गोवा:
'ब्रिक्स समिट' के दौरान एक दिलचस्प बैठक की जानकारी आ रही है. नेपाल मीडिया ने रिपोर्ट किया है कि नेपाली प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मोदी भी वहां पहुंचे और दोनों से कुछ देर तक बातचीत की.
सूत्रों के मुताबिक, यह कोई औपचारिक त्रिपक्षीय बैठक नहीं थी. प्रधानमंत्री मोदी दहल और शी से तब मिले जब ये दोनों होटल ताज एक्ज़ोटिका के लाउंज में थे. भारत के विदेश मंत्रालय ने अब तक इस मुलाक़ात पर कुछ नहीं कहा है.
शनिवार रात को हुई यह मुलाकात करीब 20 मिनट तक चली. नेपाली मीडिया में छपी इस मुलाकात की तस्वीर में दहल की पत्नी सीता दहल भी नेताओं के साथ बैठी नज़र आ रही हैं. नेपाली मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दहल ने मोदी और शी से मुखातिब होते हुए यह कहा कि नेपाल इस क्षेत्र की दो बड़ी ताक़तों के बीच में है और दोनों से साथ और सहयोग के बिना नेपाल को तरक्की और खुशहाली नहीं मिल सकती.
गौरतलब है कि नेपाल और चीन के बीच द्विपक्षीय मुलाक़ात बहुत पहले ही तय हो चुका थी और इसका ऐलान भी किया जा चुका था, लेकिन इसमें भारत के प्रधानमंत्री किसी भी रूप में हिस्सा लेंगे इस बात की कोई जानकारी नहीं दी गई थी.
नेपाल और भारत के संबंध ने हाल के समय में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. खासतौर पर पिछले प्रधानमंत्री केपी ओली के कार्यकाल के दौरान नेपाल के नए संविधान को लागू करने को लेकर वहां के मधेशियों में काफी नाराज़गी देखी गई. इसे लेकर हुए आंदोलन के चलते भारत से नेपाल को जाने वाली सप्लाई रुक-सी गई. नेपाल ने इसके पीछे भारत सरकार का हाथ माना था.
हालांकि प्रचंड के सत्ता में आने के बाद रिश्ते पटरी पर लौटे हैं. प्रचंड ने प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना. इससे यह संदेश गया कि नेपाल ने चीन के प्रति अपने झुकाव को संतुलित कर लिया है, लेकिन प्रचंड के भारत आने के फैसले से चीन इतना नाराज़ हुआ कि शी की प्रस्तावित नेपाल यात्रा को स्थगित कर दिया गया, हालांकि चीन की तरफ से यह कहा गया कि जब दौरे का कोई औपचारिक ऐलान ही नहीं हुआ था तो स्थगित करने का सवाल कहां उठता है. यह भी माना जा रहा है कि चीन के वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर अपनी सहमति देने में नेपाल की तरफ से की जा रही देरी भी चीन की नाराज़गी की वजह रही.
पिछले साल आए विनाशकारी भूकंप के बाद नेपाल के पुर्निर्माण में भारत के साथ-साथ चीन ने भी अपनी बड़ी भूमिका की पेशकश की. नेपाल को भी इन दोनों की ज़रूरत है इसलिए माना जा रहा है कि प्रचंड ने इस मुलाक़ात के दौरान दोनों देशों को साधने की कोशिश की, हालांकि चीन की कोशिश नेपाल में लगातार अपने प्रभाव को बढ़ाने की है जबकि नेपाल में चीन के प्रभाव को लेकर भारत की अपनी चिंताएं रही हैं इसलिए तीन नेताओं की इस मुलाकात को तीनों देशों के अपने-अपने हित के नज़रिए से देखा जा रहा है.
सूत्रों के मुताबिक, यह कोई औपचारिक त्रिपक्षीय बैठक नहीं थी. प्रधानमंत्री मोदी दहल और शी से तब मिले जब ये दोनों होटल ताज एक्ज़ोटिका के लाउंज में थे. भारत के विदेश मंत्रालय ने अब तक इस मुलाक़ात पर कुछ नहीं कहा है.
शनिवार रात को हुई यह मुलाकात करीब 20 मिनट तक चली. नेपाली मीडिया में छपी इस मुलाकात की तस्वीर में दहल की पत्नी सीता दहल भी नेताओं के साथ बैठी नज़र आ रही हैं. नेपाली मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दहल ने मोदी और शी से मुखातिब होते हुए यह कहा कि नेपाल इस क्षेत्र की दो बड़ी ताक़तों के बीच में है और दोनों से साथ और सहयोग के बिना नेपाल को तरक्की और खुशहाली नहीं मिल सकती.
गौरतलब है कि नेपाल और चीन के बीच द्विपक्षीय मुलाक़ात बहुत पहले ही तय हो चुका थी और इसका ऐलान भी किया जा चुका था, लेकिन इसमें भारत के प्रधानमंत्री किसी भी रूप में हिस्सा लेंगे इस बात की कोई जानकारी नहीं दी गई थी.
नेपाल और भारत के संबंध ने हाल के समय में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. खासतौर पर पिछले प्रधानमंत्री केपी ओली के कार्यकाल के दौरान नेपाल के नए संविधान को लागू करने को लेकर वहां के मधेशियों में काफी नाराज़गी देखी गई. इसे लेकर हुए आंदोलन के चलते भारत से नेपाल को जाने वाली सप्लाई रुक-सी गई. नेपाल ने इसके पीछे भारत सरकार का हाथ माना था.
हालांकि प्रचंड के सत्ता में आने के बाद रिश्ते पटरी पर लौटे हैं. प्रचंड ने प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना. इससे यह संदेश गया कि नेपाल ने चीन के प्रति अपने झुकाव को संतुलित कर लिया है, लेकिन प्रचंड के भारत आने के फैसले से चीन इतना नाराज़ हुआ कि शी की प्रस्तावित नेपाल यात्रा को स्थगित कर दिया गया, हालांकि चीन की तरफ से यह कहा गया कि जब दौरे का कोई औपचारिक ऐलान ही नहीं हुआ था तो स्थगित करने का सवाल कहां उठता है. यह भी माना जा रहा है कि चीन के वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर अपनी सहमति देने में नेपाल की तरफ से की जा रही देरी भी चीन की नाराज़गी की वजह रही.
पिछले साल आए विनाशकारी भूकंप के बाद नेपाल के पुर्निर्माण में भारत के साथ-साथ चीन ने भी अपनी बड़ी भूमिका की पेशकश की. नेपाल को भी इन दोनों की ज़रूरत है इसलिए माना जा रहा है कि प्रचंड ने इस मुलाक़ात के दौरान दोनों देशों को साधने की कोशिश की, हालांकि चीन की कोशिश नेपाल में लगातार अपने प्रभाव को बढ़ाने की है जबकि नेपाल में चीन के प्रभाव को लेकर भारत की अपनी चिंताएं रही हैं इसलिए तीन नेताओं की इस मुलाकात को तीनों देशों के अपने-अपने हित के नज़रिए से देखा जा रहा है.
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