खास बातें
- 26-वर्षीय उत्तम के मुताबिक, ट्रेन की बोगी को काटकर उसे निकाला जा सका
- उत्तम ने बताया, निकाले जाने से पहले तीन घंटे से ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ा
- जब एम्बुलेंस में चढ़ाया गया, वह अकेला ज़िन्दा था, बाकी सब लाशें थीं
पुखरायां: उत्तम कुमार को ट्रेन की बोगी के 'बुरी तरह कुचले जाने' से पहले सिर्फ एक ज़ोरदार धमाके जैसी आवाज़ ही याद है... और फिर जब उसे होश आया, वह पटरी से उतर चुकी इंदौर-पटना एक्सप्रेस के मलबे में उल्टा फंसा हुआ था... रविवार तड़के हुए इस हादसे में अब तक 140 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं...
अपने आंसुओं को रोकने की भरसक कोशिश करते हुए 26-वर्षीय बिज़नेस के छात्र ने बताया कि कैसे उसे ट्रेन डिब्बे को काटकर वहां से निकाला गया, और कैसे उसने निकाले जाने से पहले तीन घंटे से भी ज़्यादा इंतज़ार किया... दरअसल, जिस बोगी में उत्तम कुमार सवार था, वह किसी बोगी से दबकर बुरी तरह कुचली गई थी...
आखिरकार जब बचावकर्मियों ने उत्तम को एम्बुलेंस में चढ़ाया, उसके आसपास सिर्फ लाशें थीं...
उत्तम कुमार ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "उन्होंने उस डिब्बे के हिस्सों को काटा, जहां मैं फंसा हुआ था, और मुझे बाहर खींचा... फिर मुझे याद है कि मुझे एम्बुलेंस में चढ़ाया गया, जो पास ही में खड़ी थी... मैं अकेला ज़िन्दा था, और बाकी सब लाशें थीं..."
रविवार तड़के लगभग 3 बजे जब यह ट्रेन पटरी से उतरी, इसमें लगभग 2,000 लोग सवार थे... अब तक धातु काटने के उपकरणों, क्रेनों तथा खोजी कुत्तों की मदद से ट्रेन के मलबे से 143 शव निकाले जा चुके हैं... बचावकर्मियों का कहना है कि बहुत-से शवों की हालत इतनी बिगड़ चुकी है कि उन्हें पहचाना जाना मुश्किल है...
उत्तम का परिवार उसे जल्द ही खोजने में स्थानीय निवासियों की मदद से कामयाब हुआ, क्योंकि उन्हीं लोगों ने उसकी बचाव की पुकार सुनी थी, और उसके घर का फोन नंबर नोट किया था, जिस पर उन्होंने परिवार वालों को सूचना दी...
उत्तम कुमार ने बताया, "लोगों ने मेरी चीखें सुनीं, लेकिन कोई कुछ कर नहीं सकता था, क्योंकि मेरी बोगी दूसरी बोगी के नीचे दबी पड़ी थी... (सो) मैंने अपने घर का टेलीफोन नंबर चीख-चीखकर सभी को बताया..."
उत्तम को सिर और पीठ पर चोटें आई हैं, लेकिन उसकी सबसे बड़ी चिंता अपने दादाजी को तलाश करने की है, जो सफर में उसी के साथ बैठे हुए थे...
दोनों तीर्थयात्रा के लिए उज्जैन गए थे, जो मंदिरों के लिए मशहूर है, और अब वे अपने घर पटना लौट रहे थे... उत्तम ने कहा, "मुझे नहीं पता, उनके साथ क्या हुआ... वह मेरे साथ वाली सीट पर थे... लेकिन अब उनका नाम दोनों सूचियों में नहीं है - बचने वालों की और मरने वालों की... किसी को नहीं मालूम, वह कहां हैं..."