चंद कहते हैं, 'उस तरफ- अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार- फसल थोड़ी जल्दी तैयार हो जाती है. उन्होंने तो फसलों की कटाई भी कर ली.' वह कहते हैं कि सीमा पार से इस गोलीबारी का मकसद भारतीय हिस्से को अधिकतम नुकसान पहुंचाने का है.

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