कोरोनावायरस का संकट और उसे रोकने के लिए अमेरिका समेत के कई देशों में लागू लॉकडाऊन ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को तहस - नहस कर दिया है. उद्योग धंधे बंद हुए तो तेल की डिमांड अब अप्रत्याशित स्तर पर गिर गयी है. सोमवार को एक समय अमेरिका की बेंचमार्क WTI क्रूड की कीमत इतिहास में पहली बार नेगेटिव में पहुंच गयी. मंगलवार को कीमतों में मामूली सुधर हुआ लेकिन अप्रत्याशाशित संकट बरक़रार है.
एयरलाइन्स से लेकर पब्लिक ट्रांसपोर्ट, निजी से लेकर पब्लिक सेक्टर कंपनियां ठप पड़ने से तेल की खपत अप्रत्याशाशित तरीके से नीचे गिर गयी है. हालत इतनी ख़राब हो गयी है कि सरप्लस तेल रखने को जगह खोजनी पड़ रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा है - अमेरिका सरप्लस कच्चे तेल का इस्तेमाल राष्ट्रीय पेट्रोलियम रिज़र्व्स को और मज़बूत करने पर करेगा.
तेल बाजार में उथल-पुथल अमेरिका के बाहर भी जारी है. मंगलवार को ब्रेंट क्रूड इंडेक्स 2001 के बाद पहली बार ट्रेडिंग के दौरान 20 डॉलर के नीचे पहुंच गया. ब्रेंट क्रूड इंडेक्स काफी हद तक भारत के इम्पोर्ट बिल को प्रभावित करता है.
भारतीय अर्थशास्त्री मानते हैं कीमतें गिरने से भारत का तेल इम्पोर्ट बिल नीचे आएगा, विदेशी मुद्रा की बचत होगी. इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व अर्थशास्त्री वेद जैन कहते हैं, "तेल सस्ता होने से भारत का फॉरेन एक्सचेंज ऑउटगो कम होगा और रुपया की मज़बूती हो सकती है जो कोरोनावायरस संकट की वजह से कमज़ोर हुआ है. साथ ही, सरकार तेल पदार्थों पर टैक्स बढ़ाकर जो आर्थिक नुकसान हो रहा है उसकी कुछ भरपाई कर सकती है."
साफ़ है अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का ये सिलसिला जारी रहा तो भारत का कच्चे तेल के आयात पर होने वाला खर्च कम होगा. इससे भारत में पेट्रोल और डीजल सस्ता होने की एक उम्मीद भी बनती है लेकिन तेल उत्पादन करने वाले देशों की कमाई घटने से आंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में डिमांड कमज़ोर होगा जिसके भारत पर भी पड़ेगा.
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