अहमदाबाद:
गुजरात के कल्याणनगर इलाके में विश्वामित्री नदी के किनारे रिवरफ्रन्ट बनाने के लिए करीब 700 घर तोड़ दिए गए थे। इसी तरह शहर के कमाटीपुरा इलाके में भी विकास योजना के लिए करीब 250 घर तोड़ दिए गए थे। इन सभी जगह प्रशासन ने इन्हें वादा किया था कि इन्हें एक महीने के भीतर दूसरी जगह घर दे दिए जाएंगे।
इस घटना को करीब 6 महीने होने को आए हैं, बेघर हुए करीब 1000 परिवारों में से ज्यादातर अब भी घर को तरस रहे हैं, सिर्फ प्रशासन ही नहीं, लेकिन सांप्रदायिक सौहार्द की कमी भी इनकी जिंदगी दूभर कर रही है।
महबूब हसन ठेकेदारी करके अपना गुजारा चलाते थे, लेकिन घर की जगह बदलने से उनकी रोजी-रोटी जाती रही। उनका बेटा पास के स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ता था उसको भी दूर जाने की वजह से पढ़ाई छोड़नी पडी।
महबूब हसन पास के इलाके में किराये पर घर लेकर रह रहे थे, लेकिन पैसे खत्म हो जाने पर दोबारा जहां घर टूटा था वहीं पर मलबे पर प्लास्टिक बांधकर रहने लगे हैं। बेटा पढ़ाई छोड़कर अपनी दादी के साथ घर में बीड़ी बना रहा है। ऐसी ही हालत करीब अन्य 800 परिवारों की भी है। इन्हें प्रशासन वादे करके 6 महीने बाद भी घर नहीं दे रहा है।
पास के ही इलाके में हाल ही में प्रशासन ने एक नया ड्रॉ करके कुछ लोगों को वहां घर दिए थे लेकिन स्थानीय हिंदुओं ने वहां पर मुस्लिम परिवारों को घर देने पर आपत्ति जताई और उन्हें वहां घर देने का विरोध किया। इसके बाद प्रशासन ने वहां पर इन लोगों को घर देने का फैसला फिलहाल टाल दिया है।
दूसरी ओर ये आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि इन लोगों को घर न देने के लिए स्थानीय बिल्डर भी प्रशासन पर दबाव डाल रहे हैं। प्रशासन फिलहाल इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है और हर थोड़े दिनों पर इन लोगों को नई जगह पर घर देने के वादे कर रहा है, लेकिन घर अलॉट हो जाने के बाद भी घर न मिलने से अब लोगों को प्रशासन के वादों पर भी विश्वास नहीं रह गया है। और इस बीच शहर की 44 डिग्री गरमी में लोग बदहाली की स्थिति में रहने को मजबूर हैं। एक बात साफ नजर आ रही है कि गुजरात दंगों को 13 साल हो गए फिर भी सरकार राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द का वातावरण खड़ा कर पाने में नाकामयाब रही है।
इस घटना को करीब 6 महीने होने को आए हैं, बेघर हुए करीब 1000 परिवारों में से ज्यादातर अब भी घर को तरस रहे हैं, सिर्फ प्रशासन ही नहीं, लेकिन सांप्रदायिक सौहार्द की कमी भी इनकी जिंदगी दूभर कर रही है।
महबूब हसन ठेकेदारी करके अपना गुजारा चलाते थे, लेकिन घर की जगह बदलने से उनकी रोजी-रोटी जाती रही। उनका बेटा पास के स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ता था उसको भी दूर जाने की वजह से पढ़ाई छोड़नी पडी।
महबूब हसन पास के इलाके में किराये पर घर लेकर रह रहे थे, लेकिन पैसे खत्म हो जाने पर दोबारा जहां घर टूटा था वहीं पर मलबे पर प्लास्टिक बांधकर रहने लगे हैं। बेटा पढ़ाई छोड़कर अपनी दादी के साथ घर में बीड़ी बना रहा है। ऐसी ही हालत करीब अन्य 800 परिवारों की भी है। इन्हें प्रशासन वादे करके 6 महीने बाद भी घर नहीं दे रहा है।
पास के ही इलाके में हाल ही में प्रशासन ने एक नया ड्रॉ करके कुछ लोगों को वहां घर दिए थे लेकिन स्थानीय हिंदुओं ने वहां पर मुस्लिम परिवारों को घर देने पर आपत्ति जताई और उन्हें वहां घर देने का विरोध किया। इसके बाद प्रशासन ने वहां पर इन लोगों को घर देने का फैसला फिलहाल टाल दिया है।
दूसरी ओर ये आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि इन लोगों को घर न देने के लिए स्थानीय बिल्डर भी प्रशासन पर दबाव डाल रहे हैं। प्रशासन फिलहाल इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है और हर थोड़े दिनों पर इन लोगों को नई जगह पर घर देने के वादे कर रहा है, लेकिन घर अलॉट हो जाने के बाद भी घर न मिलने से अब लोगों को प्रशासन के वादों पर भी विश्वास नहीं रह गया है। और इस बीच शहर की 44 डिग्री गरमी में लोग बदहाली की स्थिति में रहने को मजबूर हैं। एक बात साफ नजर आ रही है कि गुजरात दंगों को 13 साल हो गए फिर भी सरकार राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द का वातावरण खड़ा कर पाने में नाकामयाब रही है।
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