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This Article is From Feb 26, 2018

मध्यप्रदेश में बेरोजगारी, चुनावों का 'व्यापम' से कनेक्शन!

प्रदेश में 2013 में व्यापम ने 16 भर्तियां की थीं, 2014 में 5, 2015 में 12, साल 2016 में 9 पदों के लिए और वर्ष 2017 में 14 भर्तियों के लिए परीक्षाएं हुईं

मध्यप्रदेश में बेरोजगारी, चुनावों का 'व्यापम' से कनेक्शन!
प्रतीकात्मक फोटो.
भोपाल: मध्यप्रदेश चुनावों का व्यापम कनेक्शन.! आप चौंक रहे होंगे कि आखिर परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था का चुनावों से क्या लेना देना.. लेकिन हकीकत में यह संस्था मध्यप्रदेश में चुनावों से पहले सरकारी वादों की एजेंसी बनती दिख रही है. इसकी तस्दीक खुद परीक्षा आयोजित करने वाली संस्था की वेबसाइट से निकाले गए आंकड़ों से होती है.
     
मध्यप्रदेश में 2013 में विधानसभा चुनाव हुए. उस साल व्यापम ने 16 भर्तियों के लिए परीक्षा आयोजित की थी, लेकिन उसके बाद के सालों में ये आंकड़ा कभी दुहराया नहीं गया. 2014 में सिर्फ 5 भर्तियों के लिए परीक्षा हुई, 2015 में 12, साल 2016 में 9 पदों के लिए. वर्ष  2017 में आंकड़ा बढ़ा और 14 भर्तियों का हो गया.

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यानी चुनावी साल से पहले भर्ती प्रक्रिया फिर बढ़ी. हर साल फॉर्म भरने वाले उम्मीदवारों की संख्या बढ़ती गई, लेकिन पद घटते गए. नाराज युवाओं ने प्रदेश में बेरोजगार सेना तक बना ली. एक अनुमान के मुताबिक राज्य में हर छठवें घर में एक युवा बेरोजगार है और हर सातवें घर में एक शिक्षित युवा बेरोजगार बैठा है.

सरकारी आंकड़े कहते हैं कि मध्यप्रदेश में लगभग एक करोड़ 41 लाख युवा हैं. पिछले दो सालों में राज्य में 53% बेरोजगार बढ़े हैं. दिसम्बर 2015 में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 15.60 लाख थी जो दिसम्बर 2017 में 23.90 लाख हो गई है. प्रदेश के 48 रोजगार कार्यालयों ने मिलकर 2015 में कुल 334 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है.
              
बेरोज़गार सेना के संयोजक अक्षय हुंका ने कहा जो नौकरियां होनी चाहिए वे चुनावों के वक्त निकलती हैं. चार साल सरकार भूल जाती है. अभी आप देखें तो पटवारी की परीक्षा चुनावों के साथ होती है. चुनावी वर्ष में माहौल बनाने के लिए बहुत सारी नौकरियां निकाली जाती हैं पर बाकी कोई नौकरी नहीं होती है.

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वैसे सरकार नहीं मानती कि व्यापम का चुनावी कनेक्शन है, बल्कि उसका मानना है कि उपचुनावों की वजह से प्रक्रिया में देरी आती है. मध्यप्रदेश में लघु और मध्यम उद्यम एवं सामाजिक न्याय मंत्री संजय पाठक ने कहा 6-6 महीने चुनाव में रहते हैं, फिर काम करने को मिलता है. जिस दौरान चुनाव होते हैं तब निर्वाचन आयोग की रोक लग जाती है. हम भर्ती चालू करते हैं फिर चुनाव आ जाता है. बेरोजगार सेना के गठन पर उन्होंने इसे सियासी पैंतरा करार देते हुए कहा चुनाव से पहले सेना गठन होती है. चुनाव को देखकर होता ही है, इसके पीछे पूरी फोर्स रहती है.
      
वहीं विपक्ष को लगता है कि भर्ती सिर्फ चुनावी शगल है. जो भर्ती आती है, उससे भी नौकरी नहीं मिलती. कांग्रेस सचिव जीतू पटवारी ने कहा इस सरकार का शगल बन गया है कि चुनाव को कैसे मैनिपुलेट किया जाए, व्यापम का दुरुपयोग किया जाए. हर बार भर्ती आती है नौकरी नहीं मिलती. ये घोटाला सिर्फ यही सरकार कर सकती है.

VIDEO : बेरोजगारी के लिए कांग्रेस जिम्मेदार
   
मध्यप्रदेश में सरकार के पास ही लगभग एक लाख से अधिक वेकैंसी हैं, लेकिन औसत बताता है कि अगर एक लाख उम्मीदवार आवेदन देते हैं तो सरकारी नौकरी में 100 से भी कम चयनित होते हैं.

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