नई दिल्ली:
बबली का बाजा हो या जीत का तबला... फूली रोटी का किस्सा हो या छुपन-छपाई का खेल... ऐसी कहानियां सब बच्चों को प्यारी होती हैं, लेकिन कुछ बच्चे इन कहानियों का मज़ा वैसे नहीं ले पाते जैसे सामान्य बच्चे उठाते हैं, क्योंकि या तो इनमें कुछ बच्चे देख नहीं पाते या सुन नहीं सकते या कुछ ऑर्टिज़म जैसी समस्याओं से जूझ रहे होते हैं.
अब एनसीईआऱटी ने प्रयोग के तौर पर 40 स्टोरी बुक्स का एक ऐसा सैट तैयार किया है, जिसे सामान्य और मूकबधिर समेत हर तरह के बच्चे पढ़ सकेंगे.

एनसीईआरटी की प्रोफेसर अनुपम आहूजा कहती हैं, 'हर बच्चे में इच्छा एक सी होती है. अभी पाठ्यक्रम में उनके लिए भले ही अलग-अलग तरह की किताबें बनाई जाती हैं, लेकिन हमने ये स्टोरी बुक्स तैयार की हैं जो सारे बच्चे एक साथ पढ़ सकते हैं और उनमें हीन भावना नहीं आएगी.'

एनसीईआरटी ने ये किताबें कोई डेढ़ साल के प्रोजेक्ट के बाद तैयार की हैं, जिसके तहत चटपटी, मनभावन कहानियां चित्रों के ज़रिये समझाई गई हैं, जहां कहानी लिखी हैं, उसके साथ ही ब्रेल लिपी में शब्द लिखे गए हैं ताकि जो बच्चे देख नहीं सकते वह भी उसी किताब से पढ़ सकें. साथ ही चित्रों में प्रिंटिंग के वक्त ऐसा उभार दिया गया है कि बच्चे कहानी के किरदारों को छूकर पहचान सकते हैं.

'इतना ही नहीं अगर कहानी में कहीं कोई कठिन शब्द आ जाता है तो उसका अर्थ अलग से समझाने के लिए वहीं पर एक विंडोनुमा खांचा बना है, जिसे छूकर उस कठिन शब्द का अर्थ नेत्रहीन बच्चे समझ सकते हैं. इससे उन्हें कहानी समझने में कोई दिक्कत नहीं होगी.'

पुस्तक बनाने में इस बात का ख्याल भी रखा गया है कि पन्ना पलटाने से लेकर किताब के अगले और पिछले कवर पेज और सभी पन्नों को पहचानने में बच्चों को कोई दिक्कत न हो. इसके लिए अलग-अलग रंगों और उभारों का इस्तेमाल किया गया है. इन किताबों के साथ इनका डिज़िटल वर्जन भी लाया जा रहा है. देश में 2 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो किसी न किसी तरह की विकलांगता का शिकार हैं. बच्चों की क्षमताएं अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन आगे बढ़ने की ललक और सीखने की इच्छा एक जैसी है.. ये एक पहल ज़रूर है लेकिन असली फायदा तभी होगा जब ये किताबें पाठ्यक्रम में आएंगी.
अब एनसीईआऱटी ने प्रयोग के तौर पर 40 स्टोरी बुक्स का एक ऐसा सैट तैयार किया है, जिसे सामान्य और मूकबधिर समेत हर तरह के बच्चे पढ़ सकेंगे.

एनसीईआरटी की प्रोफेसर अनुपम आहूजा कहती हैं, 'हर बच्चे में इच्छा एक सी होती है. अभी पाठ्यक्रम में उनके लिए भले ही अलग-अलग तरह की किताबें बनाई जाती हैं, लेकिन हमने ये स्टोरी बुक्स तैयार की हैं जो सारे बच्चे एक साथ पढ़ सकते हैं और उनमें हीन भावना नहीं आएगी.'

एनसीईआरटी ने ये किताबें कोई डेढ़ साल के प्रोजेक्ट के बाद तैयार की हैं, जिसके तहत चटपटी, मनभावन कहानियां चित्रों के ज़रिये समझाई गई हैं, जहां कहानी लिखी हैं, उसके साथ ही ब्रेल लिपी में शब्द लिखे गए हैं ताकि जो बच्चे देख नहीं सकते वह भी उसी किताब से पढ़ सकें. साथ ही चित्रों में प्रिंटिंग के वक्त ऐसा उभार दिया गया है कि बच्चे कहानी के किरदारों को छूकर पहचान सकते हैं.

'इतना ही नहीं अगर कहानी में कहीं कोई कठिन शब्द आ जाता है तो उसका अर्थ अलग से समझाने के लिए वहीं पर एक विंडोनुमा खांचा बना है, जिसे छूकर उस कठिन शब्द का अर्थ नेत्रहीन बच्चे समझ सकते हैं. इससे उन्हें कहानी समझने में कोई दिक्कत नहीं होगी.'

पुस्तक बनाने में इस बात का ख्याल भी रखा गया है कि पन्ना पलटाने से लेकर किताब के अगले और पिछले कवर पेज और सभी पन्नों को पहचानने में बच्चों को कोई दिक्कत न हो. इसके लिए अलग-अलग रंगों और उभारों का इस्तेमाल किया गया है. इन किताबों के साथ इनका डिज़िटल वर्जन भी लाया जा रहा है. देश में 2 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो किसी न किसी तरह की विकलांगता का शिकार हैं. बच्चों की क्षमताएं अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन आगे बढ़ने की ललक और सीखने की इच्छा एक जैसी है.. ये एक पहल ज़रूर है लेकिन असली फायदा तभी होगा जब ये किताबें पाठ्यक्रम में आएंगी.
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