टाटा ग्रुप के सलाहकार हरीश साल्वे ने कहा, रतन टाटा 'जमीन के टुकड़े' के लिए नहीं लड़ रहे हैं...

टाटा ग्रुप के सलाहकार हरीश साल्वे ने कहा, रतन टाटा 'जमीन के टुकड़े' के लिए नहीं लड़ रहे हैं...

सलाहकार हरीश साल्वे ने कहा कि टाटा की संपत्तियां कंपनी के मूल्यों के विपरीत बेची जा रही थीं

खास बातें

  • मिस्त्री को 4 साल बाद टाटा समूह के चेयरमैन पद से हटाया गया
  • रतन टाटा को 4 माह के लिए अंतरिम चेयरमैन बनाया गया है
  • इस अवधि में एक चयन समिति नए चेयरमैन का चुनाव करेगी
नई दिल्ली:

टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से साइरस मिस्त्री को हटाए जाने के आश्चर्यजनक फैसले के मूल में उनके और पूर्ववर्ती चेयरमैन 78 वर्षीय रतन टाटा के बीच मूल्यों के अंतर का होना है. यह बात 100 बिलियन डॉलर वाले टाटा ग्रुप के कानूनी सलाहकार के रूप में लंबे समय से कार्य कर रहे हरीश साल्वे ने कही है.    

गौरतलब है कि 78 साल के टाटा को 4 माह के लिए चेयरमैन बनाया गया है. इस दौरान एक चयन समिति उनके उत्ताधिकारी का चयन करेगी.

समूह को लगा होगा कि उसकी वर्षों पुरानी अंतरराष्ट्रीय साख पर आंच आ रही है, इसी बात पर जोर देते हुए हरीश साल्वे ने NDTV से कहा, "मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं कि इसमें शामिल लोग यह अच्छी तरह जानते हैं कि वह जमीन के एक टुकड़े या संपत्ति के लिए नहीं लड़ रहे हैं.'

साल्वे ने NDTV की ओर से सुबह दी गई एक्सक्लूसिव खबर की पुष्टि की, जिसमें कहा गया था कि भारत की इस बहुआयामी कंपनी के परिवार के कुलपिता को लगा कि 48 साल के मिस्त्री यूके में टाटा के संपूर्ण स्टील कारोबार को समाप्त करके 'परिवार के रत्नों' में से एक को बेचने जा रहे थे. इसके साथ ही वह अमेरिका स्थित होटलों को भी बेचने जा रहे थे, जो समूह की प्रतिष्ठित ताज श्रृंखला का हिस्सा हैं.

ब्रेक्जिट की ओर से अवरोधित यूके स्टील को बेचने के कदम के बारे में बात करते हुए हरीश साल्वे ने NDTV से कहा, 'टाटा की छवि तूफानों को झेल जाने की रही है.' उन्होंने बताया कि टाटा का परंपरागत दृष्टिकोण जो उनके मूल्यों का केंद्रबिंदु है, वह यह है, 'कठिन परिस्थितियों में आप अपनी संपत्तियों को नुकसान न पहुंचाएं... उन्हें विखंडित करने से पहले आप ठीक करने की कोशिश करें.'

ब्रिटेन की सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी टाटा स्टील ने बढ़ती लागत, चीन से आयात और कम मांग के चलते मार्च में यूके की संपत्तियों को बेचने का फैसला कर लिया था. इस पर साल्वे ने कहा कि बोर्ड को लगा कि जब समूह ने यूके में स्टील कारोबार में अपनी पहुंच बनाई थी, तो 'यह केवल एक बिजनेस को ही खरीदना बस नहीं था, बल्कि यह एक संस्थागत खरीदारी थी', और टाटा स्टील को बेचने के फैसले ने उसे भड़का दिया, क्योंकि इसे टाटा की संपत्तियों को बेचने और उनके द्वारा किए गए अधिग्रहणों, जिनमें लक्जरी ऑटो निर्माता लैंड रोवर और यूरोपियन स्टील निर्माता कोरस का अधिग्रहण भी शामिल था, को पलटने के चलन के रूप में देखा गया.

साइरस मिस्त्री, जिनके परिवार के स्वामित्व वाला शापूरजी पैलोनजी ग्रुप टाटा सन्स का सबसे बड़ा शेयरधारक है, ने 30 बिलियन डॉलर का कर्ज हो जाने पर बिजनेस के कुछ हिस्से को बेचने का फैसला कर लिया था.

साल्वे ने यह भी पुष्टि की कि डोकोमो केस, जिसमें टाटा को अपने पूर्व टेलीकॉम पार्टनर को 1.4 बिलियन डॉलर का भुगतान करने का आदेश दिया गया है, भी इस तनाव का मुख्य कारण बना. नजदीकी सूत्रों का कहना है कि टाटा का मानना है कि उनके उत्तराधिकारी की ओर से की गई इस डील की वजह से इस मामले में उन्हें 'बलि का बकरा' बनाया जाने वाला था.

चेयरमैन के रूप में अपने 4 साल के कार्यकाल के दौरान मिस्त्री अपने भाषणों को कंपनी के कार्यक्रमों तक सीमित रखते हुए लाइमलाइट से दूर रहे. पिछले माह टाटा की इनहाउस मैग्जीन में दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने यह स्वीकार किया था कि चुनौतियों का सामना कर रहीं टाटा ग्रुप की कुछ कंपनियां के 'पोर्टफोलियो में कटौती के लिए कड़े फैसले लेना अनिवार्य है.'

साल्वे ने जोर देकर कहा कि मिस्त्री को हटाने का फैसला रातोंरात नहीं लिया जा सकता, लेकिन यह स्वीकार किया कि उनको बाहर करने के फैसले पर पुरानी कड़वाहट का प्रभाव जरूर है. उन्होंने कहा, 'जब किसी संस्था पर शासन का मामला होता है, तो कई बार चीजें बिल्कुल सही ढंग से नहीं हो पातीं, उसमें पीड़ा, निराशा और कई बार अपमान का भी भाव होता है.'


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