यह ख़बर 27 अगस्त, 2011 को प्रकाशित हुई थी

संसद में 'सदन की भावना' अभिव्यक्त होने से हुआ भ्रम

खास बातें

  • संसद में लोकपाल मुद्दे पर सदन की भावना अभिव्यक्त होने के बाद इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई कि यह प्रस्ताव था या नहीं।
नई दिल्ली:

लोकसभा और राज्यसभा में लोकपाल के मुद्दे पर सदन की भावना अभिव्यक्त होने के बाद इस बात को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई कि यह प्रस्ताव था या नहीं। ऐसी स्थिति इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि सरकार के प्रबंधक और विपक्ष के लोग पहले ऐसी योजनाओं की बात कर रहे थे जिसके तहत दोनों सदनों में अन्ना हजारे की ओर से उठाए गए तीन प्रमुख मुद्दों पर ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित किया जाएगा। कांग्रेस के उप प्रमुख व्हिप संदीप दीक्षित सहित कई अन्य सदस्यों ने इस बात पर जोर दिया कि यह प्रस्ताव है जिसे सदस्यों ने ध्वनिमत से पारित किया है। विपक्षी सदस्य भी इसे लेकर भ्रमित थे क्या यह प्रस्ताव है अथवा सदन की भावना। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली यह जानने के लिए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से सम्पर्क किया कि संसद के ऊपरी सदन ने वास्तव में क्या पारित किया है। संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला का यह मानना था कि सदन की भावना और प्रस्ताव एक ही बात है। मुखर्जी ने यद्यपि कहा कि सदन की भावना लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों की ओर से मेजे थपथपाने से प्रतिबिंबित हुआ। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लोकपाल मुद्दे पर सदन की भावना को अभिव्यक्त किए जाने को जनता की इच्छा करार दिया। 


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