यह ख़बर 24 फ़रवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

प्राइम टाइम इंट्रो : आम चुनाव से पहले सियासत तेज

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार... काश मेरी तरह नेता भी छुट्टी पर चले जाते मुद्दों को कुछ आराम मिलता। इस चुनाव में पता ही नहीं चल रहा है कि कौन सा प्रैक्टिस मैच है और कौन सा फाइनल। पर मेरे हिसाब से खिलाड़ी वह होता है, जो अपनी गेंद विरोधी खेमे के बीच ले जाता है और वहां से गोलपोस्ट की तरफ बढ़ता है। आज बिहार की राजनीतिक जमीन पर ऐसा ही कुछ हुआ। हिन्दुस्तान की राजनीति जो इक्कीसवीं सदी में ले जाने का झांसा दे रही थी, वह अपने सिद्धांतों को छोड़ व्यावहारिक जमीन पर आ गई है, जहां कोई पिछले दरवाजे से जातिगत समीकरण बना रहा है, तो कोई सामने से दलबदल करवा रहा है। राजनीति में समीकरण से बड़ा प्राधिकरण नहीं है और जाति से बड़ा कोई गठबंधन नहीं है और गठबंधन में जातियां स्थाई नहीं होती हैं।

मोदी और बीजेपी ने विरोधी गठबंधनों और छोटे दलों में सेंध लगाना शुरू कर दिया है। वे ऐसा दांव चल चुके हैं, जिससे बिहार में यूपीए भरभरा गई है। 2002 के दंगों के वक्त इस्तीफा देने वाले रामविलास पासवान के बेटे चिराग आज दिन भर यही बयान देते रहे कि सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट के बाद दंगों के दाग नहीं रहे। यह नहीं कहा कि कांग्रेस लालू के साथ जाने के लिए अब भी तैयार हैं। पासवान नीतीश के साथ भी जा सकते थे, मगर ले उड़े मोदी। अंतिम फैसला जो हो मगर उन्हें मोदी से कोई दिक्कत नहीं है। लालू के जेल जाने के वक्त तक पासवान लालू यादव के परिवार के साथ खड़े नजर आए। उनकी पार्टी के तीन ही विधायक हैं, लेकिन उनकी जाति का छह से सात फीसदी वोट किसी के भी काम आ सकता है।

कल ही बीजेपी ने बिहार में राष्ट्रीय समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा के साथ समझौता किया है। कुशवाहा जाति छह फीसदी है। यूपी में भी कुर्मी समाज के नेता सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल बीजेपी के साथ जाने की तैयारी में हैं। इस तरह से बीजेपी ने जाति से जीत का समीकरण बनाना शुरू कर दिया है। बात बीजेपी की हो रही है इसलिए, वर्ना जाति का समीकरण कौन नहीं बनाता और क्यों नहीं बनाएगा।

जिस कागज पर मोदी को गठबंधन की राजनीति और बिहार यूपी में पीछे बताया जा रहा था, उसी कागज पर उन्होंने पुराने समीकरणों पर अपनी पेंसिल से काटपीट कर दी है। आज शाम पटना से एक ऐसी खबर आई कि दिल्ली में बैठे लालू सकपका गए। अब वे पार्टी को संभालने कल सुबह पटना जा रहे हैं। लालू यादव की पार्टी आरजेडी के विधायको में फूट पड़ गई है। इसकी घोषणा के लिए आज का ही दिन चुना गया।

जब स्पीकर को अर्जी 14 तारीख को ही आरजेडी के विधायकों ने दे दी, तब भी क्या लालू को पता नहीं चला। आज ही उनके बागी विधायक क्यों कैमरे के सामने आए और आज ही स्पीकर ने अलग दल की मान्यता क्यों दी। ये और बात है कि छह विधायक लौट भी आए हैं। लेकिन यह नीतीश की तरफ से ऐसी गुगली थी, जिससे कांग्रेस-आरजेडी का गठबंधन मुश्किल में फंस गया। नीतीश ने भी जता दिया कि अगर मोदी पासवान को ले जा सकते हैं, तो वह लालू के खेमे में ही डाका डाल सकते हैं।

आरजेडी का कहना है कि गलत तरीके से दस्तखत पेश किए गए हैं। यह सब होता रहेगा मगर जो हो चुका है वह बता रहा है कि क्या होने जा रहा है। हाल ही में जब मंत्री परवीन अमानुल्लाह इस्तीफा देकर आम आदमी पार्टी में गईं तो कहा गया कि मुसलमान नीतीश के साथ नहीं हैं, लेकिन क्या इस बगावत से नीतीश ने अपनी दावेदारी मजबूत की है।

पासवान कहते हैं कि मोदी पर दंगों के दाग नहीं रहे और आरजेडी के बागी विधायक कहते हैं कि बिहार में सेकुलरिज्म का झंडा सिर्फ नीतीश के पास है। जाति के नाम पर तेजी से बनते समीकरणों के बाद सर्वे वालों को फिर से सर्वे करना चाहिए। उधर बीजेपी नीतीश और कांग्रेस लालू को झटका देने के बाद एक और स्तर पर आक्रामक हो गई है। दलित वोट बैंक।

आज ही वर्षों से दिल्ली में अनुसूचित जाति और जनजाति अधिकारियों के संगठन और बाद मे जस्टिस पार्टी बनाकर राजनीति में अपनी जमीन तलाश रहे उदित राज बीजेपी में शामिल हो गए। पासवान के बाद उदित राज। हिन्दू धर्म को छोड़ बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले उदीत राज का जमीन पर आधार भले न दिखता, हो मगर मीडिया की दुनिया में वह एक दलित चेहरा तो है हीं। उदित राज को जितना जानता हूं उनकी राजनीति में एक ही निरंतरता रही है, वह है मायावती का विरोध। विरोधी तो पासवान भी रहे हैं। लेकिन मायावती को इनसे कभी चुनौती नहीं मिली। पासवान को घेरने के लिए पिछले चुनाव में नीतीश ने महादलित का कोलाज बनाया।

मायावती ने हाल ही में संसद में और लखनऊ की रैली में कहा था कि मोदी को प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे। जिसका जवाब मोदी ने गोरखपुर की रैली में दिया था कि चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में 79 आरक्षित सीटों में से 69 पर बीजेपी ही क्यों जीती।

तो अब लड़ाई जाति के खेमे में घुस कर होने जा रही है। मोदी खुद को और उनकी पार्टी उनको पिछड़ा बताती रही, ताकि पिछड़े गोलबंद हों। केरल में मोदी ने खुद के राजनीतिक अनुभव को दलितों के साथ हुए भेदभाव से जोड़ दिया। वे तेजी से बदल रहे हैं और तेजी से अपनी चाल रहे हैं। दंगों को लेकर धुर विरोधी रहे पासवान को भी अपनी पाले में लेने में नहीं हिचकते और मायावती को चुनौती देने में भी संकोच नहीं करते।

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बीजेपी दलित मोर्चा के अध्यक्ष संजय पासवान जगजीवन राम पर किताब लिखते हैं और कहते हैं कि उनके खून में हिन्दुत्व बसा था। पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम कांग्रेस सांसद मीरा कुमार के पिता हैं। संजय के बीजेपी दफ्तर में कांशीराम की भी तस्वीर है और उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं। (पूरा वीडियो देखें)