एक हफ्ते बाद भी लापता नौसेना पायलट के लोकेटर से कोई सिगनल नहीं मिला : सूत्र

भारतीय नौसेना के सूत्रों ने NDTV से पुष्टि की है कि अरब सागर में सात दिन से लापता भारतीय नौसेना पायलट की सर्वाइवल किट के अहम हिस्से रूस-निर्मित एमरजेंसी लोकेटर बीकन से कोई सिगनल नहीं मिला है.

एक हफ्ते बाद भी लापता नौसेना पायलट के लोकेटर से कोई सिगनल नहीं मिला : सूत्र

कमांडर निशांत सिंह अब तक लापता हैं

नई दिल्ली:

भारतीय नौसेना के सूत्रों ने NDTV से पुष्टि की है कि अरब सागर में सात दिन से लापता भारतीय नौसेना पायलट की सर्वाइवल किट के अहम हिस्से रूस-निर्मित एमरजेंसी लोकेटर बीकन से कोई सिगनल नहीं मिला है. भारतीय नौसेना में इन्स्ट्रक्टर पायलट कमांडर निशांत सिंह पिछले गुरुवार को दो सीट वाले MiG-29K लड़ाकू विमान में एक ट्रेनी पायलट के साथ थे, और उन्होंने इजेक्ट किया था. ट्रेनी पायलट को तत्काल एक हेलीकॉप्टर की मदद से बचा लिया गया था, लेकिन कमांडर निशांत सिंह लापता हैं. नौसेना के एकमात्र ऑपरेशनल एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रमादित्य के डेक से उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद यह घटना हुई थी. 

इस वक्त, नौसेना ने इस बात की पुष्टि करने से इंकार कर दिया है कि क्या पर्सनल लोकेटर बीकन (personal locator beacon) नाकाम हो गया है, क्योंकि घटना की जांच जारी है. बहरहाल, उन्होंने यह पुष्टि की है कि यह बीकन समुद्र की सतह पर ही काम कर सकता है, और डूब जाने की स्थिति में यह काम नहीं करता. 

यह स्पष्ट है कि कमांडर निशांत सिंह ने MiG-29K लड़ाकू विमान से इजेक्ट किया था, क्योंकि विमान के मलबे से उनकी इजेक्शन सीट लापता है, और यह मलबा अरब सागर में लगभग 100 मीटर की गहराई में पड़ा मिला. नौसेना के वरिष्ठ सूत्रों का कहना है, "यह समुद्र के ऊपर कम ऊंचाई से इजेक्शन का जटिल मामला है..."

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"उचित ऊंचाई पर पायलट का इजेक्शन सीट से अलग हो जाना और सभी संबद्ध बचाव उपकरणों का काम करना शुरू कर देना सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा की तकनीकें पहले से मौजूद रहती हैं..." इस केस में, "ऐसा लगता है, पर्सनल लोकेटर बीकन को काम करना शुरू कर देने के लिए पर्याप्त समय था ही नहीं..."

समुद्री जल के संपर्क में आने पर बीप करना शुरू करने के लिए डिज़ाइन किए गए रूस-निर्मित कोमार 2 (एम) यूनिट (जिसे भारतीय नौसेना के लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल किया जाता है) में सैटेलाइट डिस्ट्रेस सिगनल ट्रांसमिटर तथा शॉर्ट-रेंज होमिंग बीकन ट्रांसमिटर मौजूद होते हैं. दोनों को इस तरह डिज़ाइन किया गया है, ताकि लापता पायलट को खोजने में बचावकर्मियों की मदद हो सके. इसके अलावा, एक रेडियो ट्रांसमिटर भी होता है, जिसकी मदद से संकट में फंसे क्रू को बचावकर्मियों से संपर्क करना संभव होता है. किट को बनाने वाली रूसी कंपनी RTI के मुताबिक, कोमार 2 (एम) उचित तापमान में लगातार 48 घंटे तक बिना रुके काम कर सकता है.

भारतीय नौसेना ने अरब सागर में तलाशी अभियान को रोकने से इंकार कर दिया है, हालांकि पायलट को बचा पाने की उम्मीदें काफी क्षीण नज़र आती हैं. माना जा रहा है कि विमानवाहक पोत INS विक्रमादित्य से जुड़ा यह हादसा उस वक्त हुआ, जब पोत उच्चस्तरीय मालाबार सीरीज़ नौसेना अभ्यास में शिरकत कर लौट रहा था, जिसमें अमेरिकी, जापानी और ऑस्ट्रेलियाई युद्धपोत भी शामिल थे.

यह पहला मौका नहीं है, जब भारतीय सशस्त्र सेनाओं को अपने विमानों पर काम नहीं करने वाले, पुराने लोकेटर बीकन की वजह से दिक्कत का सामना करना पड़ा हो. पिछले साल, भारतीय वायुसेना के एएन-32 विमान पर लगे सर्च और रेस्क्यू बीकन ने कोई SOS सिगनल नहीं दिया, जो उसे डिज़ाइन के हिसाब से करना चाहिए था, जब वह अरुणाचल प्रदेश में 13 सवारियों के साथ क्रैश हो गया था.

अगस्त, 2016 में भारतीय वायुसेना के एक अन्य एएन-32 विमान का मलबा कभी तलाश नहीं हो पाया, जब वह 29 सवारियों के साथ बंगाल की खाड़ी में क्रैश हुआ था. उस विमान पर फिट किए गए एमरजेंसी लोकेटर बीकनों से भी कोई संकटकालीन सिगनल नहीं मिला था. 

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