
यादव सिंह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
नोएडा के चीफ इंजीनियर यादव सिंह करप्शन केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बैंच के सीबीआई जांच के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने चुनौती दी थी जिसे शुक्रवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।
कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि यूपी सरकार को इस मामले में इतनी रुचि क्यों है। यादव सिंह को कोर्ट में आने दें अगर उन्हें यह लगता है कि इस केस को सीबीआई को नहीं सौंपा जाना चाहिए।
यूपी सरकार ने विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर कहा था कि केन्द्र सरकार के वित्तमंत्रालय द्वारा 24 फरवरी को लिखे गये पत्र से साफ साबित होता है कि केन्द्र इस मामले में जबरदस्ती सीबीआई जांच करवाकर इसका राजनैतिक फायदा लेना चाहती है।
यूपी सरकार की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि हाई-कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता नूतन ठाकुर ने न्यायिक जांच की मांग की थी जिसके लिए अवकाशप्राप्त जज ए एन वर्मा की अध्यक्षता में हाई लेवल न्यायिक आयोग का गठन कर दिया गया था। फिर भी हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार के पत्र के आधार पर जांच सीबीआई को सौंप दी। यूपी सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की गुहार की है।
यूपी सरकार की तरफ से दाखिल की गयी याचिका में कहा गया था कि जिस वक्त हाई कोर्ट में सुनवाई चल ही रही थी उसी वक्त केन्द्र सरकार के वित्त मंत्रालय के डॉयरेक्टर ने पत्र लिखकर जांच की संस्तुति की थी। यूपी सरकार ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि डॉयरेक्टर द्वारा लिखा गया पत्र याचिकाकर्ता नूतन ठाकुर के पास कैसे पहुंच गया। यूपी सरकार ने दावा करते हुए कहा कि सीबीआई जांच केवल उन मामलों में की जा सकती है जिस मामले में राज्य के बाहर जांच की जरुरत है या इस तरह के तथ्य सामने आये जो बहुत ही तकनीकी पहलुओं के हों। लेकिन, यादव सिंह के खिलाफ लगे आरोपों में इस तरह की बातें सामने नहीं आ रही।
याचिका में कालेधन की जांच के लिए बनाई गयी विशेष जांच टीम (एसआईटी) के हस्तक्षेप को भी गलत करार दिया गया था। याचिका में तर्क किया गया था कि चूंकि भ्रष्टाचार के इस मामले में यादव सिंह केवल एक ही आरोपी है इसलिए इस मामले में एसआईटी का कोई रोल नहीं बनता।
कोर्ट ने यूपी सरकार से कहा कि यूपी सरकार को इस मामले में इतनी रुचि क्यों है। यादव सिंह को कोर्ट में आने दें अगर उन्हें यह लगता है कि इस केस को सीबीआई को नहीं सौंपा जाना चाहिए।
यूपी सरकार ने विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर कहा था कि केन्द्र सरकार के वित्तमंत्रालय द्वारा 24 फरवरी को लिखे गये पत्र से साफ साबित होता है कि केन्द्र इस मामले में जबरदस्ती सीबीआई जांच करवाकर इसका राजनैतिक फायदा लेना चाहती है।
यूपी सरकार की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि हाई-कोर्ट के सामने याचिकाकर्ता नूतन ठाकुर ने न्यायिक जांच की मांग की थी जिसके लिए अवकाशप्राप्त जज ए एन वर्मा की अध्यक्षता में हाई लेवल न्यायिक आयोग का गठन कर दिया गया था। फिर भी हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार के पत्र के आधार पर जांच सीबीआई को सौंप दी। यूपी सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की गुहार की है।
यूपी सरकार की तरफ से दाखिल की गयी याचिका में कहा गया था कि जिस वक्त हाई कोर्ट में सुनवाई चल ही रही थी उसी वक्त केन्द्र सरकार के वित्त मंत्रालय के डॉयरेक्टर ने पत्र लिखकर जांच की संस्तुति की थी। यूपी सरकार ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि डॉयरेक्टर द्वारा लिखा गया पत्र याचिकाकर्ता नूतन ठाकुर के पास कैसे पहुंच गया। यूपी सरकार ने दावा करते हुए कहा कि सीबीआई जांच केवल उन मामलों में की जा सकती है जिस मामले में राज्य के बाहर जांच की जरुरत है या इस तरह के तथ्य सामने आये जो बहुत ही तकनीकी पहलुओं के हों। लेकिन, यादव सिंह के खिलाफ लगे आरोपों में इस तरह की बातें सामने नहीं आ रही।
याचिका में कालेधन की जांच के लिए बनाई गयी विशेष जांच टीम (एसआईटी) के हस्तक्षेप को भी गलत करार दिया गया था। याचिका में तर्क किया गया था कि चूंकि भ्रष्टाचार के इस मामले में यादव सिंह केवल एक ही आरोपी है इसलिए इस मामले में एसआईटी का कोई रोल नहीं बनता।
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