
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले ने हर किसी को हिलाकर रख दिया है. इस हत्याकांड के बाद कई लोगों ने अपनों को खो दिया. छत्तीसगढ़ के रायपुर के रहने वाले कारोबारी दिनेश मिरानिया की जान चली गई. उनकी पत्नी नेता मिरानिया ने उस भयावह मंजर को बयां किया है. साथ ही उन्होंने कहा कि वहां जाकर मैंने अपनी दुनिया ही उजाड़ ली. उन्होंने बताया कि मेरे पति वैष्णोदेवी जाना चाहते थे और फिर बच्चों ने कश्मीर घूमने के लिए कहा था, जिसके बाद हमने पहलगाम और गुलमर्ग का प्लान बनाया था.
नेहा मिरानिया ने 22 अप्रैल का वो भयावह मंजर बताते हुए कहा कि हमें उसके बाद गुलमर्ग जाना था. आधे घंटे का फेर था. एक डेढ़ बजे तक हमें निकल जाना चाहिए था. हम चर्चा ही कर रहे थे कि लेकिन दो बज गए थे. बच्ची छोटी है तो वो जिप लाइनिंग करना चाहती थी, कोई एक्टिविटी करना चाहती थी. यह करते-करते समय बीत गया और हम लोग अलग-अलग हो गए. बेटा कहीं था, बेटी और हसबैंड एक जगह थे और मुझे वॉशरूम में जाना था तो मैं वॉशरूम चली गई. वॉशरूम में जब मैं घुसी तो मुझे फायरिंग की आवाज आई तो पता चला कि आतंकियों का हमला हो गया है.
#WATCH | Raipur: A Chhattisgarh-based businessman, Dinesh Miraniya, was killed in #PahalgamTerroristAttack
— ANI (@ANI) April 25, 2025
His wife, Neha Miraniya, while narrating her ordeal, says, "I destroyed my world by going there... We were planning to leave by 2 o'clock, but our daughter wanted to do… pic.twitter.com/iUjsBgThwt
उन्होंने बताया कि मैं बाहर निकली तो पता ही नहीं चला कि यह हो क्या रहा है क्योंकि हम सब यह मूवीज में देखते हैं, न्यूज में पढ़ते हैं. न्यूज बनना नहीं चाहते थे. हमला हो चुका था और हम लोग तितर-बितर हो गए थे. वॉशरूम जाते वक्त मैंने अपना मोबाइल और पर्स अपने पति को दे दिया था. मेरे पास में कुछ ही नहीं था. वहां के लोग मुझे नीचे लेकर के भागे.

बेटे के पास से गुजरी गोली
उन्होंने बताया कि लोगों ने कहा कि आप निकलिए. हमला हुए थोड़ा समय हो गया है तो आपकी फैमिली भी नीचे चली गई होगी. मन नहीं मान रहा था लेकिन लोग जा रहे थे और डर भी था.
उन्होंने कहा कि रास्ते में मैंने लोगों के मोबाइल से फोन किया. सभी का नेटवर्क नहीं लग रहा था. किसी का फोन लगा तो मेरे बेटे से बात हो गई. बेटे ने बताया कि मम्मी मैं नीचे आ गया हूं और पापा और लक्षिता ऊपर है. इसके बाद मैंने गुस्से से पूछा कि पापा और लक्षिता को छोड़कर नीचे कैसे आ गए. उसने बताया कि मम्मी जब पहला शॉट हुआ तो वह मेरे बगल से गया तो उसके छींटे मुझ पर आए तो घोड़े वाले भैया मुझे लेकर नीचे आ गए.

बेटी के खून से सने थे कपड़े
नेहा मिरानिया ने बताया कि पहलगाम हॉस्पिटल के बाहर मुझे मेरी बेटी मिली, जहां पर कुछ घायलों को लाया गया था. उसके हाथ में थोड़ी सी चोट थी और कपड़े खून से सने थे. उसने बताया कि मम्मी पापा को गोली लगी है. यह सुनकर मैं डर गई थी क्योंकि मेरे पति को ब्लड क्लॉट का इश्यू था. ब्लड को पतला करने के लिए उन्हें दवा लेनी पड़ती है.
उन्होंने बताया कि हम लोग हर जगह पर मदद के लिए जा रहे थे, लेकिन सरकार ने हमें क्लब हाउस में भेजा. हम लोग वहां गए, लेकिन फिर वापस आ गए.
स्थानीय लोगों ने की मदद
मिरानिया ने बताया कि स्थानीय लोगों ने बेहद मदद की और उस माहौल में बंद दुकान को खोलकर के मुझे सिम और मोबाइल दिया. साथ ही उन्होंने बताया कि होटल वाले भैया ने मेरी बेटी को बिठाया और खाना खिलाया. मुझे चाय पिलाई. उन लोगों ने बहुत ही मदद की.
उन्होंने बताया कि साढे सा-आठ बजे कुछ लोग नीचे आए और उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि लोगों का एक आखिरी ग्रुप नीचे आया है और आप उनमें चैक कर सकते हैं. मैंने उनसे पूछा भी की आप क्या लेकर आए हैं, उसमें बॉडी है या क्या है आप बताएंगे तो मुझे समझ में आएगा तो उन्होंने कहा कि हम कुछ भी नहीं बता सकते हैं.
उन्होंने बताया कि थोड़ी देर बाद मेरे बेटे का कॉल आया और उसने कहा कि मम्मी एक बार आ जाओ. बेटे ने मुझे कॉल किया और जब मैंने वहां पर जाकर देखा तो मैं भी एक बदकिस्मत थी. मेरे पति की बॉडी सामने थी.

सरकार से क्या है उम्मीद?
उन्होंने सरकार से उम्मीद के सवाल पर कहा कि सरकार तो कर रही रही है. अमित शाह जी वहां (पहलगाम) आए थे, उन्होंने मेरे पति को इतनी खूबसूरत विदाई दी, उन्हें शहीद जैसी विदाई दी, इसलिए मुझे उम्मीद है कि सरकार मेरे पति को शहीद का दर्जा देगी. मुझे जो खोना था वो मैंने खो दिया है.
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